Indian Courts Bizarre Bail Conditions: भारत की अदालतें अक्सर आरोपी को जमानत देने के लिए अजीबोगरीब फैसले देती हैं. इसमें एक तरह से बगैर ट्रायल के ही आरोपी को सजा पाने सा महसूस होता है. हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो जून को एक आरोपी को बेल देने के लिए कुछ ऐसी ही अजीबोगरीब (Bizarre) शर्तों वाला फैसला सुनाया. इसमें आरोपी को बरेली में एक रजिस्टर्ड गौशाला या कॉउ शेड में एक लाख रुपए जमा करने और वहां एक महीने तक गायों की सेवा करने को कहा गया.अदालतों के जमानत के लिए इस तरह की अजीबोगरीब शर्त वाले फैसले देना कोई नहीं बात नहीं है, जिनमें अदालतों ने आरोपी को पेड़ लगाने, सामुदायिक सेवा और पैसे का दान करने को कहा है. हालांकि अदालत के इस तरह के फैसलों के पीछे आरोपी को अपने स्तर पर सुधार का विचार शामिल है, लेकिन इस तरह के फैसले आरोपी को आरोप साबित होने से पहले ही सजा पाने जैसे हैं. अदालतों के इस तरह के फैसले आरोपी के दोषी साबित होने तक निर्दोष मानने के सिद्धांत के खिलाफ जाते हैं.इस तरह के कई फैसले सुप्रीम कोर्ट और कई हाईकोर्ट ने खारिज भी किए हैं.

  


जब जमानत के लिए कोर्ट ने दिए अजीब कम्युनिटी सर्विस करवाने के फैसलें


सितंबर 2021 में बिहार (Bihar) की एक लोकल कोर्ट ने  छेड़खानी के आरोपी एक धोबी को इस शर्त पर बेल देने का फैसला किया कि वह छह महीने तक अपने गांव की सभी महिलाओं के कपड़े धोएगा और प्रेस करेगा. इसके बाद उसे गांव के सरपंच या वहां के किसी सम्मानित पब्लिक सर्वेंट से सर्टिफिकेट लाने और उसे कोर्ट में पेश करने का ऑर्डर दिया गया था. जिस जज ने ये फैसला दिया उसी जज ने एक महिला की अस्मिता को चोट पहुंचाने की एवज में एक आरोपी को जमानत पर रिहा करने के लिए नालों की सफाई करने को कहा. इसी जज ने एक केस में  अवैध शराब ले जाने के आरोपी को तीन महीने तक पांच गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठाने पर जमानत देने की शर्त लागू की. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक 15 से अधिक बेल ऑडर्स में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने आरोपियों को अपने घरों के नजदीक प्राइमरी स्कूलों में शारीरिक और आर्थिक तौर पर मदद करने को कहा. कई अन्य केसों में जमानत के लिए हाईकोर्ट ने आरोपियों को कोविड-19 के वॉलियंटर बनने को कहा. साल 2019 में रांची के एक कोर्ट ने बेल के लिए  एक महिला आरोपी को सांप्रदायिक पोस्ट करने पर अलग-अलग लाइब्रेरी में कुरान की पांच प्रतियों का दान करने को कहा. हालांकि बाद में जांच अधिकारी के विरोध और अनुरोध ने यह शर्त वापस ले ली. इसके अलावा आरोपियों को जमानत देने की शर्तों में कोर्ट की सोशल मीडिया से दूरी बनाने जैसी  ऑर्डर भी शामिल हैं. साल 2020 में  मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ फेसबुक पोस्ट करने के आरोपी को इस शर्त पर जमानत दी थी, कि वह एक साल तक सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करेगा. 


 जब कोर्ट ने कहां पैसा करो दान


कई केसों में अदालतों ने आरोपियों को चैरिटेबल कामों के लिए पैसा दान करने को भी कहा. मई 2020 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक जज ने 17 जमानती आदेशों में आरोपियों को जिला मजिस्ट्रेट के पास शोषितों और माइग्रेट लेबर्स के भोजन के प्रबंध और वितरण के पैसा दान करने को कहा. झारखंड के हाई कोर्ट के एक जज ने अप्रैल 2020 में  बेल के लिए हर एक आरोपी को पीएम केयर्स फंड में 35000 रुपये जमा करने का आदेश दिया. इसके साथ ही उन्हें कोविड ट्रेसिंग आरोग्य सेतु एप भी डाउनलोड करने को कहा गया. एमपी के हाई कोर्ट के एक जज ने आरोपी को जमानत देने की एवज में 25 हजार रुपये का LED TV लेने को आदेश दिया. इसके साथ ही यह शर्त भी रखी की टीवी मेड इन चाइना नहीं होना चाहिए.


जमानत मिलेगी लेकिन पेड़ लगाने पर


आरोपियों को जमानत देने की शर्तों में अदालत ने पेड़ लगाने का फैसलें भी शामिल है. अप्रैल में मध्य प्रदेश की ही एक अदालत ने हत्या के प्रयास के एक आरोपी को इस शर्त पर जमानत देने का फैसला सुनाया कि उसे फलों या नीम और पीपल के पेड़ों की 10 सैंपलिंग लगानी होगी और अपने खर्चें पर उनकी देखभाल करनी होगी. जजों की इसी बेंच ने मार्च में जमानत के लिए हत्या के एक आरोपी को छह से आठ फीट के पेड़ों की सैंपलिंग करने और प्रोटेक्शन के लिए उसमें बाड़ लगाने को कहा. इसके साथ ही उसे इस काम की फोटो और स्टेट्स रिपोर्ट हर तीन महीने में तीन साल तक कोर्ट में पेश करने का ऑर्डर दिया गया. इस सब काम को  geo-tagging के जरिए  ट्रैक करने के लिए आरोपी को एक ऐप भी डाउनलोड करने को कोर्ट ने कहा और इन शर्तों को न मानने पर बेल कैंसिल करने की चेतावनी भी दी. 


 कोर्ट ने कहा आरोपी को सुधारेंगी जमानत की ये शर्तें


जमानत के लिए इस तरह की अजीबोगरीब शर्तों पर कोर्ट ने अपना पक्ष भी रखा है. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने जमानत के लिए प्लांट सैंपलिंग करने का ऑर्डर के पर कहा कि "मानव अस्तित्व के लिए करुणा, सेवा, प्रेम और दया की प्राकृतिक प्रवृत्ति को फिर से जगाने की जरूरत है क्योंकि ये मानव अस्तित्व के सहज गुण हैं. जमानत के लिए ये फैसला इसलिए दिया गया, क्योंकि आरोपियों ने समाज सेवा करने की इच्छा व्यक्त की थी. जमानत देते वक्त इसी तरह की शर्त लगाते हुए  जून 2020 में कोर्ट यही बात कही थी.


ट्रायल से पहले ही अपराधी


कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो कानून मानता है कि किसी भी व्यक्ति के दोषी साबित होने तक वह निर्दोष है, लेकिन आरोपियों को बेल देने के लिए हाई कोर्ट के फैसले की ये शर्तें जैसे पैसे का दान या कम्युनिटी सर्विस करवाने की शर्ते ऐसी हैं जैसे आरोपी दोषी साबित होने से पहले ही उसे सजा दी जा चुकी है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत के लिए उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई शर्तें "असंगत हैं और उन शर्तों के लिए कोई उचित संबंध नहीं है जो आरोपी की मौजूदगी को सुरक्षित करने के लिए जरूरी हैं और यह तय करने के लिए कि मुकदमे की निष्पक्ष में इससे बाधा  नहीं पड़ती है. " सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में यह माना है कि जमानत केवल मुकदमे की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए दी जानी चाहिए और जमानत का उद्देश्य, जो कि आरोपी की मौजूदगी को सुरक्षित करना है, "दंडात्मक या निवारक" नहीं हो सकता है. कई मामलों में जुर्माना भी लगाया गया है. मध्य प्रदेश और केरल की स्थानीय अदालतों ने आरोपी व्यक्तियों को जमानत की शर्त के रूप में कोरोना राहत के लिए बनाए गए पीएम-केयर फंड में पैसा जमा करने का निर्देश दिया था. हालांकि, इस शर्त को राज्यों के उच्च न्यायालयों ने खारिज कर दिया था. यहां तक ​​कि झारखंड उच्च न्यायालय ने भी आबकारी विभाग में जमा करने के लिए 60,000 रुपये का जुर्माना लगाने के न्यायिक आयुक्तों के आदेश को खारिज कर दिया था. हाई कोर्ट ने कहा कि यह जुर्माना एक सजा है, जिसे तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक कि दोष साबित न हो जाए.


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