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संसद में शायरीः जब शेर पढ़कर केंद्रीय मंत्री ने दिया था इस्तीफा; सुषमा ने मनमोहन से पूछा था- बता काफिला क्यूं लुटा?

संसद में शायरी और कविता पढ़े जाने का इतिहास वर्षों पुराना है. चीन युद्ध के बाद दिनकर की कविता सुनकर नेहरू ने सिर झुका लिया था. शायरी और कविता के जरिए विपक्षी पार्टियां एक दूसरे पर तीखा हमला बोलती है.

संसद के बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण में दोहे, कविता और शायरी का भी भरपूर इस्तेमाल किया, जो अब सुर्खियां बटोर रही है. सोशल मीडिया पर इसे शेयर भी किया जा रहा है.

लोकसभा में पीएम मोदी ने मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी का शेर 'ये कह कह के हम दिल को बहला रहे हैं. वो अब चल चुके हैं, वो अब आ रहे हैं' के जरिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर निशाना साधा. 

राज्यसभा में कांग्रेस पर तीखा वार करते हुए पीएम ने दुष्यंत कुमार का शेर 'तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं' पढ़ा. विपक्षी नेता मल्लिकार्जुन खरगे और महुआ मोइत्रा में शायरी के जरिए सरकार पर निशाना साधने से नहीं चूकी. 

संसद में शेर-ओ-शायरी और कविता के जरिए वार और पलटवार करने की परंपरा पुरानी है. चीन युद्ध में भारत की हार के बाद राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने भी कविता के जरिए तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू पर निशाना साधा था. 

दिनकर की वो कविता 'देखने में देवता सदृश्य लगता है और बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है' बाद में बहुत ही प्रसिद्ध हुई. दिनकर उस वक्त राज्यसभा में सांसद थे.

शायरी-कविता का इस्तेमाल क्यों करते हैं सांसद?
शेर-ओ- शायरी और कविता का पाठ अक्सर आपने मंच पर सुना होगा. ऐसे में सवाल उठता है कि संसद के भीतर सांसद इसका उपयोग क्यों करते हैं, आइए वजह जानते हैं...

1. समय की पाबंदी- संसद में भाषण देने के लिए सभी सांसदों के लिए वक्त निर्धारित किया जाता है. कई सांसदों को तो 1-2 मिनट का ही वक्त बोलने के लिए मिलता है. ऐसे में पूरी बातें कह पाना मुश्किल हो जाता है.

पूर्व सांसद और वर्तमान में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक इंटरव्यू में बताया था कि कविता में वे बातें कहीं जा सकती हैं जो घंटों के भाषण में संभव नहीं है. इसलिए अधिकांश सांसद अपनी बात कहने के लिए शायरी और कविता का प्रयोग करते हैं. 

2. सांसदों का बैकग्राउंड- दूसरी वजह सांसद का बैकग्राउंड भी है. शुरुआती दिनों से लेकर अब तक सदन में शायर और कवि सांसद बनते आए हैं. ऐसे में वे सरकार पर हमला बोलने के लिए कविता और शायरी का उपयोग बखूबी करते हैं. 

वर्तमान में कांग्रेस और बीजेपी समेत कई पार्टियों में ऐसे सांसद हैं, जो शायर और कवि रह चुके हैं. इनमें रमेश पोखरियाल निशंक, इमरान प्रतापगढ़ी का नाम प्रमुख है. इंदिरा के जमाने में अटल बिहारी वाजपेयी और बाल कवि बैरागी सदन में हुआ करते थे.

संसद का शायराना सफर, 4 कहानी
1. जब शेर पढ़कर केंद्रीय मंत्री ने दे दिया इस्तीफा- साल था 1986. संसद के सत्र में राजीव सरकार ने शाहबानो केस के बाद मुस्लिम धर्मगुरुओं के दबाव में मुस्लिम पर्सनल लॉ बिल पेश किया. सरकार के खिलाफ विपक्ष तो विरोध में था ही, लेकिन अचानक बिल के विरोध में कद्दावर मंत्री आरिफ मोहम्मद खान भी खड़े हो गए. 

खान ने मशहूर शायर शहाब जाफरी का शेर 'मुझे रहजनों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है' पढ़कर कैबिनेट से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया. खान के इस्तीफे से सरकार सन्न रह गई और राजीव गांधी खुद उन्हें मनाने की कोशिश करने लगे.

आरिफ खान बिल के विरोध में कांग्रेस भी छोड़ दिए और बाद में वीपी सिंह के साथ जुड़ गए. वीपी सिंह की सरकार में आरिफ खान को विमानन मंत्री बनाया गया. 

2. इंदिरा के सामने गृहमंत्री ने पढ़ी शायरी- 1982 में ज्ञानी जैल सिंह गृह मंत्री थे उसी दौरान संसद में अविश्वास प्रस्ताव आया. सरकार के खिलाफ विपक्षी नेतओं ने जमकर बयानों के तीर चलाए. 

विपक्ष के हमले से इंदिरा गांधी परेशान थीं. इसी बीच गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह बोलने के लिए उठे. उन्होंने एक शेर तुम तीर मारो सीने पर बेशक, मगर इतना ख्याल रखना कि सीने में दिल है और दिल में तुम्हारा मकाम है' 

जैल के इस शेयर से सदन का माहौल थोड़ा हल्का हुआ. इसी बीच इंदिरा के तेवर देख विपक्षी नेता मधु दंडवते ने उनसे कटुता को लेकर सवाल भी पूछ लिया, जिसका पूरा सदन ठहाकों से गूंज पड़ा.

3. लालू यादव का शेर हुआ था वायरल- 2008 में अमेरिका से परमाणु समझौते के बाद लेफ्ट पार्टियों ने मनमोहन सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया. इसके बाद विश्वासमत प्रस्ताव पेश किया.

सरकार के पक्ष में राजद सुप्रीमो लालू यादव ने खूब दलीलें दी. इस दौरान लालू यादव ने साहिर लुधियानवी का शेर 'तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं/ तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी' पढ़ा. 

लालू ने इस दौरान लाल कृष्ण आडवाणी और जॉर्ज फर्नांडिज पर भी जमकर हमला किया. 

4. सुषमा ने मनमोहन से पूछा था बता काफिला क्यों लुटा?- साल था 2011. लोकसभा में बिजनेस रूल पर बहस चल रही थी. विपक्ष लगातार मनमोहन सिंह पर हमला बोल रहा था. इसी बीच सिंह उठे और अल्लामा इकबाल का एक शेर पढ़ा, ‘माना कि तेरे दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख.' 

मनमोहन सिंह बैठते ही सुषमा स्वराज ने कहा कि मैं भी शेर का जवाब शेर से ही देना चाहती हूं. उन्होंने पढ़ा 'इधर-उधर की तू ना बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा' दोनों का यह वार-पलटवार आज भी यूट्यूब और अन्य जगहों पर खूब देखा जाता है. 

बशीर बद्र, दुष्यंत और निदा फाजली सबसे पॉपुलर
बशीर बद्र का शेर 'दुश्मनी जमकर करो, लेकिन गुंजाइश रहे', निदा फाजली का शेर 'हमे गिराकर संभल सको तो चलो' और दुष्यंत कुमार का शेर 'तुम्हारे पांव के नीचे जमीन नहीं' सांसदों के बीच खूब लोकप्रिय है.

इसके अलावा अल्लामा इकबाल, मुज्फर रज्मी और राहत इंदौरी के शेरों का भी सांसद बखूबी इस्तेमाल करते हैं. अदम गोंडवी और साहिर लुधियानवी के कविता के अंश भी भाषणों में इस्तेमाल किया जाता है. 

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