कभी गांवों का देश कहा जाने वाला भारत पिछले कुछ सालों में शहरीकरण की ओर रफ्तार पकड़ रहा है. हाल ही में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट सामने आई है जिसके अनुसार भारत में तेजी से बढ़ते शहरी जनसंख्या के कारण आने वाले 15 साल में 840 बिलियन डॉलर यानी करीब 68 लाख करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत होगी. जिसका मतलब है कि देश में बढ़ती शहरी जनसंख्या और शहरों को संसाधन उपलब्ध कराने के लिए प्रति वर्ष औसतन 55 बिलियन डॉलर यानी तकरीबन 4.4 लाख करोड़ रुपये निवेश करना होगा.
रिपोर्ट के अनुसार उभरते वित्तीय अंतर को पूरा करने के लिए देश को निजी और वाणिज्यिक निवेश की जरूरत पर जोर देना पड़ेगा. साल 2036 तक भारत के लगभग 60 करोड़ लोग शहर में रह रहे होंगे जो कि भारत के कुल जनसंख्या का 40 प्रतिशत होगा. वर्तमान में, केंद्र और राज्य सरकारें शहर के बुनियादी ढांचे का 75 प्रतिशत से अधिक वित्त पोषण करती हैं, जबकि शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) अपने स्वयं के राजस्व से मुश्किल से 15 प्रतिशत वित्त पोषण करते हैं.
क्यों बुनियादी ढांचे के विस्तार की जरूरत
आसान भाषा में समझिए की अगर भारत के शहरी क्षेत्रों में लोग बसने लगेंगे और आबादी का दबाव बढ़ेगा तो स्वच्छ पानी, बिजली सप्लाई और सुरक्षित सड़क परिवहन की मांग भी बढ़ेगी. आने-जाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन और बिजली के साथ वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर चुनौतियां बढ़ेगी. वर्तमान की बात करें तो मुंबई में आसपास के रहने वाले लोग दफ्तर तक पहुंचने के लिए घंटों का सफर तय करते हैं. ट्रेन, बाइक और कार से वहां पहुंचते हैं. बारिश में बाढ़ के हालात बनने पर मुश्किलें और बढ़ जाती हैं. वहीं शहर में जनसंख्या के बढ़ने से कार्बन का उत्सर्जन और घर बनाने के लिए स्टील और कंक्रीट का प्रोडक्शन भी बढ़ेगा.
हालांकि देश के महानगरों में बढ़ने वाली आबादी का सीधा असर भारत के जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण के रूप में दिखाई भी देगा. लेंसेट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार राजधानी दिल्ली में हर साल 2 करोड़ लोग जहरीली हवा से जूझते हैं. एयर पॉल्यूशन के कारण हर साल 17,500 अकाल मौते होती हैं. यह आंकड़ा और बढ़ सकता है.
निजी निवेश बहुत कम
विश्व बैंक की रिपोर्ट कहती है कि भारत के शहरों में सुविधाएं देने के मामले में निजी कंपनियों का निवेश काफी कम है. वर्तमान में भारतीय शहरों की आधारभूत संरचना की जरूरतों का सिर्फ 5 प्रतिशत ही निजी स्रोतों के माध्यम से वित्तपोषित हो रहा है. सरकार का वर्तमान (2018) वार्षिक शहरी अवसंरचना निवेश 16 बिलियन डॉलर तक पहुंच रहा है.
नगर पालिका को मजबूत बनाने की जरूरत
विश्व बैंक में भारत के कंट्री डायरेक्टर अगस्टे तानो क़ौमे ने इस गैप को भरने के लिए सुझाव देते हुए कहा कि, 'देश को शहरों का स्मार्ट, समावेशी और टिकाऊ शहरीकरण के लिए बड़ी मात्रा में वित्त पोषण की जरूरत है. शहरों को सक्षम बनाने के लिए शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाना होगा. यूएलबी को इतना मजबूत बनाना होगा कि वो निजी स्रोतों से ज्यादा उधार ले सके. इससे ही एक बढ़ती शहरी आबादी के जीवन स्तर में सुधार लाने का स्थायी तरीका खोजा जा सकता है.
शहरी एजेंसियों की क्षमताओं का विस्तार की सिफारिश
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को बड़े पैमाने पर चलाने के लिए शहरी एजेंसियों की क्षमताओं का बढ़ाने की सिफारिश की गई है. वर्तमान की बात करें तो देश के 10 सबसे बड़े यूएलबी पिछले तीन वित्तीय वर्षों में अपने कुल पूंजीगत बजट का केवल दो-तिहाई खर्च कर पाए हैं. इसके अलावा स्थानीय निकायों को लेकर किसी भी तरह के ठोस नियम नहीं है जिसके कारण राजस्व संग्रह करने की उनकी अक्षमता के चलते ही अधिक निजी वित्त पोषण नहीं हो पा रहा है.
साल 2011 से लेकर साल 2018 के बीच, निम्न और मध्यम आय वाले देशों के सकल घरेलू उत्पाद के औसत 0.3-0.6 प्रतिशत की तुलना में शहरी संपत्ति कर सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.15 प्रतिशत था. नगरपालिका सेवाओं के लिए कम सेवा शुल्क भी उनकी वित्तीय व्यवहार्यता और निजी निवेश के प्रति आकर्षण को कम करता है. मध्यम अवधि में रिपोर्ट, कराधान नीति और राजकोषीय हस्तांतरण प्रणाली सहित संरचनात्मक सुधारों की एक श्रृंखला का सुझाव देती है. इसके जरिये शहरों को ज्यादा निजी वित्त पोषण का लाभ उठाने की अनुमति दी जा सकेगी.
इस खाई को भरने के उपाय
ग्लोबल लीड, सिटी मैनेजमेंट एंड फाइनेंस, वर्ल्ड बैंक और रिपोर्ट के सह-लेखक रोलैंड व्हाइट ने बताया कि, 'केंद्र सरकार निजी वित्त पोषण तक पहुंचने के लिए शहरों के सामने आने वाली बाजार से जुड़ी दिक्कतों को हटाने में काफी बड़ी भूमिका निभा सकती है. इसी रिपोर्ट में कई उपायों का प्रस्ताव है जो शहर, राज्य और संघीय एजेंसियों द्वारा भविष्य को ध्यान में रख कर उठाए जा सकते हैं. इसके जरिये निजी वाणिज्यिक वित्त भारत की शहरी निवेश चुनौती के समाधान का एक बड़ा हिस्सा बन जाएगा.
भारत में कितने गांव
हमारे देश में गांव की संख्या 628,221 है. वहीं अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा गांव है. इस राज्य में एक लाख 107,753 गांव हैं. वहीं दूसरी तरफ भारत का छेत्रफल के आधार पर सबसे छोटा राज्य गोवा है जिसमें सिर्फ 411 गांव हैं.
बढ़ रही है भारत की जनसंख्या
वहीं दूसरी तरफ विश्व जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार जनसंख्या वृद्धि के लिहाज से भारत चीन को इस साल पछाड़ कर दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन जाएगा. वहीं रिपोर्ट में विश्व की आबादी 2080 के आसपास 1040 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है. भारत की आबादी बात करें तो यहां की आबादी 1 अरब 32 करोड़ 17 लाख 10 हजार है, जो कि दुनियाभर की लगभग 17.5 प्रतिशत आबादी है. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की आबादी अभी लगभग 1 अरब 30 करोड़ है. साल 1960 में भारत में जन्म दर 5.91 थी जो अब घटकर 2.24 हो गई है.
अनुमान के मुताबिक भारत साल 2100 तक चीन को पीछे कर दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा. हालांकि लैंसेट के शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत की जनसंख्या में कमी आएगी और इस सदी के आखिर तक भारत की जनसंख्या एक अरब 10 करोड़ हो जाएगी. सरकार जनसंख्या नियंत्रण में लोगों को सहायता देने के लिए जागरूक कर रही है और इसपर कानून बनाने पर भी विचार कर रही है.
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