वक्त बदलने के साथ-साथ लोगों के मनोरंजन के रवैए में भी बदलाव हुआ है, मगर आज तक जो चीज नहीं बदली वह रेडियो के प्रसारण, और एक ट्रांजिस्टर के माध्यम से  आती आवाज के जरिए घंटों चिपके रहने की वह बेकरारी. आज के दौर में भले ही मनोरंजन का स्तर काफी हाई टेक हो गया है लेकिन कई घरों से वही पारंपरिक रेडियो के बजने की आवाज आज भी सुनाई देती हैं.


कई बातों में यह आलोचनाएं भी होती है कि रेडियो के अब वह श्रोता नहीं मिलते! मगर कुछ पहलुओं को देखें तो रेडियो आज के दिन भी उतना ही प्रासांगिक लगता है, जितना वह अपने सुनहरे दौर में था.


किसी इंसान के मन के ताने बाने के अनुरूप उसके मिजाज एक ऐसा एकाकीपन जरूर आता है, जब वह गज़लों की मखमली आवाज को सुन कर उसे गुनगुना कर उस वक्त को बिताना चाहता हो, ऐसे में रेडियो उसका साथ निभाता है. चाहे किचन में काम करती हुईं महिलाएं, रातों को पहरा देते चौकीदार, सीमा पर देश की रखवाली करते हुए जवान या दफ्तर से घर आने-जाने के दौरान ट्रैफिक में फंसे लोग, रेडियो एक हमजोली की तरह साथ निभाता है.


गौरतलब है कि 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के रूप में मनाया जाता है. वक्त के साथ-साथ रेडियो ने भी अपने स्वरूप में काफी बदलाव किया है. रेडियो ने अब 'मर्फी' की जगह 'सारेगामा कारवां' की शक्ल ले ली है.


लोगों की जरूरतों के हिसाब से रेडियो उस कदर अपने आप में तब्दीली लाने में कामयाब रहा है, जितनी उससे अपेक्षा की जा सकती थी. मसलन रेडियो का विस्तार अब मोबाइल फोन पर भी हो गया है. शुरुआती मोबाइल की तकनीक में रेडियो में सिर्फ सीमित साधन हुआ करते थे, आज मोबाइल एप की वजह देश-विदेश  के किसी भी कोने में बैठा शख्स रेडियो के अपने पसंदीदा प्रोग्राम को सुन सकता है.