27 साल से अटका महिला आरक्षण बिल मंगलवार (19 सितंबर) को नए संसद भवन की नई लोकसभा में पेश किया गया और बुधवार से इस पर चर्चा शुरू हो गई. बिल पेश किए जाने के बाद कई सवाल उठ रहे हैं कि महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की पहचान कैसे की जाएगी और अगर बिल पास होता है तो इसको कब से लागू किया जा सकेगा. तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओर ब्रायन ने कहा कि बिल के लागू होने के लिए 2034 तक का इंतजार करना होगा क्योंकि उससे पहले यह संभव नहीं. मतलब बिल के लागू होने के लिए 11 साल का इंतजार और करना पड़ सकता है.


1996 में पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा ने पहली बार महिला आरक्षण बिल पेश किया था, लेकिन चुनाव में महिलाओं के लिए आरक्षण की पहल राजीव गांधी सरकार में हुई थी. 1987 में राजीव गांधी सरकार में पंचायती राज और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों के आरक्षण का सुझाव दिया गया था और नरसिम्हा राव की सरकार में इसको मंजूरी मिल गई.


पहली बार देवेगौड़ा सरकार में पेश हुआ था महिला आरक्षण बिल
12 सितंबर, 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा की सरकार में पहली बार संशोधन विधेयक (81वां संशोधन) पेश कर लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों के आरक्षण का प्रस्ताव दिया गया था. बिल को लोकसभा में सांसदों का खूब समर्थन मिला, लेकिन कई ओबीसी सांसदों ने इसका विरोधभी किया और इसमें परिवर्तन की मांग उठाई. इसके बाद चयन समिति के पास बिल भेजा गया, जिसकी प्रमुख पूर्व सीपीआई नेता गीता मुखर्जी थीं.  9, दिसंबर, 1996 को फिर से बिल पेश किया गया, लेकिन पास नहीं हो सका. 


गुजराल सरकार में भी नहीं बनी बिल पर सहमति
अप्रैल, 1997 में देवेगौड़ा ने इस्तीफा दे दिया और इंदर कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने. गुजराल सरकार में दो बार ऑल पार्टी मीटिंग हुईं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और 16 मई, 1997 को जब बिल पेश किया गया तो ओबीसी सांसदों ने इसका फिर से विरोध किया. 13 अगस्त, 1997 को पूर्व पीएम गुजराल ने खुद सदन में यह बात स्वीकार की कि बिल को लेकर हर पार्टी में अलग-अलग राय है. इस तरह उस साल भी बिल पास नहीं हो सका.


अटल बिहारी वाजपेयी की कोशिशों के बावूजद पास नहीं हो सका था बिल
12 जुलाई, 1998 को अटल बिहार वाजपेयी सरकार में ममता बनर्जी और सुमित्रा महाजन ने महिला आरक्षण बिल फिर से पेश करने की मांग की. 20 जुलाई को बिल पेश भी किया गया, लेकिन हाई वोल्टेज ड्रामे की वजह से यह पास नहीं हो सका. समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल बिल के विरोध में थे. आरजेडी के नेता ने कानून मंत्री के हाथ से बिल की कॉपी लेकर भी फाड़ दी थी, जिसका मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव ने बचाव किया था. ओबीसी आरक्षण के साथ-साथ उस दौरान मुस्लिम महिलाओं के लिए कोटे की भी मांग उठी थी. 1999 में जयललिता के वाजपेयी सरकार समर्थन वापस लेने के बाद विश्वास मत लिया गया और सरकार एक वोट से हार गई और बिल फिर से लटक गया. 23 दिसंबर, 1999 को अटल बिहार वाजपेयी ने दोबारा बिल पेश किया और एक बार फिर विपक्ष ने इसका विरोध किया. 7 मार्च, 2003 को वाजपेयी सरकार ने एक बार फिर बिल पर सहमति बनाने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली और 2004 में एनडीए सत्ता से बाहर हो गई.


2004 में राज्यसभा में पास हुआ
2004 में यूपीए की सरकार आई और बिल फिर से चर्चा में आया. 22 अगस्त, 2005 को सोनिया गांधी ने महिला आरक्षण बिल पर सहमति की कोशिश के लिए यूपीए के घटक दलों और लेफ्ट के साथ मीटिंग की. दो दिन बाद पूर्व पीएम  मनमोहन सिंह ने एनडीए और अन्य दलों के साथ बैठक कर बिल पर चर्चा की. 6 मई, 2008 को पहली बार यूपीए सरकार ने राज्यसभा में बिल पेश किया और 8 मई को इसे स्टैंडिंग कमेटी के पास भेज दिया गया. 17 दिसंबर को स्टैंडिंग कमेटी ने रिपोर्ट सौंपी और 25 फरवरी, 2010 को मनमोहन सरकार ने बिल को मंजूरी दे दी. इसके बाद 9 मार्च को बिल राज्यसभा में फिर से पेश किया गया और पास हो गया. हालांकि, लोकसभा में इसे पेश नहीं किया जा सका.


19 सितंबर को पेश किया गया नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल
साल 2014 में एनडीए की सरकार आने के बाद से कांग्रेस लगातार लोकसभा में महिला आरक्षण बिल को पास कराए जाने की मांग कर रही है. विशेष सत्र के ऐलान के बाद कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में पार्टी ने आरक्षण बिल का प्रस्ताव दिया और लोकसभा में इसे पास कराने पर भी चर्चा की. 19 सितंबर को गणेश चतुर्थी के अवसर पर नई संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिल का ऐलान किया और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बिल पेश किया. हालांकि, इस बार नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल के नाम से इसे पेश किया गया. बुधवार से बिल पर चर्चा शुरू हो गई है. हालांकि, इस बार पहले की तरह हंगामा नहीं हुआ.


क्या 2034 में लागू होगा महिला आरक्षण बिल?
अब इस बात की भी चर्चा है कि अगर बिल पास हो भी जाता है तो इसे 2024 के चुनाव में लागू नहीं किया जा सकेगा. बिल लागू करने के लिए परिसीमन का काम पूरा होना जरूरी है, जो 2026 में शुरू होगा. अब जब 2021 की जनगणना होगी उसके बाद ही लोकसभा की सीटों का परिसीमन होगा और महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की पहचान की जा सकेगी. ऐसे में हो सकता है कि बिल के लागू होने के लिए 2029 के लोकसभा चुनाव या 2034 के चुनाव तक का इंतजार करना पड़े.


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