परमिंदर ने कहा कि उसके पति के जाते ही उसके ससुराल वालों ने उसे मानिसक और शारीरिक तौर पर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया और उसके घर वालों से हर महीने एक लाख रुपए दहेज के रूप में मांगने शुरू कर दिए.
उन्होंने कहा, ‘‘ससुराल वालों ने मेरे घरवालों से कहा कि उन्हें (ससुराल वालों को) मुझे खाना खिलाने के लिए पैसे चाहिए और मेरे माता-पिता के इनकार करने पर उन्होंने मुझे प्रताड़ित किया.’’
परमिंदर ने कहा कि इन सब प्रताड़नाओं के बीच उसके ससुराल वाले अचानक कनाडा चले गए और उसके बाद परमिंदर की ससुराल वालों से और अपने पति से कभी कोई बात नहीं हुई. बाद में उसके पति ने एक तरफा तलाक दे कर दूसरी शादी कर ली.
परमिंदर और उसकी तरह धोखा खा चुकीं अन्य महिलाएं अब एक ऐसे विशेष अंतरराष्ट्रीय कानून की मांग कर रही हैं जिससे फरार पतियों का प्रत्यर्पण मुमकिन हो सके.
शिल्पा (बदला हुआ नाम) 2010 में शादी कर अमेरिका जाने से पहले एक आईटी कंपनी में काम करती थी. उसने कहा, ‘‘मैं जैसे ही कैलिफोर्निया पहुंची मेरे पति ने मेरे सारे दस्तावेज और पैसे ले लिए. उसने कई बार मेरे साथ बलात्कार किया और फिर सड़क पर फेंक दिया. मेरे पास कोई विकल्प नहीं था और वापस आने को मजबूर थी.’’
30 साल की शिल्पा अपनी आठ साल की बेटी के साथ दिल्ली में रहती है. उन्होंने अपने पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई लेकिन वह तब से लौटकर नहीं आया.
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने हाल ही में सोशल मीडिया पर देखा कि उसने फिर शादी कर ली है. यह सही कैसे है और क्यों उसे न्याय के घेरे में नहीं लाया गया.’’
इसी तरह के हालातों का सामना कर चुकी स्मृति (बदला हुआ नाम) को उसके पति ने मेलबर्न में अकेला छोड़ दिया था, जिसके बाद वो डिप्रेशन में चली गईं.
परमिंदर, शिल्पा और स्मृति का मानना है कि एक अंतरराष्ट्रीय कानून उनकी जैसी महिलाओं को कुछ हद तक इंसाफ दिला पाएगा.
उन्होंने धारा 498ए में बलात्कार, मारपीट, धोखाधड़ी और छल जैसे कई बड़े अपराधों को शामिल किए जाने की मांग भी की, जिससे फरार पतियों का प्रत्यर्पण संभव हो सके.
इस पूरे प्रकरण में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि एनआरआई शादियों से जुड़ी बढ़ती समस्याओं से निपटने के पूर प्रयास किए जा रहे हैं।
सरकार ने हाल ही में अपनी पत्नियों को छोड़ने वाले 33 प्रवासी भारतीय या एनआरआई के पासपोर्ट रद्द किए थे.