(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
International Women's Day: महिला डॉक्टरों की दास्तां, कोई रहा बच्चों से महीनों दूर तो किसी ने नहीं ली एक भी छुट्टी
कोरोना वायरस से लड़ने के लिये सबसे पहली पंक्ति में डॉक्टर्स रहे. उन्होंने दिन रात एककर मरीजों की देखभाल की. यही नहीं, महीनों अपने परिवार से दूर भी रहीं.
नई दिल्ली: बॉर्डर पर एक तरफ जहां दुश्मनों से लड़ने के लिए जवान तैनात हैं, वहीं देश के अंदर आए स्वास्थ संबंधित संकट से लड़ने के लिए हमारे योद्धा , यानि हमारे डॉक्टर्स ने जंग लड़ी भी और जीती भी. ऐसी ही कुछ महिला डॉक्टर्स से एबीपी न्यूज ने बातचीत की, जिन्होंने कोरोना वायरस के दौरान कई संघर्ष भी किए और कई बलिदान भी दिये.
महामारी से लड़ने के लिये डटकर खड़ी रहीं
दिल्ली हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट की डॉक्टर प्रितपाल कौर Covid 19 वार्ड में काम करती रही हैं. उनके अंतर्गत काम करने वाले 35 नर्स और कई डॉक्टर हैं. एबीपी न्यूज से बातचीत के दौरान वो कहती हैं कि "जैसे जंग के मैदान में सिपाही की जरूरत होती है वैसे ही देश को जरूरत पड़ने पर और युद्ध जैसे हालात होने पर हमने अपना कर्तव्य समझ कर लोगों का उपचार किया. हमे परिवार से दूर रहना पड़ा. मेरी टीम में कई लोगों को वायरस भी हुआ, लेकिन उन्होंने फिर भी हार नहीं मानी. इस दौरान सभी डॉक्टर अपने परिवार से दूर रह रहे थे. मेरा परिवार 9-10 महीने मुझसे दूर रहा. "
" लोग कहते हैं कि महिलाएं कमज़ोर होती हैं लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. मेरे पेरेंट्स बहुत डरते थे उस वक्त लेकिन मैं आर्मी बैकग्राउंड से हूं और जंग के समय लड़ना ही हमे सिखाया जाता है."
डॉक्टर सुजीता सिंह कहती हैं कि, अस्पताल का पूरा आधिकारिक काम हमें ही करना पड़ा. बीमारी को लेकर कई अफवाह भी थी, उन सभी चीजों से लड़ने में दिक्कत आई. उस समय 50 से 60 कोरोना वायरस के मरीज एक महीने में आए. हमने किसी मरीज को इलाज के बिना वापस नहीं भेजा.
डॉक्टर ऋतु कहती हैं कि उस समय डर तो था लेकिन काम तो करना था. घर पर बच्चे कहते थे. मम्मी आप हाथ मुंह धो कर ही घर आओ. मुझे इस दौरान वायरस भी हुआ, मेरे पति भी पॉजिटिव हो गए, वो वक्त बेहद मुश्किल था. मैंने इस दौरान एक दिन भी छुट्टी नहीं ली.
कोरोना हुआ..ठीक होकर फिर ज्वाइन की ड्यूटी
अस्पताल में नर्स के रूप में काम एक रही ज्योति को कोरोना वायरस हुआ तो उन्हे क्वारनटीन में भेज दिया गया, लेकिन केवल 11 दिन के अंदर रिपोर्ट के नेगेटिव आने के बाद वो तुरंत ड्यूटी पर वापस आ गईं. "Covid ICU में नौकरी करती हूं, लोगों को देखने के दौरान वायरस मुझे भी हुआ लेकिन मैंने 11 दिन में नेगेटिव आते ही वापस ड्यूटी ज्वाइन कर ली।"
आदि शक्ति को शक्ति स्वरूप इसलिए कहा गया क्योंकि वो हमे किसी भी परेशानी से सुरक्षित करती है. कोरोना काल मे ऐसी ही सुरक्षा महिला डॉक्टरों ने दी जिन्होंने अपने छोटे छोटे बच्चों से दूर रहकर भी घर की जिम्मेदारी निभाई और दूसरों की जान को प्राथमिकता दी. समाज़ के प्रति ज़िम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ा और अपनी ड्यूटी के साथ साथ hippocratic oath का भी सम्मान किया.
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