नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस पर बाजी मारने के लिए टीडीपी ने एनडीए से नाता तोड़ लिया है. टीडीपी के मंत्री पहले ही केंद्र सरकार से इस्तीफा दे चुके थे. दूसरी ओर टीडीपी आज लोकसभा में हंगामे के कारण अविश्वास प्रस्ताव नहीं पेश कर सकी.


दरअसल, मामला ये है कि अगले साल लोकसभा के साथ आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव के हैं. इसलिए सूबे की दोनों पार्टियां टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस के बीच शह-मात का खेल एक-एक कदम पर तेज़ हो गया है. टीडीपी मोदी सरकार से बाहर हुई तो वाईएसआर कांग्रेस ने केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का दांव चला दिया. लेकिन वाईएसआर कांग्रेस के इस चाल को तोड़ने के लिए टीडीपी ने अपना अलग से विश्वास प्रस्ताव पेश करने का एलान कर दिया.


हालांकि, ये प्रस्ताव लोकसभा में पेश नहीं किया जा सकता है. लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के लिए 50 सांसदों की जरूरत पड़ती है, लेकिन ये संख्याबल इन दलों में किसी के पास नहीं है.


इससे पहले, वाईएसआर कांग्रेस के वाईवी सुब्बारेड्डी ने लोकसभा महासचिव को नोटिस देकर 16 मार्च की कार्यसूची में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव शामिल करने का अनुरोध किया. नोटिस पर रेड्डी समेत वाइएसआर कांग्रेस के सभी नौ सांसदों ने हस्ताक्षर किए थे. लोकसभा की कार्य नियमावली के सेक्शन 198 (बी) के तहत ये नोटिस दिया गया था.


इस मुद्दे पर सबकी निगाहें कांग्रेस, टीएमसी समेत अन्य दलों के रुख पर रही. अगर इस प्रस्ताव को जरूरी 50 सांसदों का साथ मिला तो शुक्रवार को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होगी. अविश्वास प्रस्ताव पर समर्थन जुटाने के लिए वाईएसआर कांग्रेस ने कोशिश शुरू कर दी है. लेकिन इस कवायद में उसे सफलता मिलने की संभावना ना के बराबर है.


इस क्रम में पार्टी सांसदों ने बृहस्पतिवार को अन्य विपक्षी दलों के नेताओं अपने पार्टी अध्यक्ष जगनमोहन रेड्डी का पत्र सौंपा. इस पत्र में आंध्रप्रदेश के खिलाफ कथित अन्याय पर साथ देने की अपील करते हुए कहा गया है कि अगर विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला तो पार्टी के सांसद सत्र के अंतिम दिन संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे देंगे.


मुश्किल हैं प्रस्ताव  के लिए नंबर जुट पाना


अविश्वास प्रस्ताव पेश करने और उसे स्वीकार करने के लिए लोकसभा के कम से कम 50 सदस्यों का हस्ताक्षर जरूरी होता है. खुद वाईएसआर कांग्रेस के पास नौ लोकसभा सदस्य हैं. अगर टीडीपी भी इसमें शामिल हो जाए, तो उसके 16 सदस्यों के साथ कुल संख्या 25 की हो जाएगी. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, AIADMK जैसे बड़े विपक्षी दलों को अहसास है कि आंध्र की अंदरूनी राजनीति में उलझना उनके लिए फायदेमंद नहीं है. ऐसे में इस प्रस्ताव  का भविष्य अंधकारमय नज़र आता है.


NDA से अलग हो सकती है टीडीपी


मोदी कैबिनेट से अपने दो मंत्रियों को वापस बुलाने के बाद टीडीपी एनडीए से अलग हो सकती है. टीडीपी ने शुक्रवार को अहम बैठक बुलाई है जिसमें NDA से अलग होने पर फैसला लिया जा सकता है.


गौरतलब है कि विवाद इसलिए है क्योंकि टीडीपी पिछले चार सालों से आंध्र प्रदेश के लिए विशेष दर्जे की मांग कर रही है. यह मांग नए राज्य के निर्माण के साथ ही शुरू हो गई थी लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विशेष राज्य का दर्जा देने से इनकार कर दिया था.