73 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग के क्या हैं मायने, कर्नाटक में बीजेपी सरकार आएगी या जाएगी?
कर्नाटक में पिछले 2 चुनावों में वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोतरी के बाद सरकार बदल गई. 2013 में राज्य में करीब 71% मतदान हुए. चुनाव परिणाम आया तो बीजेपी सत्ता से चली गई. 2018 में कांग्रेस के साथ भी यही हुआ.
कर्नाटक विधानसभा के 224 सीटों के लिए 2,615 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में बंद हो चुकी है. 10 मई को वोटिंग के दौरान मतदाताओं ने जमकर मतदान किया और 1957 के बाद के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. चुनाव आयोग के मुताबिक कर्नाटक में 73.19% मतदान हुआ है.
2018 के मुकाबले यह करीब एक फीसदी ज्यादा है. बेंगलुरु ग्रामीण में 85% और ओल्ड मैसूर में 84% वोटिंग हुई है. आयोग ने बताया कि मेलकोट विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा 91% मतदान हुआ है, जबकि बोमनहल्ली में सबसे कम 47.4% की वोटिंग हुई है.
कर्नाटक में बंपर वोटिंग और एग्जिट पोल के आंकड़ों ने राजनीतिक दलों की धड़कन बढ़ा दी है. चुनावी विश्लेषक अमिताभ तिवारी के मुताबिक मतदान प्रतिशत जब भी बढ़ता है तो इसका असर सत्ताधारी दल पर सबसे अधिक पड़ता है.
कर्नाटक में 73 प्रतिशत वोटिंग के क्या मायने हैं और इसका रिजल्ट पर क्या असर होगा, इसे विस्तार से जानते हैं...
बात पहले राजधानी बेंगलुरु से
बेंगलुरु ग्रामीण इलाके में सबसे अधिक 85 फीसदी मतदान हुआ है, जबकि शहरी इलाके में 54 फीसदी. बेंगलुरु जोन में विधानसभा की कुल 28 सीटें हैं. एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल में बेंगलुरु में कांग्रेस को बढ़त दिखाया गया है.
पोल में 28 में से 17 सीटों पर कांग्रेस और 10 सीटों पर बीजेपी को बढ़त दिखाया गया है. बेंगलुरु ग्रामीण जिले में विधानसभा की 8 सीटें हैं. यह जिला कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार का गढ़ माना जाता है.
बेंगलुरु के शहरी इलाका बीजेपी का गढ़ माना जाता है. ऐसे में यहां वोटिंग कम हुई है. एग्जिट पोल में भी शहरी इलाकों में बीजेपी को ही बढ़त दिखाई गई है.
हालांकि, शहरी बेंगलुरु में मतदान फीसदी में कमी पर विश्लेषकों ने चिंता जताई है. इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने कहा है कि यह काफी दुखद है.
मध्य कर्नाटक का क्या है हाल?
मध्य कर्नाटक बीएस येदियुरप्पा का दुर्ग माना जाता रहा है, लेकिन इस बार यहां बंपर वोटिंग ने बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है. डेटा के मुताबिक मध्य कर्नाटक में करीब 75 फीसदी मतदान हुआ है, जो कुल मतदान से 2 प्रतिशत अधिक है.
एग्जिट पोल में भी बंपर वोटिंग का असर देखने को मिल रहा है. मध्य कर्नाटक में विधानसभा की कुल 35 सीटें हैं. सी-वोटर के एग्जिट पोल के मुताबिक सेंट्रल कर्नाटक में कांग्रेस को 35 में से 18 से 22 सीटें मिल सकती हैं, जबकि बीजेपी को महज 12 से 16 सीटें मिल सकती हैं.
तीसरी बड़ी पार्टी जेडीएस को 0 से 2 और एक सीट अन्य को जाती हुई दिख रही है. 2018 में बीजेपी ने यहां की 24 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
सेंट्रल कर्नाटक में वोटिंग प्रतिशत की बात करें तो सी-वोटर के मुताबिक कांग्रेस को यहां 44 फीसदी, बीजेपी को 29 फीसदी और जेडीएस को 10 फीसदी वोट मिल सकता है.
तटीय कर्नाटक की स्थिति क्या है?
हिजाब और पीएफआई का विवाद कर्नाटक के तटीय इलाके से ही शुरू हुआ था. उडुपी तटीय कर्नाटक में ही आता है. कर्नाटक के तटीय इलाके में विधानसभा की कुल 21 सीटें हैं. मिश्रित आबादी वाला तटीय कर्नाटक बीजेपी का गढ़ रहा है.
तटीय कर्नाटक में इस बार 75 फीसदी वोटिंग हुई है. सी-वोटर के एग्जिट पोल के मुताबिक यहां की 21 सीटों में बीजेपी को 15 से 19 सीटें मिल सकती हैं तो कांग्रेस को सिर्फ 2 से 6 सीटों मिलने का अनुमान है.
2018 में भी बीजेपी ने 21 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस ने इस बार तटीय कर्नाटक को जीतने के लिए अलग से 10 सूत्रीय योजना की घोषणा की थी.
हालांकि, एसडीपीआई का चुनाव लड़ना यहां कांग्रेस के लिए शुरू से ही नुकसान माना जा रहा है. एसडीपीआई करीब 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
देवगौड़ा के गढ़ ओल्ड मैसूर का हाल
पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के गढ़ ओल्ड मैसूर में इस बार कांग्रेस और बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी थी. कांग्रेस की ओर से डीके शिवकुमार और बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमान संभाल रखी थी.
ओल्ड मैसूर में इस बार 84 फीसदी वोटिंग हुई है. यहां विधानसभा की कुल 55 सीटें हैं, जो अन्य जोन से काफी ज्यादा है. सी-वोटर के एग्जिट पोल में यहां बीजेपी की स्थिति दयनीय बताई गई है.
सर्वे के मुताबिक 55 सीटों में से सबसे ज्यादा 28 से 32 सीटें कांग्रेस को मिल सकती हैं. दूसरे नंबर पर जेडीएस को 19 से 23 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है. बीजेपी को शून्य से 4 सीटें मिलने की बात कही गई है.
ओल्ड मैसूर में वोटिंग और एग्जिट पोल सही साबित हुआ तो सबसे बड़ा झटका जेडीएस को लग सकता है.
हैदराबाद कर्नाटक में क्या हाल है?
हैदराबाद कर्नाटक में विधानसभा की कुल 31 सीटें हैं. यह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का गढ़ माना जाता है. सिद्धरमैया और खरगे ने यहां कांग्रेस के लिए मोर्चा संभाल रखा था.
हैदराबाद कर्नाटक में इस बार 65 फीसदी वोटिंग हुई है. वोटिंग का असर एग्जिट पोल के नतीजों पर भी दिख रहा है. सी-वोटर के मुताबिक हैदराबाद कर्नाटक में कांग्रेस को 13 से 17 सीटें, बीजेपी को 11 से 15 सीटें, जेडीएस को 0 से 2 सीटें और अन्य को 0 से 3 सीटें मिल सकती हैं.
एक्सिस माय इंडिया के सर्वे में हैदराबाद कर्नाटक इलाके में कांग्रेस की बड़ी बढ़त दिखाई गई है. एक्सिस माय इंडिया के मुताबिक यहां बीजेपी कांग्रेस के मुकाबले 25 फीसदी सीटें ही जीत पाएगी.
अब मुंबई कर्नाटक की बात
मुंबई कर्नाटक का इलाका हाल ही में सीमा विवाद की वजह से सुर्खियों में आया था. मुंबई-कर्नाटक इलाके में विधानसभा की करीब 50 सीटें हैं. यहां इस बार 75 फीसदी से अधिक मतदान हुआ है.
मुंबई-कर्नाटक के इलाके में बीजेपी ने प्रह्लाद जोशी और कांग्रेस ने सिद्धरमैया को मोर्चेबंदी पर लगाया था. 2018 के चुनाव में इस इलाके में बीजेपी को 30 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस 16 सीटों पर ही सिमट गई थी.
इस बार वोट प्रतिशत बढ़ने से कांग्रेस को बड़े उलटफेर की उम्मीद है. एग्जिट पोल भी इस उम्मीद को पुख्ता कर रहा है. सी वोटर के एग्जिट पोल में बीजेपी को 24 से 28 और कांग्रेस को 22 से 26 सीटें मिलने का अनुमान है. वहीं, जेडीएस और अन्य को एक-एक सीट मिल सकती है.
वोटिंग परसेंट बढ़ा तो सरकार बदली
कर्नाटक में पिछले 2 चुनाव में वोटिंग परसेंट में बढ़ोतरी के बाद सरकार बदल गई. 2013 में कर्नाटक में करीब 71 फीसदी मतदान हुए. चुनाव परिणाम आया तो बीजेपी सत्ता से चली गई. 2013 में कांग्रेस को 122, बीजेपी और जेडीएस को 40-40 सीटें मिली थी.
चुनाव बाद कांग्रेस ने सिद्धरमैया को मुख्यमंत्री बनाया. 2018 के चुनाव में भी वोटिंग परसेंट के बढ़ने से सरकार बदल गई. 2018 के विधानसभ चुनाव में करीब 72 फीसदी मत पड़े. इस चुनाव में कांग्रेस दूसरी बड़ी पार्टी बन गई.
एक प्रतिशत वोट बढ़ने का असर काफी ज्यादा हुआ. कांग्रेस 122 से 80 पर पहुंच गई, जबकि बीजेपी 40 से 104 पर. जेडीएस को 2013 के मुकाबले नुकसान हुआ और पार्टी 37 सीटें जीतने में कामयाब रही.
2018 के वोट फीसदी की बात की जाए तो कांग्रेस को सबसे अधिक 38 फीसदी वोट मिले, जबकि बीजेपी को 36 और जेडीएस को 18 प्रतिशत मत मिले.
वोट फीसदी बढ़ना कितना असरदार?
224 सदस्यों वाली विधानसभा चुनाव में करीब 100 सीटों पर कांग्रेस, बीजेपी और जेडीएस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होता है. ऐसे में जीत-हार का अंतर भी इन सीटों पर काफी कम रहता है. वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी का नुकसान वहां के सीटिंग पार्टियों को ही होगा.
चुनावी विश्लेषक अमिताभ तिवारी के मुताबिक चुनाव में कोई भी जीते या हारे, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोट प्रतिशत का मार्जिन 2-3 फीसदी ही रहता है. वोट प्रतिशत अगर बढ़ता है तो विपक्षी दल को इसका फायदा जरूर मिलेगा.
एग्जिट और सर्वे पोल में भ्रष्टाचार को सबसे बड़ा मुद्दा बताया गया है. ऐसे में वोट फीसदी में बढ़ोतरी का सीधा प्रभाव सत्ताधारी बीजेपी पर पड़ सकता है.
जीत पर सबके अपने-अपने दावे
बीएस बोम्मई, कर्नाटक के मुख्यमंत्री- एग्जिट पोल हमेशा सही नहीं साबित होता है. हमें 13 मई को सटीक परिणामों की प्रतीक्षा करनी चाहिए. पूरी ग्राउंड रिपोर्ट ने बीजेपी को स्पष्ट बहुमत दिया है. हम इस बार स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार में वापस आ रहे हैं.
मल्लिकार्जुन खरगे, कांग्रेस अध्यक्ष- पूर्ण बहुमत के साथ कांग्रेस की सरकार आ रही है. हमारी जानकारी के मुताबिक कर्नाटक में कांग्रेस को 130 से ज्यादा सीटें मिल रही है. सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को किसी भी अन्य दलों की जरूरत नहीं है.
एचडी कुमारस्वामी, पूर्व सीएम- मुझे अब भी 50 सीटें जीतने का भरोसा है. इस बार मैं उस पार्टी के साथ जाऊंगा जो मेरी शर्तों को पूरा करने में सक्षम होगी. चुनाव परिणाम आने के बाद जेडीएस आगे का फैसला करेगी.
पोल ऑफ एग्जिट पोल्स में क्या है?
कर्नाटक चुनाव के बाद करीब 10 एजेंसियों ने अपना एग्जिट पोल जारी किया है. इनमें सी-वोटर, एक्सिस माय इंडिया, टुडेज चाणक्या, जन की बात, पोलस्ट्रेट, सीजीएस और पी-मॉर्क्यूस शामिल हैं. कुल 9 में से 4 एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार और 1 एग्जिट पोल में बीजेपी की सरकार बनती हुई दिखाई दी है.
5 एग्जिट पोल में त्रिशंकु विधानसभा का अनुमान जताया गया है. पोल ऑफ एग्जिट पोल्स में कांग्रेस को 102, बीजेपी को 91 और जेडीएस को 23 सीटें मिलती दिख रही है. पोल ऑफ एग्जिट पोल्स में अन्य को 0-5 सीटें दी गई है.
पोल ऑफ एग्जिट पोल्स के मुताबिक 2018 की तरह ही किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाएगी. ऐसे स्थिति में एक बार फिर पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा और उनके बेटे कुमारस्वामी की भूमिका बड़ी हो सकती है.
2004 और 2018 में त्रिशंकु विधानसभा होने पर देवगौड़ा ने कर्नाटक की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. उनके बेटे कुमारस्वामी कम सीट होने के बावजूद दो बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.