Women Masjid: दिल्ली की जामा मस्जिद की ओर से अकेली लड़कियों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने के बाद नया विवाद छिड़ गया है. कुछ लोग जामा मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाने को सही नहीं कह रहे हैं. ताजा विवाद के बाद सवाल उठता है कि मस्जिदों में प्रवेश को लेकर इस्लाम में क्या व्यवस्था है. ये जानना बेहद जरूरी है कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर नियम क्या हैं.
इस्लाम में ये बात सौफ तौर से कही गई है कि मस्जिद इबादत की जगह है और इस्लाम में इबादत को लेकर महिला और पुरुष को लेकर को किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता. मुस्लिम धर्म के अधिकांश जानकार और धर्मगुरुओं का भी यहीं कहना है कि इस्लाम में इबादत के नाम पर लिंग के आधार पर फर्क नहीं किया जाता.
मस्जिद में प्रवेश को लेकर किन महिलाओं पर रोक नहीं?
दिल्ली के जामा मस्जिद की ओर से कहा गया है, जो भी महिला मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए आना चाहती हैं, उन्हें रोका नहीं जाएगा. वे अपने परिवार या पति के साथ इबादत के लिए मस्जिद में आ सकती हैं.
इस्लाम महिलाओं के मस्जिद में नमाज पढ़ने से नहीं रोकता
इस्लाम इबादत को लेकर महिला-पुरुष में फर्क नहीं करता है. जिस तरह से मस्जिद में पुरुष को इबादत का हक है, उसी तरह से महिलाओं को भी इबादत का पूरा अधिकार है. ज्यादातर मुस्लिम धर्मगुरु भी इसी बात को कहते हैं और मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश का समर्थन करते हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) भी इस बात का समर्थन करता है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि इस्लाम मस्जिद में महिलाओं को आने से कतई नहीं रोकता है और न ही महिलाओं को नमाज पढ़ने से रोकता है. इसके साथ ही बोर्ड ने ये भी कहा था कि इस्लाम के मुताबिक महिलाओं को जुमे की नमाज में शामिल होना जरूरी नहीं है. साथ ही बोर्ड मस्जिदों पर कोई नियम थोप नहीं सकता.
कई बड़ी मस्जिदों में महिलाएं पढ़ती हैं नमाज
बात करें दुनिया की बड़ी मस्जिदों की तो चाहे मक्का, मदीना हो या फिर यरुशलम की अल अक्सा मस्जिद, इनमें महिलाओं के प्रवेश पर कोई पाबंदी नहीं है. सऊदी अरब के मरक्का में इस्लाम की सबसे पवित्र मस्जिद में महिलाएं काबे का तवाफ करती हैं. 2018 में सऊदी अरब की सरकार ने एक बेहद ही महत्वपूर्ण फैसला किया था. पहले मक्का में महिलाओं को हज या उमराह करने के लिए महरम यानी किसी पुरुष संरक्षक के साथ होना जरूरी था, लेकिन 2018 से अब बिना महरम के महिलाएं मक्का में हज के लिए जा सकती हैं. इसके बाद भारत सरकार ने भी हज के नियमों में बदलाव करते हुए महरम की शर्त का खत्म तक दिया था. इसके अलावा भी दुनिया की कई मस्जिदों में महिलाओं को नमाज पढ़ने की इजाजत है. इसके अलावा मलेशिया में भी महिलाओं को मस्जिदों में नमाज पढ़ने की अनुमति है. ईरान की कुछ मस्जिदों में भी यह व्यवस्था है.
कई मस्जिदों में महिलाओं की एंट्री बैन है
भारत की बाद करें यहां भी कई मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति है और कई मस्जिदों में महिलाओं की एंट्री बैन है. वर्तमान में मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश को लेकर मस्जिद प्रबंधन का फैसला अंतिम होता है. हालांकि मस्जिदों में प्रवेश के लिए मुस्लिम धर्मगुरु कुछ नियम बताते हैं. इनके मुताबिक अगर महिलाएं 'पाक' हैं तो मस्जिद में नमाज पढ़ सकती हैं. यानी माहवारी के दौरान महिलाएं मस्जिद में नमाज नहीं पढ़ सकती हैं. कुछ धर्मगुरुओं को पुरुषों के साथ महिलाओं के नमाज पढ़ने पर आपत्ति भी है. महिलाओं के प्रवेश का फैसला मस्जिद प्रबंधन का होता है. केरल के एक मस्जिद में महिला ने जुमे की नमाज पढ़ाया भी था. 2018 में केरल के मलप्पुरम जिले की मस्जिद में जामिदा बीवी नाम की महिला ने जुमे की नमाज पढ़ाया. जुमे की नमाज की अगुवाई करने वाली वो भारत की पहली महिला इमाम बन गई थीं.
भारत की कुछ मस्जिदों में महिलाओं के नमाज पढ़ने के लिए अलग से जगह है. वहीं भारत की कई मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है. सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर एक जनहित याचिका भी लंबित है. इस याचिका में मांग की गई है कि सभी मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश की इजाजत होना चाहिए, क्योंकि महिलाओं का मस्जिदों में प्रवेश पर रोक लगाना असंवैधानिक है. याचिका में इसे मौलिक अधिकार समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया गया है.
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