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Women Reservation Bill: क्या है महिला आरक्षण बिल, क्यों 27 सालों से अधर में लटका? पास हुआ तो बन जाएगा इतिहास

एच.डी. देवेगौड़ा की सरकार में साल 1996 में पहली बार महिला आरक्षण बिल पेश किया गया था, लेकिन पास नहीं हो सका. उसके बाद भी कई बार संसद में यह लाया गया, लेकिन इसे भारी विरोध का सामना करना पड़ा.

लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसद कोटा तय करने के लिए संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पेश किया जा सकता है. कांग्रेस 9 सालों से बिल को लोकसभा में पास करने की मांग कर रही है. सोमवार (18 सितंबर) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक हुई, जिसमें बिल को मंजूरी मिलने की खबर है. सूत्रों के मुताबिक, पीएम मोदी सरकार ने बिल को मंजूरी दे दी है. इसके बाद इस बात की भी चर्चा तेज हो गई है कि सरकार विशेष सत्र में विधेयक पेश कर सकती है. 

27 सालों से यह बिल अधर में लटका है. हालांकि, साल 2008 में इसे राज्यसभा की मंजूरी मिल भी गई थी, लेकिन लोकसभा में पेश नहीं हो सका था. इसके चलते संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई कोटे को लेकर कानून नहीं बन सका है. पहले जान लेते हैं इस बिल में क्या-क्या है-

क्या है महिला आरक्षण बिल?
महिला आरक्षण बिल में महिलाओं के लिए लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं में 33 फीसद या एक तिहाई रिजर्वेशन के लिए प्रस्ताव है. 33 फीसट कोटे में से एक तिहाई सीटों पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के आरक्षण की भी बात कही गई है. विधेयक में यह भी प्रस्ताव दिया गया है कि हर आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए. राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में आरक्षित सीटों को रोटेशन द्वारा आवंटित किया जा सकता है. पिछले साल दिसंबर में सरकार की ओर से पेश किए गए डेटा के मुताबिक, मौजूदा समय में लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 78 है, जो कुल सांसदों की संख्या का 15 फीसद है. वहीं, राज्यसभा में 14 प्रतिशत महिला सांसद हैं.

27 सालों से अधर में लटका है बिल
साल 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने पहली बार सदन में महिला आरक्षण बिल पेश किया था, लेकिन भारी विरोध के कारण पास नहीं हो सका. इसके बाद अलग-अलग सरकारों में समय-समय पर बिल सदन में पेश किया गया, लेकिन भारी विरोध के चलते अभी तक इसे मंजूरी नहीं मिल पाई है. बिल का सबसे बड़ा विरोध 1998 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में देखने को मिला था. बिल को लेकर सदन में हाई-वॉल्टेज ड्रामा हुआ और सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सिर्फ जोरदार बहसबाजी नहीं बल्कि, कानून मंत्री के हाथ से बिल छीनकर उसकी कॉपियां सदन में फाड़ दी गई थीं. हालांकि, 2008 में यूपीए सरकार में बिल को राज्यसभा में मंजूरी मिल गई, लेकिन लोकसभा में पेश न हो पाने के कारण बिल 27 सालों से अधर में लटका है.

कई राज्यों में 10 फीसद भी महिला विधायक नहीं
विधानसभाओं की बात करें तो कई जगह महिला विधायकों की संख्या 10 प्रतिशत भी नहीं है. आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और पुडुचेरी की विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या 10 प्रतिशत से कम है. बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली की विधानसभाओं में मौजूदा में महिला सदस्यों की संख्या 10 से 12 फीसद है. इनके अलावा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और झारखंड में महिला विधायक क्रमश: 14.44 फीसदी, 13.7 फीसद और 12.35 प्रतिशत है.

इस समय सबसे ज्यादा महिला सांसद
महिला आरक्षण बिल ऐसे समय पर लाया जा रहा है जब पहले के मुकाबले महिला सांसदों की संख्या सबसे ज्यादा है. इस समय लोकसभा में 14.36 फीसदी महिला सदस्य हैं. 2019 के आम चुनावों में 726 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं, जिनमें से 78 कैंडिडेट चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची थीं. 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में कुल 4.41 फीसद यानी 22 महिला सांसद थीं, जबकि दूसरे लोकसभा चुनाव में 45 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं. 1977 में महिला सांसदों की संख्या सिर्फ फीसद यानि 77 है.

महिला आरक्षण बिल पास हुआ तो...
अगर महिला आरक्षण बिल पास हो जाता है तो लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 179 महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी. वहीं, विभिन्न विधानसभाओं की 4,123 सीटों में से 1,361 महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी.

यह भी पढ़ें:
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