वर्शिप एक्ट पर गुरुवार (12 दिसंबर, 2024) को एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि मुगलों के गैर-कानूनी निर्माण को लीगलाइज करने के लिए कोई कानून नहीं हो सकता है और ये एक्ट असंवैधानिक है. ये हिंदुओं को अपने धार्मिक स्थल वापस लेने और दावा करने से रोकता है.  उन्होंने कहा कि किसी भी निर्माण को सिर्फ देखकर कैसे पता लगेगा कि वह मंदिर है या मस्जिद उसके लिए सर्वे जरूरी है और ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि मुगलों ने कई स्थलों की धार्मिक पहचान को बदला है. 


मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की बेंच ने गुरुवार को अगली सुनवाई तक के लिए देश में किसी भी मंदिर या मस्जिद के सर्वे को लेकर नई याचिका दाखिल करने पर रोक लगा दी है. सीजेआई संजीव खन्ना ने स्पष्ट किया कि याचिका तो दाखिल कर सकते हैं, लेकिन उन्हें रजिस्टर नहीं कर सकते हैं. वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाले 9 याचिकार्ताओं में एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय भी शामिल हैं. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 कहता है कि 15 अगस्त, 1947 के समय देश में जिस धार्मिक स्थल की जो संरचना थी वही रहेगी, उसके साथ छेड़छाड़ नहीं की जाएगी.


अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दाखिल करके वर्शिप एक्ट के सेक्शन 2,3 और 4 को रद्द करने की मांग की है. उन्होंने प्लेसेस ऑफ वर्शिप (स्पेशन प्रोवीजन) एक्ट, 1991 को असंवैधानिक करार दिया और दावा किया कि यह इतिहास में बाबर, हुमांयू और तुगलक के गैर-कानूनी कार्यों को वैध बनाता है. उन्होंने आगे कहा, 'विपक्षी पक्ष ने 18 धार्मिक स्थलों के सर्वे के आदेश को रद्द करने की मांग की है. हम इसका विरोध करते हैं क्योंकि वर्शिप एक्ट, 1991 धार्मिक स्थल की संचरना की बात करता है.'


अश्विनी उपाध्याय ने कहा, 'किसी इमारत की संरचना से उसका धार्मिक चरित्र नहीं बताया जा सकता है. कोई भी सिर्फ देखकर नहीं बता सकता कि वह मस्जिद है या मंदिर इसलिए सर्वे जरूर होना चाहिए, बाबर, हुमांयू, तुगलक, महमूद गजनी और मोहम्मद गौरी के गैर-कानूनी निर्माणों को लीगलाइज करने के लिए कोई कानून नहीं हो सकता है. ये एक्ट भारत के संविधान के खिलाफ है.'


अश्विनी उपाध्याय ने कहा, 'यह प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट है, प्लेसेस ऑफ प्रेयर एक्ट नहीं. मंदिर को पूजा के स्थल के तौर पर जाना जाता है, जबकि मस्जिद की पहचान नमाज के स्थल के तौर पर है. ये कानून स्थल की पहचान और उसकी संरचना की बात करता है. हम सभी विवादित स्थलों का सर्वे चाहते हैं ताकि उनकी असली धार्मिक पहचान का पता चले सके. ये हिंदू-मुस्लिम का मामला नहीं है. भगवद गीता, वेदों, रामायण में जिन धार्मिक स्थलों का जिक्र है, उन्हें वापस लिया जाना चाहिए और इसके लिए सर्वे जरूर है.' 


उन्होंने आगे यह भी कहा कि सिर्फ तिलक लगा लेने और टोपी पहन लेने से हिंदू-मुस्लिम नहीं बता सकते हैं. उन्होंने कहा, 'ये कानून कहता है कि धार्मिक स्थल की संरचना के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते और हम इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि मुगलों ने कई स्थलों के धार्मिक चरित्र के साथ छेड़छाड़ की है. हमारी मांग है कि इन स्थलों की वास्तविक पहचान सामने लाई जाए. अभी मैं सुप्रीम कोर्ट में काले कोट में हूं और इससे पता चलता है कि मैं एक वकील हूं. अगर मैं तिलक लगा लूं तो मुझे हिंदू समझा जाएगा. अगर में टोपी पहन लूं तो मुझे मुस्लिम बोला जाएगा. मेरी बाहरी पहचान बदल सकती है, लेकिन मेरी असली पहचान जांच के बाद ही सामने आएगी.'


वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने आपत्ति जताई है कि ये कानून हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध जैसे कई समुदायों को अपने ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों को वापस लेने और दावा करने के लिए रोकता है. काशी रॉयल फैमिली से महाराजा कुमारी कृष्णा प्रिया, बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी, पूर्व सांसद चिंतामणी मालवीय, रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर, एडवोकेट चंद्र शेखर, रूद्र विक्रम सिंह, स्वामी जीतेंद्र सरस्वती, देवकीनंदन ठाकुर जी और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय याचिकाकर्ता हैं.


यह भी पढ़ें:-
धनखड़ बोले- किसान का बेटा बर्दाश्त नहीं हो रहा आपको', खरगे ने किया पलटवार- मैं भी मजदूर का बेटा