सोशल मीडिया को लेकर असमंजस में हैं विश्व के बड़े नेता, रायसीना डायलॉग में उभरी ये चिंताएं
‘सोशल मीडिया ने कहीं न कहीं लोकतंत्र और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमज़ोर किया है.’ इस बातपर इन वैश्विक नेताओं ने कमोवेश सहमति जताई. लेकिन इन नेताओं ने ये भी कहा कि सोशल मीडिया की ताक़त को अनदेखा नहीं किया जा सकता.
नई दिल्ली: दिल्ली के ताज पैलेस होटल में चल रहे तीन दिवसीय रायसीना डायलॉग के दूसरे दिन सबसे पहले ‘हैकिंग डेमोक्रेसी’ विषय पर चर्चा हुई. ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के इस सालाना विमर्श की शुरुआत मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में हुई थी. बुधवार को ‘हैकिंग डेमोक्रेसी’ पर चर्चा का संचालन विदेश मंत्रालय में पॉलिसी एडवाईज़र अशोक मलिक ने किया. इस चर्चा में समाज में शोशल मीडिया की भूमिका को लेकर वैश्विक राजनीति को प्रभावित करने वाली कई शख़्सियतों ने अपनी चिंताएं ज़ाहिर कीं. इसके अलावा कई अन्य चर्चाओं के दौरान पश्चिमी देशों की मनमानी और चीन के समक्ष बुलंद भारत की ताक़त पर भी आधिकारिक तस्वीर सामने आई.
कई देशों के पूर्व प्रधानमंत्री भी थे शामिल
‘हैकिंग डेमोक्रेसी’ पर बोलने वाले नेताओं में डेनमार्क के पूर्व प्रधानमंत्री एंडर्स फॉगआर, मैरियटशचाके, जेन हॉल ल्यूट, इज़रायल के मेजर जनरल एमोस गिलेड और कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्रीस्टीफन हार्पर भी शामिल थे.
अनोखा पाठ्यक्रम : न्यूज़ और प्रोपोगैंडा
बच्चों को प्रोपोगैंडा वाली ख़बरों से बचाने के लिए अर्थशास्त्री और कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफ़नहार्पर ने एक ऐसे पाठ्यक्रम को बनाए जाने की इच्छा जतायी जिसके तहत बच्चे ये सीख सकें किखबरों को किस तरह पढ़ना चाहिए.
स्पष्ट नहीं है शोशल मीडिया की भूमिका
समाज और लोकतांत्रिक मूल्यों में शोषक मीडिया की भूमिका दोधारी तलवार की तरह है. अभी इसकी सकारात्मकता को ठीक-ठीक परिभाषित किया जाना बाक़ी है. इस आशय को लेकर कईनेताओं ने अपनी चिंताएं साझा कीं. साइबर स्पेस इंस्टीट्यूट की प्रेसिडेंट मैरियट शचाके ने इस बातको समझने की ज़रूरत पर बल दिया कि – सोशल मीडिया असल में लोगों के मानव अधिकारों कोबढ़ावा दे रही है या उसमें बाधा डाल रही है, इसको जानने समझने के लिए और ज़्यादा अधिकारों कीज़रूरत है.
लोकतंत्र के साथ सामंजस्य
‘सोशल मीडिया ने कहीं न कहीं लोकतंत्र और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमज़ोर किया है.’ इस बातपर इन वैश्विक नेताओं ने कमोवेश सहमति जताई. लेकिन इन नेताओं ने ये भी कहा कि सोशल मीडिया की ताक़त को अनदेखा नहीं किया जा सकता. इस बात पर भी सहमति बनी कि जो भी चीज़असल दुनिया में ग़ैरकानूनी है, उसे इंटरनेट पर भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए.
शोशल मीडिया : कूटनीति और लामबंदी
जॉन ली का कहना था कि आज बढ़ रहे विद्रोह की वजह सोशल मीडिया के द्वारा होने वाली जनताकी लामबंदी है. ‘कंपीटिंग नेश्नलिज़्म, यूनिवर्सल नॉर्म्स: स्ट्रीट पॉवर इन 21 सेंचुरी डिप्लोमेसी’ परबोलते हुए संयुक्त राष्ट्र की स्पेशल एनवॉय जेन हॉल ल्यूट के ने कहा कि चारों ओर लोगों में बेचैनीबढ़ी हुई है जिसके कारण दुनिया में हर तरफ एक गुस्सा दिखाई पड़ रहा है.
अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने से बचते हैं पश्चिमी देश
ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के चेयरमैन संजॉय जोशी के साथ एक अन्य बातचीत में रूस के विदेशमंत्री सर्गई लावरोव ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि पश्चिमी देश नियम आधारित आदेश परज़ोर देते हैं. लेकिन किसी अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने की ज़रूरत पर बात नहीं करते.
चीन के मुक़ाबले में खड़ा होने में संकोच कैसा
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ओआरएफ के समीर सरन से एक बातचीत में कहा, ‘भारत चीन संबंधबहुत अनोखा है क्योंकि दोनों ही पड़ोसी देश एक ही समय में काफ़ी तेज़ी से आर्थिक उन्नति कर रहेहैं और ऐसा इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ, आज के दौर में भारत वैश्विक स्तर पर प्रभाव स्थापितकरने में संकोच करेगा, ये मानना गलत होगा. ‘ विदेश मंत्री ने ये बातें ‘द इंडिया वे: प्रिपेरिंग फॉर असेंचुरी ऑफ़ ग्रोथ एंड कॉंटेस्ट’ विषय पर बोलते हुए कहीं.
इलाक़े में तनाव के कारण हुआ यूक्रेन का प्लेन क्रैश : ईरानी विदेशमंत्री
ईरान के विदेशमंत्री मोहम्मद जावेद ज़रीफ ने ओआरएफ़ चेयरमैन संजॉय जोशी से बातचीत केदौरान अमेरिकी सरकार की नीतियों की निंदा करते हुए कहा कि ‘क़ासिमसुलेमानी की हत्या अमेरिका के घमंड और जहालत, दोनों का उदाहरण है. सुलेमानी की हत्या केविरोध में 90 लाख लोग सड़कों पर उतर आए थे. हम इतने लोगों को एक साथ ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं सकते हैं.’ ज़रीफ़ ने यक्रेनियन प्लेन क्रैश में मारे गए 180 परिवारों के सदस्यों के लिएसंवेदना भी व्यक्ति की, लेकिन ये कहने से नहीं चूके कि वो तनाव की स्थिती के कारण हुआ.
वैश्विक शांति : निर्णयात्मक पदों पर नियुक्त हों महिलाएं
‘शी- लीड्स इन द अल्फ़ा सेंचुरी’ विषय पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने विश्व की ताकतवरमहिलाओं हेलेन क्लार्क, इस्थर ब्रीम्मर, एलेनी कूवनलाकीज़ और पैट्रिका स्कॉटलैंड के साथ हिस्सालिया. इस चर्चा का संचालन जोआना रोपर ने किया. सभी की ये राय थी कि ऊंचे और निर्णयात्मक पदों पर लगातार महिलाओं के नियुक्त होने की ज़रूरत है. क्योंकि जबमहिलाएं नेतृत्व की ज़िम्मेदारी उठाती हैं तब वे ख़ुद एजेंडा सेट करती हैं जो वैश्विक शांति में कारगरहोता है. हालांकि, इन महिलाओ ने ये भी कहा कि आगे बढ़ने की उनकी ये यात्रा पुरुषों के साथ के बग़ैर मुमकिन नहीं होगी.