झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस अब महाराष्ट्र के गवर्नर बनाए गए हैं. ये महज एक सूचना है, लेकिन बैस के जाने के बाद राज्य के सियासी गलियारों में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी को लेकर अटकलें शुरू हो गई है.


'ऑफिस ऑफ प्रॉफिट' मामले में हेमंत सोरेन की सदस्यता वाली फाइल पिछले 6 महीने से राजभवन में ही दबी पड़ी है. रिपोर्ट के मुताबिक नए राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन अगले हफ्ते झारखंड की कमान संभाल सकते हैं, जिसके बाद ही मुख्यमंत्री की फाइल पर फैसला हो सकता है.


मुख्यमंत्री सोरेन की सदस्यता वाली फाइल पर फैसला नहीं लेने की वजह से कई बार बैस की आलोचना भी हुई. सरकार और राजभवन में टकराव जैसी स्थिति भी देखने को मिल चुकी है. इसके बावजूद फाइल के बारे में खुलासा किए बिना रमेश बैस का जाना भी चर्चा में बना हुआ है.


हेमंत सोरेन पर क्या है आरोप?
बीजेपी के आरोप के मुताबिक मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत सोरेन ने रांची के अनगड़ा में 88 डिसमिल पत्थर माइनिंग लीज पर लिया, जो कि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला है. सोरेन ने ऐसा कर लोक जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RP) 1951 की धारा 9A का भी उल्लंघन है.


इस धारा में दोषी पाए गए व्यक्ति की सदस्यता रद्द होने के साथ-साथ उसके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगाया जा सकता है. हेमंत सोरेन की पार्टी जेएमएम का कहना है कि लीज लेना ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला नहीं है.


2 बयान, जिस पर खूब हंगामा हुआ..


झारखंड में एटम बम तो फूटेगा. सदस्यता रद्द वाली फाइल पर फैसला लेना मेरे अधिकार क्षेत्र में है. इसके लिए कोई मुझे बाध्‍य नहीं कर सकता है. (राज्यपाल रमेश बैस, 22 अक्टूबर 2022 को)


झारखंड की सरकार गिराने के लिए केंद्र एक्टिव है. मैं शिबू सोरेन का बेटा हूं और डरने वाला नहीं हूं. बीजेपी गृहयुद्ध का वातावरण बना रही है और दंगे फैलाकर चुनाव जीतना चाह रही है. (मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, 5 सितंबर 2022)


ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में अब तक क्या-क्या हुआ?


10 फरवरी 2022- झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री ने शपथपत्र में एक जानकारी छिपाई है. दास ने कहा कि रांची के अनगड़ा में हेमंत सोरेन ने खनीज पट्टे पर लिया, जो ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला है. 


11 फरवरी 2022- रघुबर दास के आरोप के बाद बाबूलाल मरांडी और बीजेपी अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने राज्यपाल से शिकायत की. मरांडी ने राज्यपाल को कुछ दस्तावेज भी सौंपे. 


10 मार्च 2022- बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने मामले को पीएमओ और गृह मंत्रालय में उठाया, जिसके बादा राजभवन ने चुनाव आयोग से कानूनी सलाह देने के लिए कहा.


25 अगस्त 2022- चुनाव आयोग ने सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंप दिया. बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने ट्वीट कर सदस्यता रद्द की बात कही.


5 सितंबर 2022- राजनीतिक अस्थिरता से बचने के लिए हेमंत सरकार ने विधानसभा में विश्वासमत प्रस्ताव पेश किया. 81 विधायकों में से 48 विधायकों ने पक्ष में वोट किया. 


क्या हेमंत सोरेन की सदस्यता जाएगी?
ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला अगर साबित होता है, तो हेमंत सोरेन की सदस्यता जा सकती है. जेएमएम ने इसका काट भी खोज रखा है. हां, अगर सदस्यता रद्द के साथ ही चुनाव लड़ने पर रोक लगाया जाता है तो हेमंत सोरेन की मुश्किलें बढ़ सकती है.


जेएमएम का कहना है कि चुनाव आयोग ने जो भी मंतव्य दिया है, उसे सार्वजनिक करना चाहिए. ऐसे में नए राज्यपाल पर भी इसका दबाव बनेगा. चूंकि मामला 6 महीने पुराना है, इसलिए नए राज्यपाल भी इसे जल्द जारी कर सकते हैं.


सदस्यता रद्द हुई तो हेमंत के पास ऑप्शन क्या?



  • हेमंत सोरेन इस्तीफा देकर यूपीए की बैठक बुला सकते हैं. विधायक दल की बैठक के बाद फिर से मुख्यमंत्री बनने का दावा ठोक सकते हैं. सरकार का नए सिरे से शपथ ग्रहण होगा. हेमंत सोरेन को 6 महीने के भीतर किसी सीट से विधायक का चुनाव जीतना होगा.

  • सदस्यता रद्द के अलावा अगर चुनाव लड़ने पर भी रोक लगाया जाता है तो जेएमएम हाईकोर्ट का रूख करेगी. राज्यपाल के फैसले को चुनौता दिया जाएगा. कोर्ट के फैसला आने तक सरकार बनाने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी. इसके तहत हेमंत सोरेन की पत्नी भी मुख्यमंत्री बन सकती हैं. 


बीजेपी के लिए कैसे मुश्किल बन सकता है फैसला
1. बाबूलाल मरांडी की सदस्यता खतरे में- 2019 के बाद बाबू लाल मरांडी ने अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का विलय बीजेपी में कर दिया था. उस वक्त बाबूलाल समेत 3 विधायक जेवीएम के पास था. बाबूलाल के फैसले को 2 विधायक ने नहीं माना और बीजेपी के बदले कांग्रेस में शामिल हो गए. 


यह मामला विधानसभा स्पीकर के पास है और बाबूलाल की सदस्यता पर भी फैसला होना है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द होती है, तो स्पीकर बाबूलाल की सदस्यता रद्द कर सकते हैं.


2. खतिहानी और बाहरी का मुद्दा- हेमंत सोरेन सरकार ने आदिवासियों की मांग को देखते हुए राज्य में 1932 खतिहानी अधिनियम का बिल विधानसभा में पास करवाया, जिसे पिछले दिनों राज्यपाल ने खारिज कर दिया था. अगर यह नियम लागू हो गया तो वही लोग झारखंडी माने जाएंगे, जिसके पास 1932 का खतिहान हो. 


सोरेन की पार्टी का कहना है कि राजभवन बीजेपी के शह पर फैसला दे रही है. हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द होने के बाद जेएमएम इसे और ज्यादा भुनाएगी. पार्टी बाहरी बनाम मूलनिवासी के मुद्दे पर लगातार मुखर है. 


अब जाते-जाते 3 सवाल और उनके जवाब भी जान लीजिए...


1. क्या कार्यभार संभालते ही राज्यपाल फैसला दे देंगे?
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह के मुताबिक नए राज्यपाल पहले यह जानेंगे कि अब तक क्यों यह फैसला सार्वजनिक नहीं किया गया. अगर हाईकमान की वजह से फैसला रूका होगा तो वो भी इस पर जरूर विचार करेंगे. ऐसे में मामला टल भी सकता है.


2. फैसला टलने की वजह से पब्लिक को भी नुकसान हुआ?
प्रदीप सिंह के मुताबिक विधायकों को जो भी सुविधाएं मिलती है, वो पब्लिक मनी से ही दिया जाता है. ऐसे में अगर चुनाव आयोग ने 6 महीने पहले सिफारिश दी थी तो उसे तुरंत सार्वजनिक करना चाहिए. मान लीजिए सदस्यता रद्द की सिफारिश होगी तो 6 महीने का वेतन और आदि सुविधाएं तो मुफ्त में मिला.


3. हेमंत की सदस्यता रद्द होने से सरकार को भी खतरा है?
फिलहाल नहीं. 81 सदस्यों वाली झारखंड विधानसभा में एक सीट रिक्त है, जिस पर चुनाव हो रहा है. बाकी के 80 सीटों में से गठबंधन के पास करीब 50 सीट हैं. इनमें जेएमएम(30), कांग्रेस(17), राजद-माले और एनसीपी की एक-एक सीट शामिल हैं.


सरकार बचाने के लिए 41 विधायकों की जरूरत है. अगर हेमंत और उनकी भाई की सदस्यता रद्द भी होती है तो गठबंधन के पास 48 विधायकों का समर्थन रहेगा.