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क्रीमी लेयर विवादः आरक्षण के साथ भारत में कैसे होता है खिलवाड़? योगेंद्र यादव ने बता दी अंदर की पूरी बात!

Reservation In India: इस देश में आरक्षण एक ऐसा मुद्दा है जिसको लेकर आए दिन चर्चा होती है और विवाद भी जमकर होता है. हाल में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया है जिसको लेकर भी विवाद हो रहा.

Yogendra Kumar On Creamy Layer: सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने गुरुवार (01 अगस्त) को अनसूचित जाति-अनसूचित जनजाति रिजर्वेशन को लेकर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा था कि एससी-एसटी में सब कैटगरी को आरक्षण दिया जा सकता है. अदालत के इस फैसले को लेकर अब नई चर्चा शुरू हो गई है. मामले पर राजनीतिक मामलों के जानकार योगेंद्र यादव ने कहा कि क्रीमी लेयर वाली बात अटपटी है और इसके दुरुपयोग होने की आशंका है.

दरअसल, योगेंद्र यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वो मशहूर पत्रकार रवीश कुमार से बातचीत कर रहे हैं. इसमें वो कहते हैं, “ये एक ऐतिहासिक फैसला है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जाति व्यवस्था में अंतिम पायदान पर खड़े समुदायों को दशकों से इंतजार था. जो अति पिछड़े दलित-आदिवासी हैं, उनके लिए कुछ विशेष अलग से कोटा की जरूरत थी. जरूरत इसलिए थी क्योंकि अंदरूनी फासला बड़ा है. क्रीमी लेयर वाली बात अटपटी है क्योंकि यह मुद्दा कोर्ट के सामने था ही नहीं. इसका दुरुपयोग होने की आशंका है.”

‘SC-ST में भी बड़ा अंतर है’

उन्होंने कहा, “इस देश में जाति व्यवस्था है, ऊंच-नीच है. पेंच ये है कि अगड़े के भीतर अपेक्षाकृत पिछड़ी जातियां हैं और पिछड़े और दलित के भीतर अपेक्षाकृत अगड़ी और महादलित जातियां हैं. सवाल ये था कि दलित के भीतर जो अलग-अलग किस्म की जातियां हैं, आदिवासी समाज में जो अलग-अलग किस्म के आदिवासी हैं क्या उनमें जो अति पिछड़े हैं, उनके लिए कुछ विशेष अलग से कोटा बनाया जा सकता है. इसकी जरूरत थी और वो इसलिए क्योंकि बड़ा अंतर है.”

योगेंद्र यादव ने दिया बिहार का उदाहरण

योगेंद्र यादव ने उदाहरण देकर बताया, “मिसाल के तौर पर बिहार. बिहार में जो हालिया जातिगत जनगणना हुई वो बताती है कि जहां पर 10 हजार लोग हैं, जैसे धोबी समाज उसके 124 लोग अच्छी शिक्षा प्राप्त हैं लेकिन दुसाज समाज है तो उसके सिर्फ 45. 10 हजार में से सिर्फ 45. वहीं बिहार में मुसहार समाज है वो इस देश के सबसे निचले पायदान पर खड़ा है. 10 हजार में से केवल एक. इस तरह से एक और 124 का अंतर तो सिर्फ अनसूचित जाति के भीतर है. इसको लेकर राज्यों ने कहा था कि कोटा के भीतर कोटा बनाएंगे.”

‘जजमेंट में क्रीमी लेयर वाली बात अटपटी’

सुप्रीम कोर्ट फैसले में क्रीमी लेयर को लेकर उन्होंने कहा, “ये थोड़ा अटपटा लगता है क्योंकि ये मुद्दा तो कोर्ट के सामने था ही नहीं लेकिन 4 जजों ने उस सवाल का जवाब दिया है. इसे कोर्ट का ऑर्डर माना जाएगा इस पर संदेह है. मेरे हिसाब से ये जजों का ऑब्जर्वेशन है लेकिन इस पर भी गौर करें तो अगर कोई राज्य एससी-एसटी का सब कोटा बनाता है तो हाई कोर्ट उससे पूछ सकता है कि तुमने इसमें अभी तक क्रीमी लेयर को लागू क्यों नहीं किया.”

उन्होंने आगे कहा, “अटपटा इसलिए भी है क्योंकि क्रीमी लेयर को ओबीसी कैटगरी में लागू करना तो समझ में आता है लेकिन एससी एसटी समाज में ये बहुत ही कम लोगों पर लागू हो सकता है. जस्टिस गवई ने कहा भी कि ओबीसी वाली चीज को सीधे इस पर लागू न किया जाए. खतरा इसमें इस चीज का है कि पहले से ही इस देश में रिजर्वेशन के साथ खिलवाड़ होता आया है. वो ये कि कैंटिडेट के इंटरव्यू होने के बाद कहा जाता है कि कोई कैंडिडेट योग्य नहीं था और सीट खाली रह जाती है. बाद में इसे जनरल में कनवर्ट कर दिया जाता है. ऐसे में अगर क्रीमी लेयर लागू की गई तो मतलब ये कहना और भी आसान हो जाएगा कि कैंडिडेट योग्य नहीं था और जनरल में ट्रांसफर कर दिया जाएगा.”

वो आगे कहते हैं, “क्रीमी लेयर अगर लागू करना है तो उसकी परिभाषा बहुंत ऊंची रखनी होगी. दूसरा अगर क्रीमी लेयर पर किसी को माना जाता है तो उसको एससी एसटी रिजर्वेशन को डिस्क्वालिफाई मत कीजिए, उसको लाइन के अंत में खड़ा कर दीजिए. मतलब ये कि बाकी लोगों को कंसीडर करने के बाद वेकेंसी रही तो आपको भी मौका दिया जाएगा.”

ये भी पढ़ें: SC-ST कोटे पर हो रही थी सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट के जज को याद आ गए पंडित नेहरू; जानें उनके लेटर का जिक्र कर क्या बोले

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