नई दिल्ली: चीन और इजरायल की तर्ज पर भारत में भी युवाओं को मिलिट्री-ट्रेनिंग देने पर विचार हो रहा है. भारतीय सेना ने इस प्लान को 'टूर ऑफ ड्यूटी' नाम दिया है. लेकिन सेना ने साफ किया है कि ये ट्रेनिंग सभी युवाओं के लिए अनिवार्य नहीं होगी बल्कि स्वैच्छिक होगी.
'टूर ऑफ ड्यूटी' के तहत युवाओं को तीन साल के लिए सेना में कार्यरत होना होगा. इसमें नौ महीने की मिलिट्री-ट्रेनिंग होगी. ये ठीक वैसे ही होगी जो किसी दूसरे सैनिक को मिलती है. ट्रेनिंग खत्म होने के बाद उन्हें सेना की फॉरमेशन, छावनी या फिर सरहद पर तैनात कर दिया जाएगा. ये एक तरह से सेना में 'इंटर्नशिप' की तरह होगी.
थलसेना के प्रवक्ता, कर्नल अमन आनंद ने हालांकि साफ किया कि किसी भी तरह से ये टूर ऑफ ड्यूटी अनिवार्य नहीं है. ये उन युवाओं के लिए है जो सेना की वर्दी और मिलिट्री-लाइफ और सर्विस के प्रति आकर्षित रहते हैं. उनके लिए ये एक सुनहरा अवसर होगा. ये टूर ऑफ ड्यूटी सैन्य-अफसर और जवान के पद दोनों के लिए होगी.
आपको बता दें कि चीन और इजरायल जैसे देशों में भी युवाओं को स्कूल से शिक्षा लेने के बाद मिलिट्री-ट्रेनिंग लेनी होती है. लेकिन उन देशों में वो हर युवा के लिए अनिवार्य होती है. लेकिन भारत में ऐसा नहीं होगा, ये पूरी तरह से स्वैच्छिक होगी.
अभी भारतीय सेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) की सेवाएं हैं जिसमें अधिकारी 14 साल के लिए चुने जाते हैं. लेकिन ये अधिकारी अपनी स्वेच्छा से और लंबे समय तक भी सेना में कार्यरत हो सकते हैं. लेकिन सूत्रों की मानें तो एसएससी अधिकारियों पर सेना को ज्यादा खर्च करना पड़ता है. जबकि टूर ऑफ ड्यूटी में बहुत कम खर्च आएगा.
सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में एक सर्वे हुआ था जिसमें पाया गया था कि कॉर्पोरेट-सेवाओं में सेना से रिटायर हुए अधिकारियों और सैनिकों को तरजीह दी जाती है. लेकिन सर्वे में पता चला कि कॉर्पोरेट-कंपनियां 25 वर्ष की आयु वाली सैन्य अफसरों को ज्यादा तरजीह देती हैं. इसीलिए सेना 'टूर ऑफ ड्यूटी' प्लान पर काम कर रही है.
बता दें कि सेना एक दूसरे मॉडल पर भी काम कर रही है. जिसमें अर्द्धसैनिक बलों (सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी इत्यादि) के अधिकारी सात साल के लिए डेप्युटेशन पर आ सकेंगे और सात साल पूरा होने पर वापस अपनी सर्विस में लौट जाएंगे.
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