Jammu Kashmir News: जम्मू कश्मीर में राजनीतिक उथल पुथल और आतंकी हिंसा की वारदातों के बीच एक खामोश आंदोलन चल रहा है. जिसकी नींव भी महिला के नाम रही और जिस की जीत भी आज महिलाओं के नाम है. इस आंदोलन का नाम उम्मीद है. 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के ज़रिए देश में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आजीविका बढ़ाने का फैसला लिया तो जम्मू-कश्मीर में भी इस मिशन की शुरुआत हुई. नाम रखा गया उम्मीद और मिशन ग्रामीण महिलाओं की आजीविका बढ़ाने में पूरी मद्द करना- योजना 125 ब्लॉकों में शुरू हुई तो बड़ी संख्या में महिलाएं आगे आई और इसके साथ जुड़ने लगी.


12 लड़कियों के साथ मिलकर खोले दो कारखाने


ऐसी ही एक महिला बारामुला के सिंघ्पोरा की थी जो 18 साल की अस्मत जान है. गरीबी के कारण अस्मत को अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी थी लेकिन 2014 में उम्मीद के साथ जुड़ने से उसके जीवन को नई दिशा मिल गई. अस्मत ताम्बे के बर्तन बनाने का काम सीख गई और इस पारंपरिक काम के ज़रिये अपनी आजीविका कमाने लगी लेकिन अकेले काम करते हुए उसका जायदा फायदा नहीं हुआ तो 2017 में उसके गांव की 12 लड़कियों ने मिलकर एक सेल्फ हेल्प ग्रुप धड़कन के नाम से बनाया और आज सात साल के बाद ग्रुप के दो कारखाने चल रहे है और दो दुकाने है जहां पर यह ताम्बे से बना सामान बेच रही है.


अस्मत के अनुसार आज उसके ग्रुप की हर महिला इतना कमा रही है कि वह ना सिर्फ अपना खर्चा उठा रही है पर साथ-साथ पूरे परिवार का भी. सरकारी स्कीम ने इन सब का जीवन कितना बदला इस का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि 12 में से 3 लडकियों ने अपनी 12वीं की अधूरी पढ़ाई पूरी कर ली है और अभ अस्मत के साथ चारो ने IGNOU के ज़रिये ग्रेजुएशन में एडमिशन लिया है. देखा देखी ग्रुप की बाकी सदस्य भी आगे पढ़ाई और उसके साथ साथ सेल्फ हेल्प ग्रुप के ज़रिये आजीविका कमाने का पूरा फैसला कर चुकी है.


हेंडीक्राफ्ट के ज़रिये अपना जीवन सुधारने में लगी


इस स्कीम के तेहत - ग्रामीण अर्थव्यवस्था के दस क्षेत्रों में महिलाओं को काम करने के लिए ट्रेनिंग, आर्थिक सुविधाओं तक पहुंच और तयार किये गए सामान की बिक्री में मदद की जा रही है. इसी के चलते किसी महिला समुह ने पशु पालन का काम शुरू किया है तो किसी ने साबुन बनाने का. कोई रेशम के कीड़े की खेती कर रही है तो कोई हेंडीक्राफ्ट के ज़रिये अपना जीवन सुधारने में लगी है.


जम्मू के बदेरवाह के एक समोह ने साबुन बनाने कि फैक्ट्री शुरू की है जिस कि मदद से यह महिलाएं स्थानीय बाज़ार में साबुन बेच कर अच्छी कमाई कर रही है. समूह की प्रमुख नादिया फारूक के अनुसार आज उनके साथ काम कर रही महिलाएं आज हर महीने 3-4 हज़ार रूपये आराम से कमा रही हैं. वही पुलवामा की रहने वाली शहजादा बानू के अनुसार राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने आज उनके साथ-साथ बाकी महिलाओं का जीवन संवार दिया है और आज उनके पास मकान भी है और पशु भी और उनका जीवन भी सुखद हो चूका है.


इस ग्रुप में से 5000 महिलाओं के ग्रुप को ट्रेनिंग दी जाएगी


ऐसी ही महिला के लिए अब जम्मू-कश्मीर सरकार ने एक सितम्बर से “साथ” नाम से नई स्कीम की शुरुआत कर दी है. इस स्कीम से अभी चल रहे सेल्फ हेल्प ग्रुप को उनके तैयार माल की ब्रांडिंग और मार्केटिंग में मदद दी जा रही है. रूरल लिवलीहुड मिशन की डायरेक्टर डॉ सैयद सेहरिश असगर के अनुसार UMEED-SAATH के ज़रिये अभी तक 48 हज़ार सेल्फ हेल्प ग्रुप्स के ज़रिये 4 लाख ग्रामीण महिलाओं को रोज़गार दिया गया है. साथ ही इस स्कीम के ज़रिये 900 करोड़ रुपये की आर्थिक पूंजी भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में डाली गई. आने वाले दिनों में अब इस ग्रुप में से 5000 महिलाओं के ग्रुप को ट्रेनिंग दी जाएगी जिनमें से 100 महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप को ब्रांडिंग और मार्केटिंग की सुविधा दी जाएगी और तीन साल तक उनके तैयार किये गए सामान को देश और विदेश में बेचने में मदद दी जाएगी.


राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के ज़रिये ग्रामीण महिला आबादी के 66% की आर्थिक सिथिति सुधारने के उद्देश्य से शुरू की गई थी. उन्हें स्थायी आजीविका के अवसरों से जोड़ना और उन्हें तब तक मदद तब तक जारी रखने  जब तक वे गरीबी से बाहर नहीं आ जाते और जीवन की एक अच्छी गुणवत्ता का आनंद नहीं लेते. जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा की माने तो नए समय और नये काल में येही महिलाएं देश और प्रदेश दोनों जगह महिला शस्त्रीकरण के लिए रोल मॉडल है.


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