राफेल सौदे पर यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने SC में नई अर्ज़ी दाखिल की
14 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था. सीजेआई रंजन गोगोई की पीठ ने कहा कि हम इससे सन्तुष्ट हैं कि प्रक्रिया में कोई विशेष कमी नहीं रही है.
नई दिल्लीः राफेल मामले पर रार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. अब यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में नई अर्ज़ी दाखिल की है. उन्होंने कहा है कि सरकार ने कोर्ट को सीलबंद लिफाफे में गलत जानकारी दी है. इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों पर मुकदमा चलाने और सज़ा देने की मांग की है.
इससे पहले 13 फरवरी को संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में पेश नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के दौरान हुआ राफेल लड़ाकू विमान का सौदा पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा की गई पेशकश की तुलना में सस्ता है. कैग ने कहा कि एनडीए सरकार के तहत हुआ राफेल सौदा पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दौरान इस सौदे पर हुई वार्ता पेशकश की तुलना में 2.86 फीसदी सस्ता है. हालांकि, रिपोर्ट में विमान के दाम नहीं बताए गए हैं.
14 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने दिया था फैसला राफेल डील को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. सीजेआई रंजन गोगोई की पीठ ने कहा कि हम इससे सन्तुष्ट हैं कि प्रक्रिया में कोई विशेष कमी नहीं रही है. भारत को विमान की ज़रूरत है, विमान की क्षमता पर शक नहीं है. 126 की बजाय 36 विमान लेने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाना ठीक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा का कोई तय नियम नहीं है. राष्ट्रीय सुरक्षा के पहलू का ध्यान रखना ज़रूरी है.
2 जनवरी को दायर की गई पुनर्विचार याचिका पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने राफेल मुद्दे पर 14 दिसंबर को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा के लिए 2 जनवरी को फिर से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. तीनों ने इस मुद्दे पर सुनवाई को लेकर कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की. पुनर्विचार याचिका में तीनों ने आरोप लगाया है कि फैसला ''सरकार की ओर से बिना हस्ताक्षर के सीलबंद लिफाफे में सौंपे गए स्पष्ट रूप से गलत दावों पर आधारित था.'' उन्होंने याचिका पर सुनवाई खुली अदालत में करने का अनुरोध भी किया.
क्या हैं आरोप कांग्रेस का आरोप है कि फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान की खरीद में सरकारी कंपनी एचएएल को छोड़कर अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को शामिल किया गया. जिससे अनिल अंबानी की कंपनी को फायदा हुआ और देश को 30 हजार करोड़ रुपये का नुकसान.
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