15 सितंबर को जारी विश्व बैंक (World Bank) की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2023 में दुनिया को मंदी का सामना करना पड़ सकता है. इस मंदी की वजह दुनियाभर में इंटरेस्ट रेट का बढ़ना बताया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल इकोनॉमी में सबसे बड़ा स्लो डाउन देखा जा रहा है. पहले कोविड -19 उसके बाद यूक्रेन-रूस युद्ध और अब वर्ल्ड बैंक की हाल में आई रिपोर्ट ने चिंता बढ़ा दी है. 


पिछले कुछ समय से विश्व भर पर मंडरा रहे मंदी के खतरे का असर क्या भारत पर भी पड़ेगा. इस पर हमने वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट को खंगाला है.  


क्या कहती है वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट 


हाल ही में जारी हुई वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल इकोनॉमी में 1970 के बाद की ये सबसे बड़ी गिरावट है जो काफी परेशान करने वाली है. इसका सबसे ज्यादा प्रभाव अमेरिका, चीन और यूरोपियन देशों पर पड़ेगा. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर दुनिया के इन देशों में इकोनॉमी जरा भी पटरी से उतरी तो जो मंदी का प्रभाव है सीधे तौर पर दिखना शुरू हो सकता है. विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविड मलपास ने अपने एक बयान के दौरान कहा था कि मेरी सबसे बड़ी चिंता ये है कि ये रुझान लंबे समय तक चलने वाले परिणामों के साथ बने रहेंगे, जो उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (Developing Economies) में लोगों के लिए विनाशकारी हैं. 


फिलहाल यूएस सेंट्रल बैंक से लेकर, बैंक ऑफ इंग्लैंड, सेंट्रल बैंक ऑफ जापान ने मंहगाई पर काबू पाने के लिए ब्याज दर को बढ़ाने की तैयारी कर ली है. वहीं सेंट्रल बैंक ऑफ चाइना ने ब्याज दरों में कटौती रोक दी है. 




क्या है मंदी का कारण


वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका, इंग्लैंड और इंडिया सहित दुनिया के तमाम बड़े देशों ने महंगाई को काबू करने के लिए केंद्रीय बैंक इंटरेस्ट रेट लगातार बढ़ाया है. इसका असर इकोनॉमी ग्रोथ पर पड़ा और ये एक बड़ा कारण की दुनिया मंदी की तरफ बढ़ रही है. 


अमेरिका में मंदी भारत के लिए अच्छी कैसे?


महिंद्रा ग्रुप के चीफ इकॉनोमिस्‍ट डॉ. सच्चिदानंद शुक्‍ला कहते हैं कि पिछले 2-3 बार हल्‍की मंदी का जो अनुभव रहा है वह कुछ तिमाहियों बाद भारत के लिए सकारात्‍मक था. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि वैश्विक मंदी की दशा में हमारे देश का एक्‍सपोर्ट और फाइनेंशियल सेक्‍टर प्रभावित नहीं होगा. शुक्‍ला कहते हैं कि  मंदी के दौर में विदेश से जिन सामानों का हम आयात करते हैं, वह सस्‍ते हो जाते हैं. उदाहरण के तौर पर क्रूड ऑयल और अन्‍य कमोडिटीज. जहां दुनिया भर की अर्थव्‍यवस्‍थाएं निगेटिव में होती हैं या उनकी ग्रोथ काफी कम होती है, वहीं भारत की ग्रोथ अगर 6 फीसदी भी रहती है तो हम वैश्विक पूंजी आकर्षित करने में सफल रहेंगे. 





नौकरीपेशा लोगों की बढ़ेगी दिक्कतें


विशेषज्ञों की माने तो कंपनियों की आर्थिक रफ्तार घटने पर नौकरियां घटेंगी. प्राइस वाटर्सहाउस कूपर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया कि दुनियाभर में इस मंदी के कारण 50 फीसदी कंपनियां पहले ही छंटनी की तैयारियां कर रही हैं. जबकि 46 प्रतिशत कंपनियां बोनस को खत्म करने के बारे में विचार कर रही हैं. इसी सर्वे के अनुसार लगभग 44 प्रतिशत कंपनियां ऐसी है जिसने नए कर्मचारी को ऑफर देकर उसे वापस ले लिया है. 


वहीं भारत की बात करें तो भारत में पहले ही कोरोना महामारी के कारण 25,000 स्‍टार्टअप कर्मचारी अपनी नौकरी गंवा चुके हैं. इस साल यानी 2022 में 12,000 से ज्यादा लोगों को नौकरी से निकाला गया है. BBC की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 6 महीने में भारत ने स्टार्ट-अप कंपनियों से 11 हजार कर्मचारियों की छंटनी की है. हालात ऐसे ही बनते रहे तो इस साल के अंत तक यह तादाद 60 हजार तक पहुंच सकती है. छंटनी करने वालों में ई-कॉमर्स कंपनियां सबसे आगे हैं. इसके बाद एडटेक स्टार्ट-अप का नंबर है.


बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार फेडएक्स जो दुनिया की जानी-मानी डिलीवरी कंपनी है उसने अपने निवेशकों से पैकेजिंग डिलीवरी में भारी कमी आने की बात कही है. इसका असर अभी से ही कंपनी के शेयर पर पड़ना शुरू हो गया है. ऐसे में कंपनी अपनी सर्विस में कटौती कर सकती है. जिसके परिणामस्वरूप दर्जनों दफ्तर बंद की जा सकती है. फेडएक्स का ये कदम सैकड़ों कर्मचारियों की नौकरियों पर तलवार लटका सकता है. साथ ही भारत में फेडेएक्स के कंपनियों में काम कर रहे कर्मचारियों की नौकरी पर भी चलवार लटक सकती है. दरअसल ये कंपनी भारी कॉस्ट कटिंग की तैयारी कर रहा है. FedEx नई भर्तियों पर रोक लगाने की तैयारी कर रहा है. FedEx की कई ऑफिस बंद करने की भी योजना है. जानिए पूरी डिटेल्स वरुण दुबे से.




लेकिन इस लिस्ट में केवल फेडएक्स ही नहीं है बल्कि अमेजन और रॉयल मेल जैसी बड़ी कंपनियां भी शमिल हैं. अब देखना ये होगा ही इस इकोनॉमिक स्लो डाउन से निपटने के लिए भारत सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया क्या कदम उठाती है. क्योंकि उनके द्वारा लिया गया फैसला ही ये तय करेगा कि भारत किस तरह से इस मंदी का सामना कर पाएगा.