कायदा कानून: Section 498 A- आईपीसी की इस धारा के बारे में पूरी जानकारी, जानिए क्या है Section 498 A?
Indian Law legal knowledge of IPC Section 498-A: स्त्रियों का उत्पीड़न (Women Harassment) रोकने और उन्हें उनके हक दिलाने के लिए हमारे देश में कई कानून पारित हुए हैं. ऐसा ही एक कानून है धारा 498 A.
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know Everything About IPC Section 498 A: स्त्रियों का उत्पीड़न (Women Harassment) रोकने और उन्हें उनके हक दिलाने के लिए हमारे देश में कई कानून (Law) पारित हुए हैं. ऐसा ही एक कानून है धारा 498 A. आइए जानते हैं कि धारा 498 A क्या है और इसका उपयोग कैसे कर सकते हैं.
बता दें कि यह कानून 1983 में पास हुआ था. वह एक ऐसा दौर था जब महिलाओं के खिलाफ हिंसा (Domestic Violence) और उन्हें दहेज (Dowry) के लिए प्रताड़ित करने के केस लगातार बढ़ रहे थे. ऐसे में महिला आंदोलन के बाद भारतीय दंड संहिता (IPC) में यह कानून वजूद में आया, जिसके तहत महिलाओं को यह शक्ति प्रदान की गई कि वह दहेज (Dowry) की मांग के लिए अपने पति और उनके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता करने पर इस कानून (Law) के तहत अपना बचाव कर सकती हैं.
क्या है धारा 498 A?
देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कारणों से मौत का शिकार होती है और वर्ष 2007 से 2011 के बीच इस प्रकार के मामलों में काफी वृद्धि देखी गई थी. महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा, विशेष रूप से युवा, नव विवाहित दुल्हन जलने की बढ़ती घटनाएं हर किसी के लिए चिंता का विषय बन गईं. यह महसूस किया गया कि आई. पी. सी. के सामान्य प्रावधान महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं थे. इसलिए आईपीसी में धारा 498 A को शामिल किया गया. ऐसे में दहेज के लिए प्रताड़ित बेटियों के लिए यह कानून सुरक्षा कवच के तरह माना गया. लेकिन धीरे-धीरे लोग इसका उपयोग बढ़ा. साथ-साथ यह भी देखा गया कि लोगों ने इस कानून का दुरुपयोग करना भी शुरू कर दिया . यह वर पक्ष के लोगों को डराने के लिए शस्त्र के रूप में काम करने लगा. ऐसे में इस कानून में समय पर बदलाव किया गया.
वरिष्ठ वकील आदित्य काला के अनुसार दहेज प्रताड़ना से बचने के लिए आईपीसी की धारा 498 A का प्रावधान किया गया. धारा 498 A के अनुसार, यदि विवाहित महिला अपने पति या उनके रिश्तेदारों पर क्रूरता या किसी मानसिक, शारीरिक या फिर अन्य तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो उस महिला की शिकायत पर इस धारा के तहत केस दर्ज किया जाता है.
*इसे गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है.
*अपराधों को संज्ञेय और गैर-संज्ञेय में विभाजित किया जाता है. कानून द्वारा पुलिस एक संज्ञेय अपराध को पंजीकृत करने और उसकी जांच करने के लिए कर्तव्यबद्ध है.
*गैर-जमानती: इसका मतलब है कि धारा 498 A के तहत दायर एक शिकायत में मजिस्ट्रेट को जमानत देने से इंकार करने और किसी व्यक्ति को न्यायिक या पुलिस हिरासत में भेजने की शक्ति है.
क्या है सज़ा का प्रावधान
धारा 498 A के तहत अपराध को गंभीर माना गया है. इसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल की सजा तक का प्रावधान है. वहीं अगर शादीशुदा महिला की मौत शादी के 7 साल के दौरान हो जाती है और जब तक यह साबित न हो जाए कि मौत किस वजह से हुई है तो यह मानकर चला जाता है कि लड़की की मौत संदिग्ध हालत में हुई है. यह मामला पुलिस आईपीसी की धारा 498 A /302/304 बी के तहत केस दर्ज करती है. और एक सवाल यह भी उठता है कि महिला की मौत अगर शादी के सात साल के अंदर हुई है तो अदालत यह मान लेगी कि मौत दहेज हत्या के कारण हुई है. ऐसे में ये धाराएं लगाई जाएंगी.
कानून का दुरुपयोग
आदित्य काला बताते हैं कि इस कानून का दुरुपयोग भी होने लगा है. ऐसे में 2014 में सुप्रीम कोर्ट में अर्नेश कुमार बनाम बिहार सरकार मामले में 498 A पर सुनवाई करते हुए इसके 'दुरुपयोग' पर चिंता जाहिर करते हुए एक अहम फैसला दिया था. तब अदालत ने कहा था कि धारा 498 A का महिलाएं दुरुपयोग कर रही हैं. वे इसका गलत तरीके से इस्तेमाल करती हैं. नतीजतन झूठे केस दर्ज किए जाते हैं. इस कानून को थोड़ा विस्तार में बताते हुए कहा गया कि अगर कोई महिला पुलिस या मजिस्ट्रेट के पास धारा 498 A के तहत शिकायत करती तो उसकी शिकायत परिवार कल्याण समिति के पास भेज दी जाती है उसके बाद प्रताड़ित महिला की शिकायत की पड़ताल का सबसे पहले इसी समिति को करनी होती है . पहले पुलिस परिवार वालों को शिकायत पर गिरफ्तार कर लेती थी लेकिन अब कहा गया कि जब तक पड़ताल ने हो जाए और ससुराल वाले दोषी न हो तब तक पुलिस किसी की गिरफ्तारी नहीं कर सकती थी.
राहत का दायरा
2015 की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले सालों के बकाया मामलों को मिलाकर पुलिस ने 498 A के तहत एक लाख 12 हजार 107 मामलों की पड़ताल की और 7458 मामलों में केस झूठ पाया. यानी पुलिस ने 2015 में जितने मामले जांच किए उनमें से सिर्फ 6.65 झूठ पाए गए. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि महिलाओं के लिए ये कानून कितना मददगार साबित हो रहा है. ये धाराएं सात साल से कम सजा की हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी पक्ष की सीधे गिरफ्तार रोक लगाई है वे दोनों पक्षों पर पहले सुलह समझौते के तहत मामला सुलझाने का अवसर दिया है.
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