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इंदिरा गांधी की सदस्यता रद्द होने पर कांग्रेस ने की थी दमदार वापसी, क्या राहुल दिखा पाएंगे वैसा दम?

सदस्यता रद्द होने पर इंदिरा गांधी ने राजनीतिक मुद्दा बनाया और राज्यों में सक्रिय होने लगीं. इंदिरा पर एक्शन के बाद घर बैठे कांग्रेसी भी सड़कों पर आने लगे, जिसका असर 1980 के चुनाव में हुआ.

साल 1978 और तारीख थी 18 नवंबर. दिल्ली में बढ़ती ठंड के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने कर्नाटक के चिकमंगलूर से उपचुनाव जीतकर आई कांग्रेस नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश कर दिया. 

प्रस्ताव पर 7 दिन तक चली बहस के बाद इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता रद्द कर दी गई. सदस्यता रद्द होने के बाद सदन से जब इंदिरा बाहर निकलीं तो कांग्रेसियों में जोश हाई था और नारे लगा रहे थे- एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर-चिकमंगलूर.

ठीक 45 साल बाद सूरत कोर्ट के एक फैसले के बाद लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी है. लोकसभा के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह के हस्ताक्षर से जारी लेटर में कहा गया है कि रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट-1951 के धारा 102 (1)(e) के तहत सदस्यता खत्म की जाती है. 

राहुल को मानहानि केस में सूरत की एक अदालत ने गुरुवार को 2 साल की सजा सुनाई थी. राहुल की सदस्यता रद्द होने के बाद कांग्रेसी सड़कों पर है और डरो मत का नारे लगा रहे हैं.

राहुल की सदस्यता रद्द होने पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि लोकतंत्र बचाने के लिए हम जेल जाने को भी तैयार हैं. उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक बयान में कहा है कि अभी इंदिरा के सभी सिपाही मर नहीं गए हैं. 

इंदिरा गांधी ने की थी दमदार वापसी
इमरजेंसी खत्म होने के बाद कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी नेताओं ने एक मोर्चा बनाया था. मोर्चा का नेतृत्व जय प्रकाश नारायण कर रहे थे. 1977 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी की करारी हार हुई. कांग्रेस पूरे देश में 154 सीटों पर सिमटकर रह गई. यूपी, बिहार, बंगाल और एमपी जैसे राज्यों में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया.

खुद इंदिरा गांधी रायबरेली सीट से चुनाव हार गईं. उनके कई मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस की हार के बाद मोरारजी की सरकार बनी और इसके बाद शुरू हुआ गांधी परिवार पर कार्रवाई का दौर.

1978 में पहले संजय गांधी की गिरफ्तारी हुई और फिर इंदिरा गांधी को पुलिस ने पकड़ लिया. इसी बीच कर्नाटक के चिकमंगलूर सीट पर उपचुनाव की घोषणा हो गई. इंदिरा गांधी ने यहां से पर्चा दाखिल कर दिया. 

इंदिरा के खिलाफ मैदान में उतरे थे दिग्गज समाजवादी नेता वीरेंद्र पाटिल. इंदिरा ने इस चुनाव में पाटिल को 70 हजार से ज्यादा वोटों से हराया और संसद पहुंचने में कामयाब रही. हालांकि, कुछ महीने बाद ही इंदिरा की सदस्यता रद्द कर दी गई.

इसके बाद इंदिरा पूरे देश का दौरा करने लगी. बिहार से लेकर गुजरात और दक्षिण में इंदिरा की जनसभा ने कांग्रेस में जान फूंक दिया. 1980 में आंतरिक टूट के बाद जनता पार्टी की सरकार गिर गई और फिर आम चुनाव की घोषणा हुई.

इंदिरा के सामने जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह जैसे दिग्गज नेताओं की चुनौती थी, लेकिन इंदिरा की राजनीतिक लड़ाई ने कांग्रेस की वापसी करा दी.

1980 में कांग्रेस ने 529 में 363 सीटों पर बड़ी जीत दर्ज की. चौधरी चरण सिंह की पार्टी को 41 और जनता पार्टी को 31 सीटों पर जीत मिली. 

अब राहुल की सदस्यता रद्द, क्या बदलेगा?
मानहानि केस में सूरत की अदालत से 2 साल की सजा मिलने के बाद राहुल गांधी की सदस्यता रद्द हो गई है. लोकसभा सचिवालय से एक्शन के बाद कांग्रेस ने इसे राजनीतिक और कानूनन दोनों तरीके से लड़ने का ऐलान किया है. 

राहुल की सदस्यता रद्द होने से कांग्रेस और भारतीय राजनीति में क्या-क्या बदलाव आएगा. इसको लेकर एबीपी ने वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर और प्रदीप सौरभ से बातचीत की है. जानिए दोनों क्या कहते हैं...

1. कांग्रेस में लड़ना ही होगा एकमात्र विकल्प- वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं- कांग्रेस में अधिकांश नेता सुविधाभोगी हैं और यही वजह है कि कई एक्शन के बावजूद कांग्रेस पूरी तरह राजनीतिक लड़ाई लड़ने में सफल नहीं हो पाई है.

राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने के बाद कांग्रेस के नेताओं में यह डर बनेगा कि आगे उन पर भी कार्रवाई हो सकती है. इसलिए आने वाले दिनों में कांग्रेस और आक्रामक हो सकती है. कांग्रेस कानूनी से ज्यादा इसे राजनीतिक और भावनात्मक मुद्दा बनाएगी.

अख्तर आगे कहते हैं- दक्षिण के राज्य कर्नाटक से इसकी शुरुआत हो सकती है. कांग्रेस को अगर हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलती है तो आने वाले दिनों में पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.

2. विपक्षी दलों की रणनीति बदल सकती है- वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सौरभ कहते हैं- अब तक विपक्षी दल अलग-अलग राग अलाप रही थी, लेकिन राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने के बाद विपक्षी दलों की रणनीति में बदलाव आएगा.

सूरत कोर्ट के फैसला आने के बाद राहुल गांधी के समर्थन में कई नेता आ चुके हैं. विपक्ष के अमूमन नेताओं को समझ आ चुका है कि अलग रहेंगे तो सरकारी मशीनरी से निपटा दिया जाएगा. ऐसे में 2024 में विपक्ष 1977 की तरह एकजुट हो सकती है.

1977 में भी इंदिरा गांधी के खिलाफ लेफ्ट और राइट सभी विचारधाराओं के लोग एकजुट हो गए थे और कांग्रेस की सत्ता पलट दी थी. हालांकि, 1977 और अभी में काफी अंतर है, लेकिन विपक्षी दलों को अब बिना मुद्दों के भी एकजुट होने की वजह मिल गई है.

3. कांग्रेस की ताकत का पता चलेगा- भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस के मजबूत होने का दावा किया जा रहा था. खुद राहुल गांधी यात्रा के बाद मध्य प्रदेश में ऐलान कर दिया था कि यहां कांग्रेस की जीत तय है. 

प्रदीप सौरभ के मुताबिक राहुल की सदस्यता रद्द होने के बाद कांग्रेस की असल शक्ति का पता चलेगा. सरकार में बैठे लोग भी यही चाहते होंगे. मामला कानूनी भले हो, लेकिन कांग्रेस इसे राजनीति बनाने पर जुटी है.

कांग्रेस की ताकत देखने के बाद ही अन्य पार्टियां भी इस पर कोई सख्त स्टैंड ले सकती है. कई दलों के नेता कानूनी पंचड़ों में फंसे हुए हैं. ऐसे में आने वाले दिनों में ही कांग्रेस और दिल्ली की सियासत का यह धुंध पूरी तरह छंटेगा.

क्या राहुल गांधी वापस ला पाएंगे 1980 का दौर?
राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने के बाद सबसे बड़ा सवाल है कि क्या वे दादी इंदिरा गांधी की तरह 1980 की तरह कांग्रेस की वापसी करा सकते हैं? वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर इस सवाल के जवाब में कहते हैं, 'कांग्रेस की रणनीति पर सब कुछ निर्भर है. राजनीति लड़ाई अगर कांग्रेस रणनीति बनाकर लड़ेगी तो 2024 में बहुत कुछ बदल सकता है.'

प्रदीप सौरभ बताते हैं, 'इस प्रकरण के बाद राहुल गांधी मजबूत होंगे. इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन कांग्रेस को इसका राजनीतिक फायदा मिलेगा या नहीं, यह कहना जल्दबाजी होगा.'

सौरभ के मुताबिक आने वाले दिनों इस मसले पर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का क्या रूख रहता है, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा. 

कांग्रेस ने सूरत कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाया है और इसे हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही है. कांग्रेस ने पूरे मामले में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी को मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी सौंपी है.

कर्नाटक के कोलार में 2019 की एक रैली में राहुल गांधी ने चोर और मोदी को लेकर टिप्पणी की थी, जिसमें क्रिमिनल ऑफेंस के तहत सूरत कोर्ट में मानहानि का केस किया गया था. 4 साल तक चली इस मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने राहुल को 2 साल की सजा सुनाई है.

दक्षिण में तब भी थी मजबूत, अब भी मजबूत है 
1977 में करारी हार के बावजूद कांग्रेस दक्षिण भारत में मजबूत स्थिति में थी. उस कांग्रेस गठबंधन को दक्षिण भारत में करीब 100 से ज्यादा सीटें मिली थी. वर्तमान में भी कांग्रेस दक्षिण भारत में ही सबसे मजबूत है. कांग्रेस गठबंधन का तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में मजबूत पकड़ है. 

राहुल गांधी खुद भी केरल के वायनाड सीट से चुनाव जीते थे. केरल में कांग्रेस गठबंधन के पास 85 फीसदी सीटें है. तमिलनाडु में भी कांग्रेस और डीएमके गठबंधन का दबदबा है. हालांकि, आंध्र प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार जरूर खिसका है. वहां जगनमोहन रेड्डी की पार्टी ने कांग्रेस का स्थान ले ली है.

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