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हिमाचल में हार के बावजूद जेपी नड्डा ही बीजेपी के बॉस, ये साल उनके लिए है 'अग्निपथ'

जेपी नड्डा को बीजेपी हाईकमान ने जून 2024 तक फिर से पार्टी की कमान सौंप दी है. मोदी कैबिनेट में मंत्री रहे नड्डा 2010 में राष्ट्रीय राजनीति मे आए थे. 2014 के बाद उनका कद लगातार पार्टी में बढ़ता गया.

बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दूसरे दिन की बैठक में जेपी नड्डा को फिर से अध्यक्ष बनाया गया है. लोकसभा चुनाव को देखते हुए उनका कार्यकाल जून 2024 तय कर दिया गया है. नड्डा तीसरे ऐसे अध्यक्ष होंगे, जिन्हें दूसरी बार पार्टी की कमान मिलेगी. इससे पहले राजनाथ सिंह, लालकृष्ण आडवाणी दो या उससे अधिक कार्यकाल के लिए अध्यक्ष रह चुके हैं. 

मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके जेपी नड्डा को संगठन का भी तजुर्बा है. अध्यक्ष बनने से पहले नड्डा जम्मू-कश्मीर और यूपी के प्रभारी महासचिव रह चुके हैं. 2010 में नड्डा राष्ट्रीय राजनीति में आए थे, उस वक्त नितिन गडकरी ने उन्हें पार्टी का सचिव नियुक्त किया था. 

हिमाचल में करारी हार, फिर विश्वास क्यों?

हिमाचल प्रदेश जेपी नड्डा का गृह राज्य है और यहां हाल ही में हुए चुनाव में पार्टी की करारी हार हुई है. हिमाचल में बीजेपी की हार के बाद माना जा रहा था कि जेपी नड्डा की कुर्सी पर भी संकट के बादल छाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आखिर क्यों, आइए जानते है...

मोदी-शाह के फैसले को संगठन में लागू करने में माहिर
2021 मोदी कैबिनेट में फेरबदल होना था. प्रधानमंत्री आवास पर नए नामों को लेकर पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा के बीच मीटिंग हुई. बैठक में कुछ कद्दावर मंत्रियों को हटाने पर भी सहमति बनी. इनमें रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावेड़कर और हर्षवर्धन जैसे नाम शामिल थे. 

मंत्रियों से इस्तीफा भिजवाने की जिम्मेदारी जेपी नड्डा को सौंपी गई. नड्डा ने हटाए जाने वाले सभी 12 मंत्रियों को फोन कर पीएमओ इस्तीफा भेजने के लिए कहा. इस प्लान को इतनी आसानी से अंजाम दिया गया कि शुरुआत में किसी को भनक तक नहीं लगी. 

बिहार-यूपी में बेहतरीन परफॉर्मेंस का ईनाम मिला
जेपी नड्डा 2020 में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए थे. इसके बाद करीब 14 राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए हैं. इनमें 5 राज्यों में बीजेपी अकेले दम पर सरकार बनाई, जबकि 2 राज्यों में गठबंधन के साथ सरकार बनाने में सफल रही. 

नड्डा के नेतृत्व में बिहार और यूपी में बीजेपी ने बेहतरीन परफॉर्मेंस किया. बिहार में 74 सीटें जीतकर बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, जबकि यूपी में 250 से ज्यादा सीटें जीतकर बीजेपी ने सरकार बनाई थी. इन दोनों राज्यों में लोकसभा की कुल 120 सीटें हैं.

मिशन 2024 मोड में नड्डा, 9 राज्यों में जमीन मजबूत करेंगे
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के पहले दिन जेपी नड्डा ने सभी महासचिव और प्रभारियों से कहा कि आगामी 9 चुनाव में जीत दिलाने की दिशा में काम करें. नड्डा ने कहा- प्रधानमंत्री जितना मेहनत करते हैं, उतनी मेहनत आप सब भी संगठन के कामकाज में करे. 

2023 में जिन 9 राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें से 5 राज्यों में बीजेपी गठबंधन की सरकार है. यानी इन पांचों राज्यों में बीजेपी के सामने सरकार बचाने की भी चुनौती है. वहीं 4 राज्य तेलंगाना, राजस्थान, मिजोरम और छत्तीसगढ़ में जिताने की भी चुनौती है. 


हिमाचल में हार के बावजूद जेपी नड्डा ही बीजेपी के बॉस, ये साल उनके लिए है 'अग्निपथ

नड्डा के फिर से अध्यक्ष बनने के स्थिति में बीजेपी हाईकमान सभी राज्यों में आसानी से रणनीति को अमल में ला सकती है. गठबंधन के साथी बनाने की दिशा में भी पार्टी काम कर रही है. मोदी-शाह के भरोसेमंद होने की वजह से नड्डा यह काम आसानी से कर सकते हैं. 

9 राज्यों के चुनाव बीजेपी के लिए क्यों महत्वपूर्ण, 2 फैक्ट्स...

यहां पर लोकसभा की 116 सीटें- 2023 में जिन 9 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, उन राज्यों में लोकसभा की कुल 116 सीटें हैं. सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में 29, कर्नाटक में 28 और राजस्थान में 25 सीटें हैं. तेलंगाना की 17 और छत्तीसगढ़ की 11 सीटें भी लोकसभा चुनाव के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है. 

9 राज्यों में 93 सांसद बीजेपी के- 2023 में जिन 9 राज्यों में चुनाव प्रस्तावित है, वहां की 116 में से 93 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. राजस्थान और त्रिपुरा में पार्टी ने क्लीन स्वीप किया था. कर्नाटक के बाद तेलंगाना दक्षिण भारत का दूसरा राज्य है, जहां 2019 में बीजेपी ने 4 सीटें जीती थी.

नड्डा ही क्यों, मोदी-शाह का संगठन को 3 संदेश

1. अध्यक्ष पद पर लो प्रोफाइल व्यक्ति- अमूमन सत्ताधारी पार्टी में संगठन और सरकार के बीच खिंचातानी होती रहती है. अटल बिहारी से लेकर मनमोहन सिंह की सरकार तक में देखा गया था. नड्डा बीजेपी में लो प्रोफाइल के नेता माने जाते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन शर्मा कहते हैं, 'सरकार में शामिल लोग हमेशा से लो प्रोफाइल व्यक्ति को ही संगठन में रखना चाहते हैं, जिससे सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कम हो.'

2. नागपुर नहीं, दिल्ली ही राजनीतिक का केंद्र- 2009 में बीजेपी की करारी हार के बाद नागपुर यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अध्यक्ष का नाम दिल्ली भेजा जाता था. नितिन गडकरी भी आरएसएस के ही कहने पर अध्यक्ष बनाए गए थे. हालांकि, संघ ने इस पर कई बार सफाई भी दी है. 

लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. मोदी के चेहरे और शाह की रणकुशलता से पार्टी लगातार बड़ी जीत हासिल कर रही है. ऐसे में नड्डा के एक्सटेंशन के बाद यह माना जा रहा है कि बीजेपी का राजनीति केंद्र अब नागपुर की बजाय दिल्ली हो चुका है. 

3. काम जरूरी, बयानबाजी वालों को तरजीह नहीं-  पीएम मोदी कई बैठकों में नेताओं को हिदायत दे चुके हैं कि काम पर ध्यान दीजिए, बयानबाजी पर नहीं. नड्डा का एक्सटेंशन भी इसी को ध्यान में रखते हुए किया गया है. अध्यक्ष होने के बावजूद नड्डा सभी मुद्दों पर बयानबाजी करने से परहेज करते रहे हैं. 

नड्डा ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि अध्यक्ष बनने के बाद से अब तक मैंने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली है. उन्होंने इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी का छुट्टी नहीं लेने का उदाहरण भी दिया. नड्डा को इसका भी फायदा मिला है. 

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