फरवरी में हुए चुनाव के बाद कोसोवो की संसद ने रविवार को पांच वर्ष के लिए नई राष्ट्रपति को चुन लिया है. युद्ध के बाद की अवधि में दूसरी महिला नेता और बाल्कन राष्ट्र की सातवीं राष्ट्रपति हैं. 120 सीटों वाली संसद में देश का महत्वपूर्ण पद संभालने के लिए दो दिनों तक अप्रत्याशित सत्र चला जिसमें जोसा उसमानी को मतदान के तीसरे चरण में 71 वोट पड़े जबकि 11 वोट को अयोग्य ठहरा दिया गया.
कौन हैं कोसोवो की राष्ट्रपदि के पद पर पहुंचनेवाली महिला?
दो विपक्षी पार्टियों के अलावा एक छोटी सर्ब पार्टी ने मतदान का बहिष्कार किया. नवंबर में उसमानी ने अस्थायी तौर पर पूर्व राष्ट्रपति हाशमी थाची की जगह ली थी. हेग की विशेष अदालत में मानवता के विरुद्ध अपराध और युद्ध अपराध के आरोपों का सामना कर रहे हाशमी के इस्तीफे के बाद पद खाली था. 1990 की दहाई में सर्बिया से स्वतंत्रता के लिए कोसोवो की जंग के दौरान उनकी भूमिका सशस्त्र नेता प्रमुख के तौर पर उभरी थी.
उसमानी को चुनाव में विशाल जीत दर्ज करनेवाली पार्टी का समर्थन प्राप्त था. पार्टी के पास तीन प्रमुख पद राष्ट्रपति, स्पीकर और प्रधानमंत्री का है. राष्ट्रपति के तौर पर उसमानी के पास राष्ट्राध्यक्ष का परंपरागत पद होगा. लेकिन उनकी विदेश नीति में अग्रणी भूमिका रहेगी और सशस्त्र बलों की कमांडर भी होंगी. कोसोवो को 100 से ज्यादा देशों की मान्यता प्राप्त है लेकिन सर्बिया या सर्बियाई गठबंधन जैसे रूस और चीन का नहीं है.
मीडिया में बताया जा रहा 21वीं सदी की महिलाओं का आदर्श
स्थानीय मीडिया ने उसमानी को भ्रष्ट कुलीन वर्ग के बारे में पहली बार साहसपूर्वक बोलने के लिए 'निडर' बताया है. हाल ही में कानून की एक पत्रिका ने राष्ट्रपति की प्रशंसा करते हुए लिखा, "उसमानी ने लाखों कोसोवो नागरिकों का दिल जीत लिया है क्योंकि उनका व्यक्तित्व करिश्माई है, दृढ़ है और महिलाओं के लिए 21वीं सदी का आदर्श हैं." हालांकि, उनके आलोचकों का कहना है कि उनके अंदर अनुभव की कमी है.
38 वर्षीय राजनेता ने कोसोवो की यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की और अमेरिका में पिटसबर्ग यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री ली. कोसोवो में संसद के अध्यक्ष की भूमिका निभाते हुए उसमानी ने पूर्व राष्ट्रपति के इस्तीफे के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद भी संभाला है. दो बच्चों की मां उसमानी अंग्रेजी, तुर्की, स्पेनिश और सर्बियाई के अलावा मातृ भाषा अल्बेनियन बोलती हैं. चुनाव के बाद संसद को संबोधित करते हुए उन्होंने स्वतंत्रता और आजादी के मुश्किल समय का जिक्र किया था.
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