नई दिल्ली: 8 फ़रवरी, 1897 में हैदराबाद, आंध्र प्रदेश के धनी पठान परिवार में भारत के तीसरे राष्ट्रपति डॉ ज़ाकिर हुसैन का जन्म हुआ. महज 10 साल की उम्र में अपने पिता और 14 साल की उम्र में अपनी मां को खो देने वाले जाकिर हुसैन के जिंदगी का सफर आसान नहीं रहा. मगर जिंदगी की हर चुनौती का डटकर सामना करनेवाले  हुसैन का हौसला ही था जिसने सभी रुकावटों को पार कर एक दिन देश के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति बने.


जामा मस्जिद से हुआ एलान, देश के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति बने डॉ ज़ाकिर हुसैन


1967 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में वह अपने निकटतम प्रतिद्वंदी के. सुब्बाराव को हरा दिया था. 6 मई 1967 की शाम ऑल इंडिया रेडियो पर बताया गया कि कुल 838,170 वोटों में से 471,244 वोट हासिल करके जाकिर हुसैन राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत चुके हैं. उनके निकटतम प्रतिद्वंदी के. सुब्बाराव को 363,971 वोट हासिल हुए.


देश को अपना पहला मुस्लिम राष्ट्रपति मिल गया था. नतीजों की जानकारी देने के लिए इंदिरा गांधी उनके घर गईं लेकिन तबतक राधाकृष्णन ने उन्हें जानकारी दे दी थी. इसके बाद जाकिर हुसैन के जीत की घोषणा दिल्ली के जामा मस्जिद से की गई. 13 मई को 1967, संसद के सेंट्रल हॉल में जाकिर हुसैन  ने देश के तीसरे राष्ट्रपति के तौर  पर शपथ ली.


कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे

राष्ट्पति जाकिर हुसैन कई महत्वपूर्ण पदों पर रहें. केवल 23 साल में वे 'जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय' की स्थापना दल के सदस्य बन गए थे. 1920 में उन्होंने 'जामिया मिलिया इस्लामिया' की स्थापना में योगदान दिया. वे अर्थशास्त्र में पी.एच.डी की डिग्री के लिए जर्मनी के बर्लिन विश्वविद्यालय गए और लौट कर जामिया के उप कुलपति के पद पर भी आसीन हुए. इनके नेतृत्व में जामिया मिलिया इस्लामिया का राष्ट्रवादी कार्यों और स्वाधीनता संग्राम की ओर झुकाव रहा.


आजादी के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति बने और उनकी अध्यक्षता में ‘विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग’ भी गठित किया गया. इसके अलावा वे भारतीय प्रेस आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, यूनेस्को, अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा सेवा तथा केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से भी जुड़े रहे. 1962 ई. में वे भारत के भी उपराष्ट्रपति बने.


1957 में बने बिहार के गवर्नर


1957 में उन्हें गवर्नर के तौर पर बिहार भेजा गया. जब पंडित नेहरू इस प्रस्ताव को लेकर उनके पास गए तो उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया था. उन्हें दिल का एक दौरा पड़ चुका था. डायबिटीज अपने चरम पर थी. हालांकि अंत में उन्हें राजी कर लिया गया.


हमेशा अपनी तबियत से जूझते रहे


जाकिर हुसैन हमेशा अपनी तबियत से जूझते रहे. हमेशा वह डॉक्टर से संपर्क में रहे और उनका चेकअप चलता रहा. मगर 3 मई 1969 को भी डॉक्टर चेकअप करने आया लेकिन उन्होंने कहा कि वह बाथरुम से लौटकर चेकअप करवाएंगे. इसके बाद वह बाथरूम गए. जब दरबाजा काफी देर तक नहीं खुला तो उनके असिसटेंट इस्साक ने दरबाजा कटखटाया. दरबाजा नहीं खुला बाद में मालूम हुआ कि देश के राष्ट्रपति इस दुनिया को छोड़कर जा चुके हैं. देश का झंडा शोक में झुका दिया गया. वह पहले राष्ट्रपति थे जो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे.


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