नई दिल्लीः इस साल देश का सबसे बड़ा चुनाव बिहार का है. नीतीश कुमार राज्य के दौरे पर निकल चुके हैं. लेकिन पटना से लेकर दिल्ली तक हर जगह चर्चा सीटों के बंटवारे को लेकर है. बीजेपी को गठबंधन में कितनी सीटें मिलेंगी? जेडीयू किस फ़ार्मूले पर राज़ी होगी? कभी कभी तो ये भी सवाल उठने लगता है कि दोनों चुनाव तक साथ रहेंगे या नहीं? जितने नेता, उतनी बातें. लेकिन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कई बार कह चुके हैं “नीतीश जी के नेतृत्व में ही हम बिहार में चुनाव लड़ेंगे. राज्य में विधानसभा चुनाव अभी आठ-नौ महीने दूर हैं. लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर सभी पार्टियों के अंदर मंथन शुरू हो गया है.
बिहार में जेडीयू और बीजेपी साथ साथ तो हैं, लेकिन दिल से नहीं. सीटों के बँटवारे को लेकर दोनों के अपने अपने दावे हैं. लोकसभा चुनाव तो 50-50 के फ़ार्मूले पर लड़े. लेकिन विधानसभा में जेडीयू अपने लिए बड़े भाई का रोल चाहती है. पार्टी के एक सांसद कहते हैं दिल्ली में बीजेपी तो पटना में हम. जेडीयू को मन मुताबिक़ जगह नहीं मिली तो वो मोदी कैबिनेट से बाहर ही रही. जेडीयू ने तो पीएम नरेन्द्र मोदी की चाय पार्टी में जाना भी उचित नहीं समझा. प्रशांत किशोर के एक्टिव होने के बाद से मामला और पेचीदा हो गया है. जेडीयू किसी भी सूरत में 140 से कम सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है. वो चाहती है कि बाक़ी सीटें बीजेपी अपने पास रख ले. पार्टी के एक सीनियर लीडर ने कहा हम दोनों पार्टियाँ अपने अपने कोटे से बराबर सीटें रामविलास पासवान के लिए छोड़ देंगे.
जेडीयू कैंप से लगातार कहा जा रहा है कि इस बार फ़ार्मूला 2010 का चलेगा. तब गठबंधन में पार्टी को 141 सीटें मिली थीं. बीजेपी के हिस्से में 102 सीटें आई थीं. उस समय रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी गठबंधन से बाहर थी. अब दौर मोदी और शाह के बीजेपी का है. जेडीयू के एक बड़े नेता कहते हैं अटल जी के जमाने में का गठबंधन धर्म अब बदल गया है. सबसे पुराने साथी शिवसेना को भी अलग होना पड़ा. वे कहते हैं अगर चुनाव बाद हमारा एक भी विधायक कम रहा तो बीजेपी सीएम पर भी दावा ठोंक देगी.
नागरिकता क़ानून पर समर्थन देने के बाद नीतीश कुमार एनआरसी पर ख़िलाफ़ हो गए हैं. अब तो वे विधानसभा में भी सीएए पर बहस कराना चाहते हैं. प्रशांत किशोर शुरू से ही सीएए और एनआरसी का विरोध करते रहे हैं. सरकार में होने के बाद भी जेडीयू और बीजेपी में तनातनी जारी है. नीतीश कुमार अकेले ऐसे मुख्य मंत्री हैं जो मोदी के दुबारा पीएम बनने पर उनसे मिलने दिल्ली नहीं आए हैं. ये तो तय है कि साल के आख़िर में होने वाले चुनाव से पहले बीजेपी और जेडीयू में उठा पटक जारी रहेगी. अब तक तो नीतीश कुमार मौन हैं, मोर्चा उनके सिपहसलारों ने सँभाल रखा है.