रात को सोते वक्त आंखों के सामने ताज, ओबेराय, और नरीमन हाउस की तस्वीरें मंडराने लगतीं...फायरिंग की आवाज और लोगों की चीख-पुकार सुनाई देती. एक बार नींद खुल जाती तो फिर सोना दूभर हो जाता...


वो सभी रिपोर्टर जो इस दिल दहला देने वाली आतंकी घटना को कवर कर रहे थे वो सभी इसके मनोवैज्ञानिक असर से जूझ रहे थे. हर कोई छुट्टी पर जाना चाह रहा था लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं था क्योंकि इस हमले से जुड़ी खबरों का सैलाब आ रहा था.


26 नवंबर साल 2008 की रात से गोलियों की तड़तड़हाट दहल रही मुंबई में आज की यानी 29 नवंबर 2008 की सुबह थोड़ा सकून था. बीते 59 घंटों से जो हो रहा था उसमें आज शांति थी.


गेटवे ऑफ इंडिया पर लोग और सरकार के खिलाफ गुस्सा
हमला खत्म होने के एक हफ्ते के बाद गेटवे ऑफ इंडिया के सामने लाखों लोगों का एक मोर्चा निकाला गया. हाथों में तरह-तरह के बैनर लिए लोग पहुंच रहे थे. हाल के सालों में यह पहला मौका था जब इतनी बड़ी तादात में लोग बिना किसी नेता और किसी संगठन के बैनर तले इकट्ठा हुए थे.


हर शख्स के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था. ये गुस्सा आतंकवादियों से ज्यादा सरकार और राजनेताओं खिलाफ था जिनकी नीतियों को हमले का जिम्मेदार माना जा रहा था. आम लोगों के अलावा इस मार्च में कई फिल्मी हस्तियां भी इस मार्च में पहुंची थीं. लोग मेजर संदीप, एनएसजी कमांडो गजेंद्र सिंह अमर रहे...कामटे, करकरे और सालस्कर असली हीरो हैं... तुकाराम ओंबले अमर रहे जैसे नारे लगा रहे थे...शाम होते ही लोगों ने मोमबत्ती जलाकर श्रद्धांजलि देनी शुरू की.


मुख्यमंत्री पहुंचे ताज होटल और हो गया विवाद
तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ताज होटल में चल रहे ऑपरेशन के खत्म होने के बाद मुआयना करने पहुंचे लेकिन उनके साथ फिल्मकार रामगोपाल वर्मा भी थे. इतना ही नहीं सीएम के बेटे रितेश देशमुख भी साथ थे. इस पर विवाद हो गया. मीडिया ने सवाल उठाया कि क्या सीएम अगली फिल्म के आइडिया के लिए रामगोपाल वर्मा को साथ लाए हैं?  साथ ही रितेश देशमुख न किसी सरकारी पद हैं और न जांच में हैं तो क्या वहां पिकनिक मनाने गए हैं?


इतना ही नहीं सीएम देशमुख जब ताज होटल पहुंचे तो निजी न्यूज चैनलों को कवरेज से मना कर दिया. महाराष्ट्र सरकार की ओर से कैमरे का इस्तेमाल किया गया और बाद में सीडी पत्रकारों को बांटी गई. इस फैसले से सीएम देशमुख विलेन बन गए और वो दिन तक सफाई देते रहे.


इसके बाद उपमुख्यमंत्री आरआर पाटिल ने भी जले पर नमक छिड़क दिया. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने बोल दिया, 'ऐसे बड़े-बड़े शहरों में छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं'. दरअसल पाटिल ये बताना चाह रहे थे कि आरडीएक्स से भरे जो दो बम पुलिस से बरामद किए हैं वो अगर फट जाते तो कई गुना ज्यादा तबाही होती. इसी बात को समझाने में वो चूक गए. 


इसके बाद केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल भी मीडिया के निशाने में आ गए. पाटिल हमले के दौरान हुई हर प्रेस कॉन्फ्रेस में नए कपड़े पहनकर आ रहे थे. उनकी इस बात की खिंचाई हुई कि एक ओर बेगुनाह मारे जा रहे थे तो दूसरी ओर गृहमंत्री संजने-संवरने में ध्यान दे रहे थे.


मीडिया के दबाव के चलते बिलासराव देशमुख से सीएम की कुर्सी छीन ली गई. उपमुख्यमंत्री आर आर पाटिल को भी हटा दिया गया और दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल से भी जिम्मेदारी ले ली गई.


मुंबई पुलिस कमिश्नर हसन गफूर भी हटा दिए गए. हमले की जांच के लिए बनाई गई समिति में उनके खिलाफ सख्त टिप्पणी की गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक हसन गफूर को जिस तरह से कदम उठाने चाहिए थे उन्होंने नहीं किया.


आने लगीं थीं हमले की सीसीटीवी 
मुंबई हमले से जुड़ी घटनाएं जो सीसीटीवी में कैद हुई थीं वो सामने आने लगी थीं. मुंबई महानगरपालिका और सीएसटी स्टेशन पर लगे सीसीटीवी के कैमरों में अजमल कसाब और इस्माइल नाम का आतंकी फायरिंग करते साफ दिख रहा था.


इसी तरह ताज होटल और ओबेराय-ट्राइडेंट की सीसीटीवी में तस्वीरें भी आ गईं. लेकिन ताज की तस्वीरों पर विवाद हो गया था. मुंबई पुलिस के जोन1  के डीसीपी विश्वास नागरे-पाटिने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मीडिया में एक सीडी बांटी थी. लेकिन क्राइम ब्रांच इससे नाराज हो गया. विभाग की ओर से सीक्रेट लीक होने का केस दर्ज करा दिया गया. 


सवाल उठा कि यह सीडी तो पुलिस की ओर से ही बांटी गई है. लेकिन सूत्रों से पता चला कि डीसीपी नागरे-पाटिल ने जो सीडी बांटी थी उसमें वो पिस्तौल लिए ताज होटल में आतंकियों को ढूंढते नजर आ रहे थे और उसमें हथियार लिए आतंकी भी नजर आ रहे थे. ऐसा लग रहा था कि नागरे-पाटिल ही अकेले आतंकियों से लड़ रहे हैं. ये मामला विवाद बनकर मीडिया में खूब उछला.


जब आई अजमल कसाब की सीसीटीवी
गिरफ्तारी के तुरंत बाद आतंकी अजमल कसाब को अस्पताल ले जाया गया था. जहां उससे पूछताछ की जा रही थी. एसीपी तानाजी घाडगे की ओर से पूछे जा रहे थे तमाम सवालों के जवाब रोते और कराहते हुए तोते की तरह जवाब दे रहा था. कहां से आया, किसने ट्रेनिंग दी, किसे मारने आया था, कैसे आया..ऐसे तमाम सवालों के उसने जवाब दिए.


मुंबई में तैनात किए कमांडो दस्ते
इस बड़े आतंकी हमले के बाद मुंबई में सुरक्षा को लेकर कई इंतजाम किए गए. आतंकी हमलों से निपटने के लिए तीन अलग-अलग संगठन तैनात किए गए. पहला संगठन मुंबई पुलिस के अंतर्गत है जिसका नाम दिया गया है क्विक रिस्पांस टीम (QRT). इसके  अत्याधुनिक हथियारों से लैस दस्ते मुंबई पुलिस के सभी क्षेत्रीय एडिशनल कमिश्नरों को रिपोर्ट करते हैं. 


आतंकी हमले की सूरत में सबसे पहले यही दस्ता रवाना होगा. दूसरा संगठन है महाराष्ट्र पुलिस फोर्स वन. अगर क्यूआरटी आतंकियों से निपटने में नाकाम साबित होता है तो इसके जवान भेजे जाए जाएंगे. अगर ये भी नाकाम रहा तो ऑपरेशन एनएसजी कमांडो की टीम को सौंप दिया जाएगा.


क्यूआरटी और फोर्स वन में चुने हुए कमांडों को लिया गया है. इनको ऐसी राइफलें दी गई हैं जिनकी रेज 6 किलोमीटर तक है. साथ ही बुलेट प्रूफ कंबैट वाहन भी दिए गए हैं.