आम आदमी पार्टी के 6 साल: भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कोख से जन्मी राजनीतिक पार्टी आम आदमी पार्टी (AAP) अब छह साल की हो गई है. वैकल्पिक राजनीति करने आई यह पार्टी दरअसल अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी लहर की पैदावार है, लेकिन वक़्त का सितम देखिए, ये पार्टी सियासत की जमीन पर दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करती गई, लेकिन जिस कोख से पैदा हुई, उससे अब बिल्कुट बिछड़ चुकी है. अन्ना हजारे तो पार्टी के बनने के साथ ही इससे दूर हो गए, लेकिन पार्टी की स्थापना के वक़्त जो बड़े नाम साथ थे, रफ्ता-रफ्ता एक-एक करके किनारे किए और पार्टी अंदर और बाहर एक ही चेहरे की धूरी बनकर रह गई.
आज पार्टी का छठा स्थापना दिवस मनाया गया. पार्टी के डीडीयू मार्ग स्थित मुख्यालय में समारोह का आयोजन किया गया. इसमें पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत पार्टी के कई नोताओं की मौजूदगी रही. लेकिन जैसे आज की तस्वीर का मिलान 2012 की पुरानी तस्वीर से करने की कोशिश की गई तो तस्वीर बिल्कुल बदली-बदली सी नजर आई. पार्टी के सर्वेसर्वा केजरीवाल अब दिल्ली के सीएम बन चुके हैं. पार्टी के दिल्ली में 67 विधायक हैं. पंजाब में दूसरी बड़ी पार्टी बन चुकी है. संसद के दोनों सदनों में उनके सदस्य हैं.
अब ज़रा अतीत के पन्ने को पलटिए, जन लोकपाल की मांग को लेकर अन्ना के नेतृत्व में चले आंदोलन की तस्वीरें एलबम में खंगालें. कभी जंतर मंतर तो कभी रामलीला मैदान में जनता का हुजूम हाजिर रहता था. अपना हर काम छोड़ समर्थन में खड़े रहते थे. तभी तो दिल्ली में आंदोलनकारियों का जन सैलाब दिखा था. हर कोई दिल्ली से हुंकार भर रहा था कि देश में लोकपाल बिल आना चाहिए. इसी आंदोलन के दौरान केंद्र में सत्तासीन पार्टी द्वारा मिल रहीं चुनौतियों को लेकर केजरीवाल ने अपने साथियों के साथ मिलकर 24 नवंबर 2012 को जंतर मंतर पर राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की थी और 26 नवंबर 2012 को राजनीतिक पार्टी बनाई थी.
जब पार्टी बनी तो कुछ चेहरे की याद आपको जरूर आती होगी. योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, प्रोफेसर अजीत झा, प्रोफेसर आनंद कुमार, इलियास आजमी, शाजिया इल्मी, अशोक अग्रवाल, मयंक गांधी... अब ये चेहरे इस पार्टी के अतीत का हिस्सा बने चुके हैं.
2013 में बनाई पहली बार सरकार
पार्टी ने पहली बार दिसंबर 2013 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ा. झाड़ू चुनाव चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरी. आप ने उक्त चुनाव में 28 सीटों पर जीत हासिल की और कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाई. केजरीवाल ने 28 दिसंबर 2013 को दिल्ली के 7वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. मनीश सिसोदिया, गोपाल राय, प्रशांत भूषण, संजय सिंह, कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव समेत कई बड़े नेताओं पर दिल्ली की जनता ने विश्वास दिखाया.
जिस लोकपाल की मांग की उपज रही पार्टी ने 49 दिनों के बाद ही विधानसभा में उसे पेश किया, लेकिन समर्थन नहीं मिला. इसके बाद केजरीवाल ने त्यागपत्र दे दिया और सरकार गिर गई. इसके बाद फरवरी 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की झाड़ू ऐसी चली कि पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीत कर इतिहास रच दिया. एक बार फिर लगा कि दिल्ली की जनता ने केजरीवाल की सरकार पर पूरा विश्वास दिखाया.
6 साल की पार्टी का रिपोर्ट कार्ड
6 साल की मुद्दत में ये पार्टी करीब साढ़े तीन साल सत्ता में रही. ऐसे में इस पार्टी की सरकार की उपलब्धियां देखनी या खामियां ढूंढनी हो तो पैमाना भी साढ़े तीन ही होना चाहिए. दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में कई अच्छे काम किए हैं. सरकारी स्कूल के रखरखाव में सुधार हो या बस पास को ऑनलाइन करना, ऐसे कई कदम सरकार उठाए जो काबिले तारीफ रहे.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कई अच्छे काम सरकार ने किए. मोहल्ला क्लीनिक की शुरूआत हुई उससे कई गरीब लोगों को उपचार में राहत मिली. वहीं बिजली के दाम आधे करने के अपने वायदे को भी सरकार ने पूरा किया. पार्टी लगातार अपने काम को लेकर चर्चा में रही साथ ही दिल्ली के उपराज्यपाल के साथ अनबन को लेकर काम प्रभावित होने के आरोप भी पार्टी पर लगाते रहे.
एक तरफ काम का कमाल तो दूसरी तरफ आपसी मतभेद का बवाल
दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार जहां एक ओर अपने काम को लेकर चर्चा में रही तो वहीं दूसरी तरफ पार्टी के आंतरिक कलह की वजह से किरकिरी भी हुई. जैसे-जैसे वक्त बीतता गया पार्टी में भीतरी कलह बाहर आने लगी. आज हाल यह है कि 2012 में जब पार्टी शुरू हुई तब जो लोग पार्टी का हिस्सा थे वह अब पार्टी से बाहर हैं या बाहर कर दिए गए हैं.
प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जो केजरीवाल सरकार के सबसे महत्वपूर्ण सदस्यों में रहे और पार्टी के संस्थापक सदस्य भी थे. दोनों ने केजरीवाल और पार्टी से अनबन के बाद पार्टी से बाहर कर दिए गए. इन दोनों के अलावा शाजिया इल्मी ने भी पार्टी छोड़ दिया. उन्होंने पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की कमी का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ा था.
वहीं प्रोफेसर आनंद कुमार आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य थे. 2014 के लोकसभा चुनावों में इन्होंने उत्तर पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा, लेकिन बीजेपी के मनोज तिवारी से हार गए. 2015 में प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव के साथ प्रो. आनंद कुमार को भी आप ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
वहीं पूर्व जल मंत्री कपिल मिश्रा भी बागी हो गए, और अब वह लगातार पार्टी पर हमलावर हैं और केजरीवाल पर कई गंभीर आरोप लगा चुके हैं. वहीं पार्टी के स्टार प्रचारक कुमार विश्वास भी पार्टी से खफा हैं. इन दिनों अलग-अलग मंचों से वह कई बार केजरीवाल पर हमला बोल चुके हैं. राज्यसभा ना भेजे जाने पर उन्होंने खुलकर अपना विरोध जताया था. जिसके बाद पार्टी ने उन्हें राजस्थान प्रभारी के पद से भी हटा दिया था. हालांकि वो अभी भी पार्टी में हैं. वहीं आशिष खेतान, आशुतोष भी पार्टी को अलविदा कह चुके हैं.
पिछले 6 साल में पार्टी अपने कामों की वजह से कम और आतंरिक कलह की वजह से ज्यादा चर्चा में रही है. पार्टी के कई सदस्यों ने अरविंद केजरीवाल पर अपने फैसले थोपने का आरोप लगाया है. अांतरिक कलह के वाबजूद भी आप सरकार ने दिल्ली के बाहर पंजाब में शानदार प्रदर्शन करते हुए विपक्ष में है.
दिल्ली की जनता 6 साल बाद भी आम आदमी पार्टी पर कितना विश्वास करती है यह तो अगला विधानसभा चुनाव ही बताएगा लेकिन 6 साल में पार्टी ने काम कई अच्छे किए लेकिन वैकल्पिक राजनीति का दावा करने वाली पार्टी अपने दल के भीतर में आतंरिक लोकतंत्र नहीं ला सकी.