Kidney Donation A Story Of Unity: कहते हैं न कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना और ये सच भी है. ऐसी मिसाल कश्मीर और यूपी की दो औरतों ने कायम की है. दोनों के पति किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे और उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की बेहद सख्त जरूरत थी. ऐसे में कश्मीर के मोहम्मद सुल्तान डार की पत्नी ने यूपी के विजय कुमार को अपनी किडनी दान कर दी और विजय की पत्नी ने मोहम्मद डार को अपनी किडनी दे दी.


इस तरह से इंसानियत के मजहब ने आगे बढ़कर दो जिंदगियां बचा लीं. फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला में डॉक्टरों की एक टीम ने  दुर्लभ अंतरराज्यीय अदला-बदली वाला ये किडनी ट्रांसप्लांट किया. इसमें डोनर की अदला-बदली की जाती है और किडनी पाने वाले मरीज के  साथ मिलान किया जाता है.


18 महीने से किडनी डोनर का था इंतजार


दुनिया में सबसे बड़ा मजहब इंसानियत का ही है. कश्मीर के रहने वाले मोहम्मद सुल्तान डार और बरेली के विजय कुमार ने साबित कर दिखाया है. ये दोनों की क्रोनिक किडनी बीमारी से जूझ रहे थे. अपनी सांसों को बचाने के लिए इन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत थी, लेकिन दोनों को ही इसके लिए डोनर नहीं मिल रहा था.


62 साल के डार कश्मीर के टेलीफोन विभाग में काम करते हैं. वहीं बरेली के 58 साल के विजय कुमार एक पूर्व सेना अधिकारी रहे हैं. दोनों किडनी ट्रांसप्लांट के लिए इंतजार कर रहे थे, लेकिन उनको इसके लिए सटीक मैच वाला डोनर नहीं मिल रहा था. इस तरह से उनको 18 महीने बीत गए, लेकिन डोनर मिलने में मुश्किल बनी रही. दोनों लगभग पिछले 18 महीनों से डायलिसिस पर थे. वे ट्रांसप्लांटेशन के लिए फोर्टिस आए थे. ऐसे में दोनों की पत्नियों ने एक-दूसरे के पतियों को अपनी किडनी दान कर दी. 


ऐसे हुआ किडनी ट्रांसप्लांट संभव


फोर्टिस अस्पताल के नेफ्रोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट के प्रिंसिपल डॉयरेक्टर डॉ. संजीव गुलाटी ने कहा, "दोनों ही मामलों में डोनर और प्राप्तकर्ता के रक्त समूहों का मेल नहीं था. ऐसे विकल्पों में से एक अदला-बदली  है, जो भारत में बहुत दुर्लभ है." किडनी की अदला-बदली का फैसला लिए जाने के बाद, मरीजों को फोर्टिस एस्कॉर्ट्स में भर्ती कराया गया, जहां सभी जरूरी मेडिकल किए गए. इनमें एक प्री-ट्रांसप्लांट कम्पैटिबिलिटी चेक और ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन टाइपिंग शामिल है, एक जेनेटिक टेस्ट जिसका इस्तेमाल ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए मरीजों और डोनर से मिलान करने के लिए किया जाता है. इसके बाद स्वैप ट्रांसप्लांट प्रोसेस की गई.


6 घंटे चली सर्जरी और बच गई दो जानें


बीते महीने 16 मार्च को छह डॉक्टरों की टीम ने चार सर्जरी की. इसमें छह घंटे लगे. डॉ गुलाटी के नेतृत्व वाली टीम में डॉ अजीत सिंह नरूला (नेफ्रोलॉजी), डॉ अनिल गुलिया और डॉ परेश जैन (यूरोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट) और दो जूनियर डॉक्टर शामिल थे. डॉक्टरों ने कहा कि मरीजों और दाताओं को 27 मार्च को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और वे ठीक हैं. डॉ गुलाटी ने टीओआई को बताया कि अगर वक्त पर ट्रांसप्लांट नहीं किया गया होता, तो मरीज अधिक से अधिक केवल पांच साल तक जिंदा रह सकते थे.


फोर्टिस हॉस्पिटल के जोनल डायरेक्टर बिदेश चंद्र पॉल ने कहा, "सबसे अच्छी बात यह है कि जिन दो कपल ने ट्रांसप्लांट की जरूरत और अरजेंसी को पहचाना, वे धर्म और भौगोलिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बगैर पतियों की जिंदगी बचाने के लिए अपनी किडनी दान करने के लिए आगे आए. "


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