हर कर्ज़ को Yes कहने की बीमारी YES BANK को ले डूबी
यस बैंक मामले में अब रिजर्व बैंक को इसलिए उतरना पड़ा है क्योंकि बीते 3 महीनों के दौरान बैंक के डिपॉजिट लगातार तेजी के साथ घट रहे हैं.
नई दिल्लीः एक वो दौर था जब किसी कंपनी को कोई भी बैंक कर्ज़ न दे रहा हो तो यस बैंक पहुंच जाएं. थोड़ा ज़्यादा ब्याज और ज़्यादा फीस देकर कर्ज़ मिल जाता था. यस बैंक के लिए यही कर्ज़ मर्ज बन गया. हालात ऐसे हुए की बैंक की नींव रखने वाले राणा कपूर को बैंक से बाहर का रास्ता दिखाया गया.
यस बैंक की कहानी को समझने से पहले आप यह समझ लीजिए कि आखिर एक बैंक कैसे मुनाफा कमाता है. दरअसल कोई भी बैंक ग्राहकों से उनके पैसे जमा करवाता है जिसके बदले में उनको ब्याज दिया जाता है. इसके अलावा इसी जमा पैसे को आगे फिर कॉरपोरेट लोन, होम लोन, एजुकेशन लोन आदि के नाम पर कर्ज के रूप में दिया जाता है जिस पर ब्याज वसूला जाता है. जो ग्राहकों को ब्याज दिया जाता है उससे ज्यादा ब्याज कर्ज पर बैंक वसूलते हैं. यही बैंकों की कमाई का मुख्य साधन होता है.
यस बैंक की कहानी यस बैंक की शुरुआत 2004 में राणा कपूर और अशोक कपूर ने मिलकर की थी. 2008 में अशोक कपूर की मृत्यु होने के बाद बैंक की पूरी कमान राणा कपूर के हाथ में आ गई. यहीं से फिर शुरू होता है वह दौर जिसमें कहा जाता था कि यस बैंक का मतलब है हर कर्ज के लिए हां. जिस किसी कंपनी को कोई भी प्राइवेट बैंक कर्ज देने से इंकार कर दे उसको यस बैंक से कर्ज मिलने की गारंटी दिखती थी. इसके पीछे वजह थी बैंक के मालिक राणा कपूर. दरअसल राणा कपूर सभी बड़े कंपनियों के अधिकारियों और मालिकों से खुद ही डील किया करते थे. ऐसे में उन्होंने अनिल अंबानी के रिलायंस समूह की कई कंपनियों को कर्ज दिया. इसके अलावा डीएचएफएल, आईएलएंडएफएस, कैफे कॉफी डे, कॉक्स एंड किंग्स, एस्सेल समूह जैसे तमाम नाम है जो अब समय पर कर्ज पर ब्याज और मूलधन नहीं चुका पा रहे हैं. यही है यस बैंक का एनपीए. इसी एनपीए के चलते आज बैंक की यह हालत हो गई है कि रिजर्व बैंक को निकासी की सीमा 50000 रुपये महीना करनी पड़ी है.
बीते 3 महीने यस बैंक मामले में अब रिजर्व बैंक को इसलिए उतरना पड़ा है क्योंकि बीते 3 महीनों के दौरान बैंक के डिपॉजिट लगातार तेजी के साथ घट रहे हैं. वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने एबीपी न्यूज़ को बताया है कि बीते 3 महीनों के दौरान एक तरफ जहां बैंक अपनी तरफ से कोशिश कर रहा था कि विदेशी निवेशक ले आएगा, वह नहीं हो पाया है. वहीं दूसरी तरफ पिछले 3 महीने से लगातार ग्राहकों का भरोसा यस बैंक से डगमगा रहा है और वह बेहद तेजी के साथ अपना पैसा बैंक से निकाल रहे हैं. सितंबर 2019 के अंत तक यस बैंक के पास 2.09 लाख करोड़ रुपये का डिपॉजिट था. सूत्रों का कहना है कि बीते 3 महीनों के दौरान इसमें से बड़ी संख्या में रकम की निकासी हुई है. ऐसे में जब बैंक के पास डिपॉजिट होगा नहीं और जो कर्ज दिया है उस पर ब्याज और मूलधन आएगा नहीं तो भला बैंक को डूबने से कौन बचाएगा. इसीलिए अब आरबीआई ने बैंक की निकासी पर 50000 रुपये की लिमिट तय की है.
क्या है दिक्कत? यस बैंक का सबसे बड़ा मर्ज है एनपीए. जो कर्ज बैंक ने दिया है वह वापस नहीं आ रहा और उस पर ब्याज भी नहीं मिल रहा है. यह वही यस बैंक है जो कभी दावा करता था कि उसका एनपीए 1 फ़ीसदी से भी कम है. आज वही यस बैंक है जो एनपीए के चलते अक्टूबर से दिसंबर 2019 की बैलेंस शीट भी अभी तक तैयार नहीं कर पाया है. बैंक ने सितंबर तिमाही के ही आंकड़े दिए हैं जिसमें बताया गया है कि बैंक का ग्रॉस एनपीए 7.39 फीसदी है. यह उसी यस बैंक का आंकड़ा है जिसका कभी एनपीए 1 फ़ीसदी से भी कम हुआ करता था.
दिक्कत कब बढ़ी वह साल 2016 था जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को यस बैंक के आंकड़ों पर संदेह हुआ. इसके बाद आरबीआई ने यस बैंक की स्क्रूटनी की और उससे 50000000 रुपये से ज्यादा का जो भी कर्ज दिया गया है उसका सारा ब्यौरा मांगा गया. । रिजर्व बैंक ने जब यह आंकड़ा देखा तो उनका शक सही निकला. बैंक का एनपीए जो बैंक बता रहा था उससे बहुत बहुत ज्यादा था. वित्त वर्ष 2016 में यस बैंक का एनपीए 4900 करोड रुपए था जबकि बैंक ने आधिकारिक तौर पर इसे सिर्फ 749 करोड़ रुपये बताया था. यह आंकड़ा जब सामने आया और मामले की गहनता से जांच हुई तो पता चला कि यस बैंक ने तो कर्ज रेवड़ी के तौर पर बांटा हुआ है.
इसी मामले में फिर हालात आगे लगातार खराब ही होते रहे. बैंक के निवेशक धीरे-धीरे बाहर होने लगे और कोई नया निवेशक बैंक को मिला नहीं. आज की तारीख में राणा कपूर और उनका परिवार भी अपने सभी शेयर बेचकर यस बैंक से बाहर हो चुके हैं. ऐसे में अब सरकार पर ही पूरा का पूरा दारोमदार है कि वह यस बैंक को बचाए. और इसीलिए अब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व में बैंकों का समूह कुछ कंपनियों के साथ मिलकर संभवत जल्द ही नए प्लान के साथ यस बैंक का टेकओवर कर सकता है.