World AIDS Day 2022: एचआईवी एड्स एक जानलेवा बीमारी है. इसके हो जाने से किसी भी इंसान की मौत होना निश्चित है. लेकिन इसके हो जाने से लोगों को घबराना भी नहीं चाहिए, क्योंकि इस बीमारी के हो जाने के बाद भी लंबी उम्र जी सकता है. औसत आयु तो कम हो जाएगी लेकिन एक सामान्य जिंदगी जी सकता है. इसका इतिहास भी खुद में रोचक है.
जानकारों के अनुसार HIV का इतिहास जानवरों से शुरू होता है. सबसे पहले 19वीं सदी में अफ्रीका के खास प्रजाति के बंदरों में एड्स का वायरस मिला. ऐसा माना जाता है कि बंदरों से ये बीमारी इंसानों में फैला. दरअसल अफ्रीका के लोगों को बंदर खाने की आदत थी. ऐसे में ये अनुमान गलत नहीं लगता कि बंदर को खाने से वायरस ने इंसान के शरीर में घुस गया होगा.
सबसे पहले 1920 में ये खतरनाक बीमारी अफ्रीका के कांगो की राजधानी किंशासा में फैली थी. कांगो में 1959 में एक बीमार आदमी के खून के नमूने में सबसे पहले HIV वायरस मिला था. माना जाता है कि वह पहला HIV संक्रमित व्यक्ति था. उस समय किंशासा सेक्स ट्रेड का अड्डा माना जाता था. इस तरह सेक्स ट्रेड और अन्य तरह के माध्यमों से ये बीमारी दूसरे देशों में पहुंची.
1981 में एड्स की पहचान हुई
एड्स बीमारी की पहचान 1981 में हुई. लॉस एंजेलिस के डॉक्टर माइकल गॉटलीब (Michael Gottlieb) ने पांच मरीजों में एक अलग तरह का निमोनिया पाया था. इन सभी मरीजों में बीमारी से लड़ने वाला सिस्टम अचानक कमजोर पड़ गया. सबसे अलग बात ये थी कि, पांचों मरीज समलैंगिक थे, इसलिए शुरुआत में डॉक्टरों को लगा कि यह बीमारी केवल समलैंगिकों में ही होती होगी. इसीलिए एड्स को ग्रिड यानी, गे रिलेटेड इम्यून डिफिशिएंसी का नाम दिया गया.
बाद में जब दूसरे लोगों में भी यह वायरस मिला तो पता चला कि यह कॉन्सेप्ट गलत है. पहली बार 1982 में सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन, अमेरिका (Centers for Disease Control and Prevention) ने इस बीमारी के लिए AIDS टर्म का इस्तेमाल किया.
लाल रिबन और एड्स
दुनिया में पहली बार 1991 में लाल रिबन को AIDS का निशान बनाया गया. इसके पीछे के खास कारण ये था कि, इसका संबंध खून से था. एड्स (AIDS) भी खून से फैलने वाली बीमारी है और खून का रंग लाल होता है. इसलिए एड्स को डिनोट करने के लिए लाल रंग को चुना गया.
खाड़ी युद्ध में लड़ने वाले अमेरिकी सैनिकों के लिए पीले रंग के रिबन का इस्तेमाल किया गया था. जिन लोगों ने एड्स के निशान को चुना वे, अमेरिकी सैनिकों के लिए इस्तेमाल होने वाले पीले रिबन से प्रभावित थे. इसलिए उन्होंने एड्स के निशान के तौर पर एक रिबन बनाने का आइडिया रखा, बाकी रंग का चुनाव खून के आधार पर तय किया गया.
एड्स को लेकर जाने क्या है फैक्ट
- मच्छर के काटने से एचआईवी संक्रमण नहीं फैलता है. एचआईवी मच्छर की लार में प्रजनन या जीवित नहीं रहता है. एचआईवी एक नाजुक वायरस है जो मानव शरीर के बाहर जिंदा नहीं रहता है.
- रक्तदान से एचआईवी नहीं हो सकता. रक्त एकत्र करने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री जीवाणु रहित होती है और केवल एक बार उपयोग की जाती है. लोगों को नियमित रूप से लाइसेंस प्राप्त ब्लड बैंक या ऐसे ब्लड बैंक के तरफ से आयोजित स्वैच्छिक रक्तदान शिविर में रक्तदान करें.
- देखभाल करने, साझा करने और मित्रता से एचआईवी नहीं फैलता है. न तो एचआईवी और न ही एड्स को ठीक किया जा सकता है.
- एचआईवी अब एक पुरानी प्रबंधकीय बीमारी है और इसे एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी से दबाया जा सकता है. पर्याप्त सावधानियों के साथ हम एचआईवी से संक्रमित अपने प्रियजनों की देखभाल कर सकते हैं.
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