लॉकडाउन में महिलाओं के अकेलेपन से पीड़ित होने की आशंका अधिक, स्टडी में सामने आई ये बात
लॉकडाउन पर किए गए कई अध्ययन बताते हैं कि दुनिया भर में, महिलाओं पर घर के काम का प्रबंधन करने और अपने बच्चों और काम के प्रति प्रतिबद्धता का ध्यान रखने के लिए अधिक तनाव है. शोधकर्ताओं का मानना है कि बच्चों और घरेलू कर्तव्यों दोनों का ध्यान रखने की मांग के कारण महिलाएं अकेलेपन को महसूस कर सकती हैं.
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नई दिल्लीः कोरोना वायरस से निपटने के लिए विश्व के कई देशों में लॉकडाउन लगाया गया है. वर्तमान में दो महीने तक लगे लॉकडाउन के बाद भारत में भी अनलॉक का पहला फेज चल रहा है. हालांकि इसे अभी भी लॉकडाउन-5 कहा जा रहा है. हाल ही में एक स्टडी हुई, जिसमें पाया गया कि लॉकडाउन के दौरान महिलाएं सबसे ज्यादा अकेलापन महसूस कर रही हैं.
क्या लॉकडाउन पुरुषों और महिलाओं को अलग तरह से प्रभावित कर सकता है? एसेक्स विश्वविद्यालय में कुछ अर्थशास्त्रियों द्वारा आयोजित, अनुसंधान से पता चलता है कि कोरोनोवायरस के प्रकोप के बीच महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. हर तीन में से एक महिला लॉकडाउन के कारण अकेलेपन से जूझ रही हैं.
अध्ययन से यह भी पता चलता है कि कोरोना महामारी के दौरान कम से कम मानसिक स्वास्थ्य के मामलों का सात प्रतिशत से 18 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है. महिलाओं के लिए विशेष रूप से लॉकडाउन में आंकड़े 11 प्रतिशत से 27 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं. शोधकर्ताओं का मत है कि वृद्धि इस तथ्य के कारण हो सकती है कि महिलाओं को बच्चों और घरेलू कर्तव्यों दोनों का ध्यान रखना होगा.
अध्ययन में, यह पाया गया कि 34 प्रतिशत महिलाओं ने कभी-कभी लॉकडाउन में अकेला महसूस करने की सूचना दी, जबकि 11 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें अक्सर अकेलापन महसूस होता है. इसकी तुलना में, 23 प्रतिशत पुरुषों ने कहा कि उन्हें लॉकडाउन में अकेलापन महसूस होता है, और छह प्रतिशत का कहना है कि उन्हें अक्सर अकेलापन महसूस होता है.
इससे पहले, इसी तरह के विषयों पर कई अध्ययन किए गए हैं, जो बताते हैं कि दुनिया भर में, महिलाओं पर घर के काम का करने और अपने बच्चों और काम के प्रति प्रतिबद्धता का ख्याल रखने के लिए बहुत अधिक तनाव है. इस साल की शुरुआत में, मैकिन्से की एक रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि महिलाएं अपनी खुद की कार्य प्रतिबद्धताओं के बावजूद घर पर अधिक जिम्मेदारियां ले सकती हैं. जबकि शिक्षित और नौकरीपेशा महिलाओं की संख्या बढ़ रही है, उनकी घरेलू जिम्मेदारियां और भागीदारी कम नहीं हुई हैं. वह अपने पति या परिवार के अन्य पुरुषों की तुलना में बच्चों और घर के कामों की देखभाल कर रही हैं.
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