Case Pending Indian Court: भारतीय संसद का जब भी कोई सत्र शुरू होता है, तो हमेशा एक सवाल किसी न किसी सदन में अवश्य पूछा जाता है. वह यह कि भारतीय अदालतों में कितने केस पेडिंग पड़े हुए हैं. यह सवाल कभी अपर हाउस यानी राज्य सभा तो कभी लोअर हाउस लोकसभा में उठता जरूर है. इस बार यह सवाल राज्य सभा में उठा. जिसका जवाब सरकार के कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने दिया. उन्होंने अपने लिखित जवाब के दौरान सदन में जो आंकड़े पेश किए हैं उऩकी संख्या चौंकाने वाली है.
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुम राम मेघवाल ने एक प्रश्न का 24 जुलाई को लिखित उत्तर देते हुए संसद के मानसून सत्र के दौरान राज्य सभा में जो जानकारी दी है उसके मुताबिक, देश के कुल 25 हाईकोर्ट में पिछले 30 सालों से 71,240 केस पेडिंग चल रहे हैं. इसके अलावा जिले और उससे संबंधित अन्य अदालतों में पेडिंग केसों की संख्या और भी बड़ी है. इन अदालतों में 1,01, 837 कुल केस पेडिंग चल रहे हैं.
अदालतों में कुल केस
इतना ही नहीं कानून मंत्री ने अपर हाउस में जो जानकारी दी थी वह और भी चौंकाने वाली है. बकौल अर्जुन राम मेघवाल वर्तमान समय मे भारत की सुप्रीम कोर्ट, 25 हाईकोर्ट और देश की सभी निचली अदालतों को शामिल कर लिया जाए तो कुल केसों की संख्या 5 करोड़ के पार चली गई है. अभी तक यह संख्या 5.02 करोड़ हो गई है.
अकेले सुप्रीम कोर्ट में हैं इतने केस
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने आगे बताया कि इस समय सुप्रीम कोर्ट के इंटीग्रेटेड केस मैनेजमेंट सिस्टम (ICMIS) में दर्ज आंकड़ों के अनुसार अकेले देश की सर्वोच्च अदालत में 1 जुलाई तक कुल 69,766 केस पड़े हुए हैं.
क्या कहता है NJDG का डाटा?
कानून मंत्री ने नेशनल जुडिशियल डाटा ग्रिड (NJDG) का हवाला देते हुए बताया कि 14 जुलाई तक जो आंकड़ा फीड है, उसके अनुसार देश की सभी हाईकोर्ट और डिस्ट्रिक तथा अन्य निचली अदालतों में क्रमशः 60,62,953 और 4,41,35,357 केस पेडिंग पड़े हुए हैं.
इस वजह से बढ़ी केस की संख्या
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने शुक्रवार 28 जुलाई को सदन में बताया कि पेडिंग केसों की संख्या बढ़ने का कारण सिर्फ जजों के रिक्त स्थान होना नहीं है. इसके अलावा भी अन्य कई कारण हैं. जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर में सपोर्टिंग कोर्ट स्टॉफ, केस की जटिलता, मुकदमों के साक्ष्य, बार का सहयोग, जांच एजेंसियां और केस के गवाह आदि भी कारण हैं.
ये भी पढ़ेंः Tis Hazari Court Firing: अदालतों में शूटआउट... सुरक्षा पर कब तक डाउट ?