क्या केजरीवाल की चिट्ठी बदलेगी 200 लोकसभा सीटों का गणित, जानिए बीजेपी या कांग्रेस किसको लग सकता है पलीता?
18 मार्च को भले अरविंद केजरीवाल के भोज में मुख्यमंत्रियों का मजमा नहीं लग पाया, लेकिन सियासी गलियारों में चर्चा है कि आने वाले वक्त में कई दल एकजुट होकर नए मोर्चे में शामिल हो सकते हैं.
देश में विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर सेंट्रल एजेंसी सीबीआई और ईडी की कार्रवाई के बीच अरविंद केजरीवाल की एक चिट्ठी सुर्खियों में है. केजरीवाल ने देश के 7 मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर भोजन पर आमंत्रित किया था. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक 18 मार्च को प्रस्तावित इस भोज में एक भी मुख्यमंत्री शामिल नहीं हुए.
अरविंद केजरीवाल ने भोज के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन को आमंत्रित किया था.
भोज पॉलिटिक्स के जरिए विपक्षी नेताओं को जुटाने की कोशिश नई नहीं है. हालांकि, अरविंद केजरीवाल की कोशिश अगर कामयाब रहती है, तो इसका नुकसान 2024 में बीजेपी को हो सकता है. केजरीवाल जिन 7 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को साधने की कोशिश कर रहे हैं, वहां बीजेपी के पास लोकसभा की करीब 50 सीटें हैं.
भोज में शामिल नहीं हुए, लेकिन आगे की राह खुला है
18 मार्च को भले ही अरविंद केजरीवाल के भोज में मुख्यमंत्रियों का मजमा नहीं लग पाया, लेकिन सियासी गलियारों में चर्चा है कि आने वाले वक्त में सभी एकजुट हो सकते हैं. नीतीश कुमार, हेमंत सोरेन और एमके स्टालिन कांग्रेस के फैसले का इंतजार कर रहे हैं. दोनों नेताओं का मानना है कि कांग्रेस के नेतृत्व में ही बीजेपी को हराया जा सकता है.
ममता बनर्जी ने हाल ही में 'एकला चलो' के रास्ते पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. ममता आने वाले दिनों में नवीन पटनायक को साधने के लिए ओडिशा का दौरा करेंगी. पटनायक और ममता में अगर बात बन जाती है तो दिल्ली में तीसरे मोर्चे का शक्ति प्रदर्शन हो सकता है.
केजरीवाल की रणनीति भी ममता के समानांतर ही है. नीतीश कुमार भी इसे कामयाब करने के लिए दिल्ली का दौरा कर चुके हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि अगर विपक्षी पार्टियों के 7 मुख्यमंत्रियों का मिलन होता है, तो लोकसभा की कितनी सीटों पर इसका असर होगा?
1. नीतीश कुमार- 18 सालों से बिहार की सत्ता पर काबिज जेडीयू के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ताकत वहां की 40 लोकसभा सीटें है. जेडीयू झारखंड और यूपी की लोकसभा सीटों पर लड़ने की तैयारी में है.
2019 में जेडीयू बीजेपी के साथ मिलकर बिहार की 17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से 16 पर उसे जीत मिली. बिहार में पिछले 3 चुनाव के औसत देखा जाए तो नीतीश कुमार की पार्टी के पास करीब 20 फीसदी का वोट प्रतिशत है.
जुलाई 2022 में नीतीश कुमार ने केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था. हाल ही में पटना की एक रैली में नीतीश कुमार ने कहा था कि अगर कांग्रेस गठबंधन बनाने में कामयाब हो जाती है तो बीजेपी 100 के अंदर सिमट जाएगी.
नीतीश कुमार को केंद्र और बिहार दोनों जगहों पर पॉलिटिक्स का लंबा अनुभव भी है. ऐसे में बिहार से नीतीश कुमार केजरीवाल के साथ गठबंधन में आते हैं तो 40 सीटों पर बीजेपी और नए मोर्चे में सीधी लड़ाई हो सकती है. हालांकि, नीतीश कांग्रेस के साथ सभी को मिलकर लड़ने की बात कह चुके हैं.
2. नवीन पटनायक- 23 साल से ओडिशा की सत्ता पर काबिज नवीन पटनायक बेदाग छवि के नेता माने जाते हैं. पटनायक सीएम बनने के बाद से ही बीजेपी और कांग्रेस से दूरी बना कर चलते हैं. ओडिशा में लोकसभा के साथ ही विधानसभा का भी चुनाव होना है.
राज्य में लोकसभा की कुल 21 सीटें हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी ने पटनायक को झटका देते हुए यहां की 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी. पटनायक की पार्टी को सिर्फ 12 सीटें ही मिली थी. बीजेपी इस बार भी ओडिशा का मजबूत किला भेदने की तैयारी में है.
नवीन पटनायक अगर केजरीवाल के साथ आते हैं, तो ओडिशा की 21 सीटों पर बीजेपी और नया मोर्चा के बीच सीधी टक्कर हो सकती है. यहां पर अगर विपक्ष मोर्चाबंदी करती है तो बीजेपी को सीटों में नुकसान संभव है.
3. पी विजयन- केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन पिछले महीने तेलंगाना में विपक्षी नेताओं के जुटान में हिस्सा लिया था. हालांकि, विजयन केजरीवाल के 18 मार्च वाले आमंत्रित भोज में नहीं आए.
विजयन केरल में दूसरी बार लेफ्ट पार्टी से मुख्यमंत्री हैं. सीपीएम के पास अब केरल ही एकमात्र राज्य बचा है, जहां पर सरकार है. विजयन के नया मोर्चा में शामिल होने की उम्मीद कम ही है. इसके पीछे वजह सीपीएम का पोलित ब्यूरो है.
2019 में सीपीएम ने तीसरे मोर्चे के अस्तित्व को सीधे नकार दिया था. सीपीएम ने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ने की बात कही थी. केरल में सीपीएम अकेले चुनाव मैदान में उतरी थी, जहां उसे सफलता नहीं मिली.
4. के चंद्रशेखर राव- तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव पिछले एक साल से नया मोर्चा बनाने की कवायद में लगे हैं. हालांकि, नीतीश कुमार से लेकर उद्धव ठाकरे तक उन्हें झटका दे चुके हैं.
अरविंद केजरीवाल के घर भोज पर केसीआर भी आमंत्रित थे, लेकिन वे नहीं पहुंचे. तेलंगाना में अगले साल के शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में केसीआर की कोशिश गठबंधन में कांग्रेस को भी शामिल करने की है.
लेकिन कांग्रेस वहां अकेले चुनाव लड़ने की बात कह चुकी है. ऐसे में केसीआर भी नया मोर्चा बनाने में ज्यादा इच्छुक नहीं है. तेलंगाना का फैसला 2024 के शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद ही होगा. अगर केसीआर सत्ता बचाने में कामयाब हो जाते हैं तो लोकसभा में बीजेपी को झटका लग सकता है.
5. ममता बनर्जी- राहुल गांधी की टिप्पणी से क्षुब्ध होकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. बंगाल में टीएमसी और बीजेपी के बाद कांग्रेस तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है.
ममता बनर्जी के ऐलान के बाद टीएमसी ने कहा है कि देश में बीजेपी से लड़ने के लिए नया मोर्चा बनाया जाएगा. टीएमसी के ऐलान के बावजूद अरविंद केजरीवाल के भोज में ममता के शामिल नहीं होने को लेकर सवाल उठ रहा है.
पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं और ममता को 2019 में 22 सीटों पर जीत मिली थी. 18 सीट जीतकर बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी वहां कमजोर हुई है.
6. एमके स्टालिन- तमिलनाडु में सहयोगी एआईएडीएमके के सहारे बीजेपी जनाधार बढ़ाने में जुटी है. 2019 चुनाव में तमिलनाडु के कन्याकुमारी सीट भी बीजेपी हार गई. स्टालिन के नेतृत्व में यूपीए ने वहां एकतरफा जीत दर्ज की.
अरविंद केजरीवाल ने स्टालिन को भी न्योता भेजा था, लेकिन वे भोज में शरीक नहीं हुए. स्टालिन की पार्टी अभी तमिलनाडु में सत्ता में है. 2019 में स्टालिन ने ही तीसरे मोर्चे की कवायद पर पानी फेर दिया था.
उस वक्त केसीआर उन्हें मोर्चा में शामिल होने के लिए आमंत्रण देने चेन्नई गए थे. उलट स्टालिन ने केसीआर यूपीए में शामिल होने के लिए कह दिया. हालांकि, पिछले कुछ दिनों से स्टालिन भी कांग्रेस से नाराज बताए जा रहे हैं.
हाल ही में स्टालिन ने एक मंच पर इंदिरा गांधी के आपातकाल का जिक्र कर दिया था. उन्होंने कहा कि मेरे पिता ने आपातकाल के विरोध में सरकार की कुर्बानी दे दी थी.
7. हेमंत सोरेन- झारखंड में कांग्रेस के समर्थन से हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने हुए हैं. ऐसे में सोरेन का अरविंद केजरीवाल के न्यौता में शामिल नहीं होना सियासी गलियारों में ज्यादा चर्चा का विषय नहीं बना. झारखंड में लोकसभा की कुल 14 सीटें हैं.
2022 के अंत में हेमंत सोरेन पर सियासी खतरा आया था, उस वक्त कांग्रेस उनके सहयोग में डटी रही. सरकार बचाने के लिए दिल्ली से कांग्रेस ने नेताओं को झारखंड भेजा था. ऐसे में माना जा रहा है कि 2024 में सोरेन कांग्रेस के साथ ही मिलकर चुनाव लड़ेंगे.
2019 में हेमंत सोरेन और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ी थी, लेकिन सिर्फ 2 सीटों पर ही गठबंधन को जीत मिल पाई. जेएमएम और कांग्रेस इस बार 10 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है. अगर गठबंधन यहां कामयाब हो जाती है तो बीजेपी को 8 सीटों का नुकसान संभव है.
एकजुट होने की अटकलें मजबूत क्यों?
1. अरविंद केजरीवाल ने जिन 7 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भोज का आमंत्रण भेजा, उनमें से 5 मुख्यमंत्रियों की पार्टी के नेता सेंट्रल एजेंसी की रडार पर है. इनमें ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव, पी विजयन, हेमंत सोरेन और एमके स्टालिन का नाम प्रमुख हैं.
2. जिन मुख्यमंत्रियों को आमंत्रण भेजा गया है, उनकी पार्टी अपने ही राज्य तक सीमित है. ऐसे में सीट बंटवारे का झंझट नहीं होगा. सियासी गलियारों में एकजुट होने के कयास इसलिए मजबूत हैं.
3. सातों मुख्यमंत्रियों का जनाधार और जनसंपर्क बेहतरीन है. बिहार, बंगाल, झारखंड और तेलंगाना में बीजेपी को पटखनी दी गई है. अगर ये मिलते हैं तो ये मैसेज जाएगा कि बीजेपी को 2024 में भी हराया जा सकता है.
4. केरल और तेलंगाना में कांग्रेस ने गठबंधन करने से इनकार कर दिया है. ऐसे में इन राज्यों के मुख्यमंत्री नया मोर्चे में शामिल हो सकते हैं.