नई दिल्ली: कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद यूपी में नई राजनीति शुरू कर रहे हैं. इस नई राजनीति के तहत जितिन ने आज प्रदेश में 'चेतना यात्रा' शुरू की. जितिन ने बताया कि इसके जरिये योगी सरकार की खराब कानून-व्यवस्था को घेरने की रणनीति रहेगी.


इसमें दिलचस्प बात ये है कि जितिन प्रसाद अपनी चेतना यात्रा के जरिए 'ब्राह्मण' कार्ड खेलने जा रहे हैं. जितिन अगले कुछ दिनों में अपनी यात्रा के दौरान उन सभी जिलों का दौरा करेंगे जहां पिछले दो महीनों में लगभग आधे दर्जन ब्राह्मणों की हत्या हुई है. जितिन मैनपुरी से यात्रा की शुरुआत करेंगे. जिसके बाद कन्नौज, झांसी, मेरठ, लखनऊ, लखीमपुर, अमेठी और बस्ती का भी दौरा करेंगे. हाल ही में मैनपुरी के एक छात्रावास में एक छात्रा की हत्या हो गयी थी.


गौरतलब है कि जितिन के पिता जितेंद्र प्रसाद उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों के बड़े नेता माने जाते थे, हाल ही में यूपी कांग्रेस में प्रभारी प्रियंका गांधी ने बड़ा फेरबदल किया है. जिसमें जितिन प्रसाद, प्रमोद तिवारी जैसे कई ब्राह्मण नेताओं को अलग-अलग कमेटी में जगह दी गयी है. ये माना जा रहा है कि जितिन अपने पिता के नक्शे कदम पर बढ़ते हुए उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के बड़े नेता के रूप में उभरना चाहते हैं. यही वजह है कि जितिन अब ब्राह्मणों से जुड़े मुद्दे लगातार उठा रहे हैं.


जानकारों का मानना है कि योगी सरकार को उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत दिलाने में ब्राह्मण समाज का बड़ा योगदान था. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के कई ब्राह्मण नेताओं का मानना है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार जाने के बाद से पिछले तीन दशक में राजनैतिक रूप से ब्राह्मणों को पार्टी ने सम्मान नहीं दिया. इसके साथ ही गैर कांग्रेसी दलों ने ब्राह्मण समाज का उपयोग अपने सत्ता लाभ के लिए किया लेकिन ब्राह्मण समाज को लीडरशिप नहीं दी.


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जितिन प्रसाद ने एबीपी न्यूज़ को बताया, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी तो विशुद्ध जातिवादी दल हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने भी ब्राह्मण समाज को सत्ता से किनारे रखा. बीजेपी की सरकारों में 3 प्रतिशत वोट शेयर रखने वाले लोध जाति के कल्याण सिंह, 6.5 प्रतिशत वोट शेयर रखने वाले वैश्य जाति के रामप्रकाश गुप्त और 8 प्रतिशत वोट शेयर रखने वाली राजपूत जाति के राजनाथ और आदित्यनाथ तो मुख्यमंत्री बन सकते हैं लेकिन 14 प्रतिशत वोट शेयर रखने वाली ब्राह्मण जाति का जब भी कोई नेतृत्व उभरा तो उसे किनारे कर के अपमानित किया गया.


सामाजिक-राजनैतिक रूप से केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के अन्य भागों में भी यह देखने में आया है कि ब्राह्मण जाति का अस्तित्व और सम्मान सिर्फ कांग्रेस की सरकारों में ही रहा. बहरहाल उत्तर प्रदेश कांग्रेस के कई ब्राह्मण नेता जो पार्टी संगठन से लेकर चुनावी राजनीति तक हासिए पर चले गए हैं उन्हें लगता है कि ब्राह्मण समाज अगर उनके पीछे आ खड़ा हो तो उससे ना सिर्फ पार्टी का भला होगा बल्कि उनकी राजनीति भी वापस चल पड़ेगी.


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