साल 2023 की शुरुआत में तुर्की में आए 7.8 तीव्रता के भूकंप को 3 करोड़ लोगों ने महसूस किया. 1 मिनट तक महसूस किए गए भूकंप में लगभग 45000 लोगों की जान चली गई थी. वहीं भारी तबाही से देश को 104 बिलियन डॉलर का नुकसान भी हुआ. इस भूकंप ने तुर्की को सालों तक न मिटने वाला दर्द दे दिया.
इसके बाद भी इसी क्षेत्र में भूकंप के कई झटके भी महसूस किए गए. जिसके बाद दुनियाभर में इसे लेकर लोग खासा सतर्क हो गए. इसी तरह बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, असम और उत्तरकाशी में आए भूकंप ने भी लोगों को दहला कर रख दिया था.
अक्सर कहा जाता है कि क्लाइमेट चेंज हो रहा है, जिसके चलते लगातार भूकंप का खतरा सिर पर मंडरा रहा है, वहीं गर्मी के मौसम में भी ज्यादा भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं, लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है? आइए जानते हैं.
भूकंप से पहले मौसम में होता है कैसा परिवर्तन?
भूकंप के बारे में बहुत सारे मिथक हैं. कहा जाता है 'भूकंप का मौसम' जैसी भी कोई चीज होती है. भूंकप से पहले मौसम बदल जाता है. जैसे मौसम शुष्क हो जाता है और आसमान में बादल छा जाते हैं.
ये मिथक चौथी शताब्दी ईसा पूर्व यूनानी फिलॉसाफर अरस्तू ने दिया था. उन्होंने बताया था, भूकंप भूमिगत गुफाओं से निकलने वाली फंसी हवाओं के कारण होते हैं.
उनका मानना था कि जमीन के अंदर बड़ी मात्रा में फंसी हुई हवा भूकंप से पहले पृथ्वी की सतह पर मौसम को गर्म और शांत बना देती है.
क्यों आता है भूकंप?
धरती के अंदर कुल सात प्लेट्स हैं. जो हमेशा कार्य करती रहती हैं. जहां ये प्लेट्स टकराती हैं उन्हें फाल्ट जोन कहा जाता है. जब ये प्लेट्स टकराती हैं तो ऊर्जा बाहर निकलने की कोशिश करती है.
इससे जो हलचल होती है वही भूकंप बन जाती है. भूकंप का केंद्र सतह से जितना नजदीक होता है, तबाही उतनी ही बड़ी होती है.
कितनी तीव्रता पर भूकंप कैसा महसूस होता है?
अगर भूकंप की तीव्रता 0 से 1.9 रिक्टर होती है तो ये महसूस नहीं होता. इसका पता सीज्मोग्राफ से लगाया जाता है. वहीं 2 से 2.9 रिएक्ट होने पर हल्क कंपन महसूस होता है.
इसके अलावा इसकी तीव्रता 3 से 3.9 होने पर थोड़े जोर के झटके महसूस होते हैं. 4 से 4.9 रिक्टर होने पर खिड़कियां टूट सकती हैं. वहीं 5 से 5.9 रिक्टर होने पर सामान और पंखे हिलने लगते हैं.
इसकी तीव्रता 6 से 6.9 होने पर मकान की नींव में दरार आ सकती है और 7 से 7.9 की तीव्रता में मकान गिर जाते हैं और काफी तबाही हो सकती है. इसके बाद 8 से 8.9 की तीव्रता पर अगर भूकंप आता है तो सुनामी का खतरा होता है.
वहीं भूकंप की तीव्रता 9 होती है तो खड़े होने पर भी पृथ्वी हिलती नजर आएगी.
जलवायु परिवर्तन का भूकंप पर असर होता है?
शोध से पता चलता है कि हमारी बदलती जलवायु केवल पृथ्वी के ऊपरी हिस्से पर खतरों को प्रभावित नहीं करती, बल्कि जलवायु परिवर्तन और विशेष रूप से बढ़ती वर्षा दर और हिमनदों का पिघलना पृथ्वी की सतह के नीचे भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट जैसे खतरों को भी बढ़ा सकता है.
यूरोप और उत्तरी अमेरिका में सूखे को कुछ समय पहले काफी मीडिया कवरेज मिली, लेकिन 2021 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की छठी आकलन रिपोर्ट से पता चलता है कि, 1950 के बाद से विश्व के कई क्षेत्रों में औसत वर्षा वास्तव में बढ़ी है.
एक गर्म वातावरण अधिक जल वाष्प को बरकरार रख सकता है, जिसके चलते बहुत तेज वर्षा हो सकती है.
भूवैज्ञानिकों ने लंबे समय से वर्षा दर और भूकंप के दौरान होने वाली गतिविधी पर रिसर्च की. जिससे पता चला कि हिमालय में, भूकंप की आवृत्ति मानसून के दौरान साल भर प्रभावित होती है.
शोध से पता चलता है कि हिमालय में 48% भूकंप मार्च, अप्रैल और मई के सूखे और प्री-मानसून महीनों के दौरान आते हैं, जबकि केवल 16% मानसून के मौसम में आते हैं.
बारिश के मौसम के दौरान भूमि का 4 मीटर हिस्सा लंववत और क्षैतिज रूप से दब जाता है. जब सर्दियों में पानी गायब हो जाता है तो प्रभावी 'रिबाउंड' क्षेत्र अस्थिर हो जाता है और भूंकप की संख्या बढ़ जाती है.
भारत में 2022 से 2023 के बीच आए कितने भूकंप?
अर्थक्वैक लिस्ट के अनुसार, भारत में 2022 में 300 भूकंप आए. वहीं साल 2023 में सितंबर महीने तक 150 भूकंप के छोटे-बड़े झटके महसूस किए जा चुके हैं. 2013 और 2014 में भी देश में इतने ही भूकंप के झटके महसूस किए गए थे.
हालांकि 2015 में ये लिस्ट सबसे बड़ी थी. इस साल लगभग 700 भूकंप के झटके महसूस किए गए थे. जो पिछले 10 सालों में सबसे ज्यादा थे.
भारत में आए 5 सबसे भयानक भूकंप
भारत में पिछले कुछ सालों में भयानक भूकंप आया है. जिसने भारी तबाही मचाई है.
2001 में गुजरात में आया भूकंप
2001 में गुजरात के भुज में भीषण भूकंप आया था. 8 बजकर 40 मिनट पर आया ये भूकंप लगभग 2 मिनट तक चला था. जिसमें 20 हजार लोगों की जान चली गई थी. इसके अलावा हजारों लोग भी घायल हुए थे. इस भूकंप से भारी नुकसान भी हुआ था.
1934 में बिहार में आया भूकंप
इस साल जहां देश में आजादी की लड़ाई चल रही थी वहीं बिहार में 8.1 की तीव्रता का भूंकप आया था. जिससे मुंगेर और जमालपुर शहर पूरी तरह मलबे के ढेर में तब्दील हो गए थे.
ये भूकंप इतना तेज था कि इसका असर कलकत्ता तक देखने को मिला था. इस भयंकर तबाही में 30, 000 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. वहीं कई लोगों के घर भी उजड़ गए थे.
1993 में आया महाराष्ट्र भूकंप
30 सितंबर, 1993 को महाराष्ट्र में 20 हजार से अधिक लोग मारे गए थे. लातूर के किल्लारी गांव में आए इस भूकंप की तीव्रता 6.4 रिक्टर थी. भूकंप इतना भीषण था कि इससे 52 गांव पूरी तरह तबाह हो गए थे.
1950 में असम में आया भूंकप
असम भूकंप जिसे मेडोग भूकंप के नाम से भी जाना जाता है, 15 अगस्त 1950 को आया था. इसकी तीव्रता रिएक्ट पैमाने पर 8.6 मापी गई थी.
इस भूकंप का केंद्र तिब्बत के रीमा में स्थित था. जिसकी वजह से असम और तिब्बत दोनों जगह भारी तबाही देखी गई थी. इसके चलते सिर्फ असम में 1500 से अधिक लोगों की मौत हुई थी. जो 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े भूकंप में से एक माना गया.
1991 में उत्तरकाशी में आया भूकंप
20 अक्टूबर, 1991 में उत्तराखंड के उत्तरकाशी के चमोली और टिहरी जिलों में 6.1 तीव्रता का भूकंप आया था. इस भूंकप के झटके दिल्ली तक महसूस किए गए थे, जिसमें एक हजार लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.