नई दिल्ली: राहुल गांधी को इस्तीफ़े की पेशकश किए हुए एक महीना बीत चुका है लेकिन कार्यकर्ताओं या पार्टी के नेताओं की तरफ़ से कोई भी आवाज़, प्रदर्शन या समूह के रूप में नहीं उठी, जैसी सोनिया गांधी के इस्तीफे के बाद 10 जनपथ के बाहर होड़ लग गई थी और कांग्रेस के नेताओं ने सोनिया गांधी को त्याग की मूर्ति और देवी क़रार दे दिया था.


एक महीने बाद दिल्ली के पंजाब भवन में 26 जून को पिछले 12 साल में यूथ कांग्रेस के जो नेता ख़ुद को राहुल गांधी का प्रोडक्ट मानते हैं वो इक्कठे हुए और एक व्यापक प्रदर्शन करने की रणनीति बनाई ताकि राहुल गांधी अध्यक्ष पद पर बने रहें. इसमें जो लोग यूथ कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रहे, सांसद, पूर्व सांसद, यूथ कांग्रेस के राज्यों के अध्यक्ष रहे, और राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व सचिव शामिल हैं.


मीटिंग में चर्चा हुई कि राहुल गांधी भंवर में फंसे हैं
मीटिंग में चर्चा हुई कि ये कोई राहुल की हार नहीं बल्कि सामूहिक हार है और ख़ासतौर पर सीनियर नेता जिन्होंने राहुल के साथ मिलकर मोदी के ख़िलाफ़ लड़ाई नहीं लड़ी. अब एक सीनियर नेताओं का समूह यह चाहता है कि राहुल गांधी का इस्तीफ़ा मंजूर हो जाए.


यही नहीं फिर चाहे वो पार्टी के ही नेताओं द्वारों समय-समय पर ग़ैर ज़िम्मेंदाराना बयान हों, प्रादेशिक छत्रपों की आपसी उलझने और पार्टी से सब कुछ हासिल कर लेने के बावजूद व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं, कहीं-कहीं राष्ट्रीय प्रभारियों द्वारा हालात नहीं संभाल पाना और सही निर्णय न ले पाना, इन चुनावी परिणामों के करणों में शामिल है. तो फिर एक व्यक्ति राहुल गांधी इतनी बड़ी हार के कारण कैसे हो सकते हैं. ऐसा इन युवा नेताओं का मानना है.


कुछ लोगों ने (नाम ना बताने की शर्त पर) यह भी बताया कि अगर राहुल गांधी का अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा हो गया तो उनका वापिस अध्यक्ष बन पाना आसान नहीं होगा. अब 28 जून, शुक्रवार को दोपहर 12 बजे कांग्रेस कार्यालय में ये लोग धरने पर बैठेंगे और राहुल गांधी से अध्यक्ष पद पर रहने की अपील करेंगे. राहुल मानेंगे या नहीं ये तो दूर की बात है लेकिन एक बात साफ़ है कांग्रेस अभी भी राहुल और सोनिया गांधी की कांग्रेस में बंटी है.


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