नई दिल्ली: साल 2018 को हम अलविदा कहने वाले हैं. 2019 शुरू होने में कुछ ही दिन बचे हैं. इस साल सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ऐसे ऐतिहासिक फैसले सुनाए जिसने समाज को बदलाव की ओर अग्रसर किया है. आज हम उन्हीं फैसलों पर बात करने वाले हैं. आइए एक-एक करके देश के सर्वोच्च अदालत के बड़े फैसलों पर चर्चा करें.
1- तीन तलाक़
22 अगस्त 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के हित में एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय के ट्रिपल तलाक को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दिया साथ के केंद्र सरकार को इसका अध्यादेश लाने का आदेश दिया जो राज्यसभा में लंबित है.
2-सबरीमाला
महिलाओं के हित में सुप्रीम कोर्ट ने एक और बड़ा फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर को बड़ा फैसला सुनाते हुए महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को समाप्त कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की सदस्यीय संविधान पीठ ने अपना फैसला सुनाया. पांच जजों की सदस्यीय संविधान पीठ ने 4-1 (पक्ष-विपक्ष) के हिसाब से महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया. जजों का मानना था कि महिलाओं का मंद्र में प्रेवेश रोकना मौलिक अधिकार 17 का उल्लंघन है. हालांकि SC के फैसले के बाद भी मंदिर में महिलाएं प्रवेश नहीं कर पाईं हैं.
3-समलैंगिकता अपराध नहीं (377)
इस साल 6 सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले के बाद भारत में समलैंगिकता अपराध नहीं रही. दो वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने खारिज कर दिया. सुप्रीम कर्ट ने एक ही जेंडर के व्यक्तियों में संबंध को व्यक्तिगत चुनाव माना और इसे सम्मान देने की बात कही.
बता दें कि इससे पहले IPC की धारा 377 अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध मानती थी. इसके तहत पशुओं के साथ ही नहीं, बल्कि दो लोगों के बीच समलैंगिक संबंध को भी अप्राकृतिक माना गया है. इसके लिए 10 साल तक की सज़ा का प्रावधान था.
4- व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर
व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इससे संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाता है और इस प्रावधान ने महिलाओं को 'पतियों की संपत्ति' बना दिया था. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त कर दिया. शीर्ष अदालत ने इस धारा को स्पष्ट रूप से मनमाना, पुरातनकालीन और समानता के अधिकार और महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन करने वाला बताया.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर. एफ. नरिमन, जस्टिस ए. एम. खानविलकर, जस्टिस धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ और जस्टिस इन्दु मल्होत्रा ने एकमत से कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है. संविधान पीठ ने जोसेफ शाइन की याचिका पर यह फैसला सुनाया. यह याचिका किसी विवाहित महिला से विवाहेत्तर यौन संबंध को अपराध मानने और सिर्फ पुरूष को ही दंडित करने के प्रावधान के खिलाफ दायर की गयी थी.
5- निजता का अधीकार
नौ जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से इस साल निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया है. पीठ ने कहा कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है.
6- आधार कार्ड की अनिवार्यता
इस साल सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर भी बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर महीने में आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने आधार कार्ड की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है, लेकिन स्कूल मोबाइल फोन कनेक्शन के लिए आधार कार्ड जरूरी नहीं है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि स्कूल में प्रवेश के लिए भी आधार की आनिवार्यता नहीं होगी. साथ ही SC ने कहा कि यूजीसी, नीट और सीबीएसई परीक्षाओं और स्कूल के प्रवेश के लिए आधार अनिवार्य नहीं है. बैंकों को खाता खोलने के लिए आधार की जरूरत नहीं है, कोई भी मोबाइल कंपनी और निजी कंपनियां आधार डेटा नहीं ले सकतीं हैं.
7-SC/ST एक्ट
इसी साल 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है. इस फैसले के बाद 2 अप्रैल को दलित संगठन ने बड़ा विरोध प्रदर्शन किया और कई मौतें हुईं. इसके बाद बीजेपी ने सरकार के लिए विरोध देखते हुए एससी/एसटी एक्ट में संशोधन करते हुए मूल स्वरूप लाने का फैसला किया.
8-पैसिव यूथेनेशिया' या इच्छा मृत्यु
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छा मृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को गाइडलाइन्स के साथ कानूनी मान्यता दे दी है. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मरणासन्न व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि कब वह आखिरी सांस ले.
कोर्ट की तरफ से कहा गया कि लोगों को सम्मान से मरने का पूरा हक है. बता दें कि 'पैसिव यूथेनेशिया' (इच्छा मृत्यु) वह स्थिति है जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की मौत की तरफ बढ़ाने की मंशा से उसे इलाज देना बंद कर दिया जाता है.
9- अदालती कार्यवाही का सीधे प्रसारण
इस साल सुप्रीम कोर्ट ने अहम अदालती कार्यवाही के सीधे प्रसारण की अनुमति दी. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश देते हुए कहा कि इस प्रक्रिया की शुरुआत सुप्रीम कोर्ट से होगी. कोर्ट ने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग के आदेश से अदालत की कार्यवाही में पारदर्शिता आएगी और यह लोकहित में होगा.
10-पटाखों छोड़ने को लेकर बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल पटाखों की बिक्री और उसे इस्तेमल पर कई कृतरह की रोक लगाई.. SC ने अपने फैसले में कहा कि पटाखों की ऑनलाइन बिक्री नहीं की जा सकती है. कोर्ट ने ई-कॉमर्स पोर्टल्स को पटाखे बेचने से रोक दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों को केवल लाइसेंस पाए ट्रेडर्स ही बेच सकते हैं. साथ ही कोर्ट ने कहा कि लोग केवल 2 घंटों के लिए पटाखें छोड़ सकते हैं. आपको बता दें कि वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए देशभर में पटाखों के उत्पादन और बिक्री पर रोक लगाने की मांग की गई थी. जिसके बाद sc ने फैसला सुनाया.