World Population Day: भारत की आबादी दुनियाभर के देशों में सबसे ज्यादा है. संयुक्त राष्ट्र (United Nations, UN) ने पिछले साल भारत की पॉपुलेशन को लेकर एक डेटा दिया था कि अगले तीन दशक तक देश की आबादी बढ़ेगी और फिर इसमें गिरावट आनी शुरू हो जाएगी. यूएन के अनुसार भारत की आबादी 142.57 करोड़ है, जिसमें सबसे ज्यादा जनसंख्या हिंदुओं की है और फिर मुस्लिम हैं. हिंदू महिलाओं की तुलना में मुस्लिम महिलाएं ज्यादा बच्चे पैदा करती हैं इसलिए कई बार ऐसे दावे किए गए हैं कि जनसंख्या के मामले में भारत के मुसलमान हिंदुओं से आगे निकल जाएंगे. हालांकि, एक्सपर्ट्स की मानें तो ऐसा होना असंभव है. 100 साल क्या 1000 साल में भी ऐसा होने की कोई गुंजाइश नहीं है.
फैमिली वेलफेयर प्रोग्राम के रिव्यू के लिए बनाई गई राष्ट्रीय कमेटी के पूर्व चेयरपर्सन देवेंद्र कोठारी का कहना है कि अगली जनगणना तक मुसलमानों की जनसंख्या या तो कम जो हो जाएगी या फिर स्थिर रहेगी, जबकि हिंदुओं की आबादी में मामूली इजाफा देखा जा सकता है. उनका अनुमान है कि 2170 तक यानी 146 साल तक अगर सिर्फ मुसलमान बच्चे पैदा करें और हिंदू बिल्कुल न करें तो भी ऐसा मुमकिन नहीं है कि मुसलमानों की आबादी ज्यादा हो जाए. उन्होंने कहा कि ऐसा होना संभव नहीं है कि हिंदू इतने लंबे समय तक बच्चे पैदा न करें, लेकिन ये एक सिंपल कैलकूलेशन है कि मुसलमानों की आबादी को लेकर किए जा रहे ऐसे दावों का कोई मतलब नहीं है.
अगली जनगणना तक कितनी हो जाएगी मुसलमानों की आबादी?
साल 2011 में आखिरी बार जनगणना हुई थी और तब हिंदुओं की जनसंख्या 79.08 फीसदी, मुसलमानों की 14.23 फीसदी, ईसाइयों की 2.30 फीसदी और सिखों की 1.72 फीसदी थी. अंकों में बात करें तो 13 साल पहले हिंदू 96.62 करोड़, मुसलमान 17.22 करोड़, ईसाई 2.78 करोड़ और सिख 2.08 करोड़ थे. इसका मतलब हिंदुओं और मुसलमानों की जनसंख्या में 79.40 करोड़ का अंतर था. देवेंद्र कोठारी ने वैज्ञानिक विशलेषण का हवाला देते हुए कहा कि अगली जनगणना तक हिंदुओं की जनसंख्या बढ़कर 80.3 फीसदी हो जाएगी, जबकि मुस्लिम आबादी या तो घटेगी या फिर स्थिर रहेगी.
मुस्लिमों के हिंदुओं से आगे निकलने की कितनी संभावना?
पूर्व चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने भी अपनी किताब 'द पॉपुलेशन मिथ: इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया' में कहा है कि हिंदुस्तान में कभी भी मुस्लिम आबादी हिंदुओं से ज्यादा नहीं हो सकती. किताब में दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर दिनेश सिंह और प्रोफेसर अजय कुमार के मैथमेटिकल मॉडल के जरिए इसको समझाया गया है. हर दस साल में जनगणना होती है और इस हिसाब से 2021 में होनी थी, लेकिन कई कारणों से यह नहीं हो पाई. 2021 में ही ये मॉडल पेश किए गए थे और उसी साल एस. वाई. कुरैशी की किताब में इसको शामिल किया गया.
क्या हैं पोलीनोमिनल ग्रोथ और एक्सपेनेंशियल ग्रोथ?
पोलीनोमिनल ग्रोथ और एक्सपेनेंशियल ग्रोथ के जरिए अनुमान लगाया गया कि क्या कभी हिंदू और मुस्लिम जनसंख्या बराबर हो सकती है. पोलीनोमिनल ग्रोथ मॉडल के अनुसार 1951 में 30.36 करोड़ हिंदू थे और 2021 तक इसके 115.9 करोड़ होने का अनुमान था. वहीं, 1951 में मुस्लिमों की जनसंख्या 3.58 करोड़ थी, जिसके 2021 में 21.3 करोड़ होने का अनुमान लगाया गया. एक्सपोनेंशियल मॉडल में हिंदुओं के 120.6 करोड़ और मुस्लिमों के 22.6 करोड़ होने का अनुमान लगाया गया था. कुरैशी ने किताब में कहा कि दोनों मॉडल ही यह नहीं दिखाते हैं कि कभी मुस्लिम पॉपुलेशन ज्यादा हो जाएगी या फिर हिंदुओं के बराबर हो सकती है. मॉडल से साफ है कि 1000 साल में भी मुस्लिम आबादी की हिंदुओं से ज्यादा होने की संभावन नहीं है.
इस सदी के अंत तक क्या ज्यादा हो जाएंगे मुसलमान?
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर पीएम कुलकर्णी ने सचार कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि फर्टिलिटी रेट ज्यादा होने के बाद भी इस सदी के अंत तक मुस्लिमों की जनसंख्या 18-20 फीसदी तक ही पहुंच सकती है. प्यू रिसर्च के अनुसार भारत में मुस्लिम महिलाएं हिंदुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करती हैं. हालांकि, 2-15 में उनका फर्टिलिटी रेट घटकर 2.6 हो गया फिर भी यह देश के बाकी धर्मों की तुलना में सबसे ज्यादा है.
साल 1992 में एक मुस्लिम महिला एवरेज 4.4 बच्चे पैदा करती थी, 2015 में यह आंकड़ा 2.6 हो गया. हिंदुओं में यह 3.3 से घटकर 2.1 रह गया. 23 सालों में दोनों धर्मों के बीच फर्टिलिटी रेट का अंतर 1.1 से घटकर 0.5 रह गया. पीएम कुलकर्णी ने कहा कि सचार कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार 1000 साल या 100 साल में भी मुस्लिमों की आबादी हिंदुओं से ज्यादा होने की संभावना नहीं है.
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