बीजेपी के खिलाफ संयुक्त विपक्ष मोर्चा बना तो किस पार्टी को कैसे मिलेगी सीट, जानिए क्या हो सकता है फॉर्मूला
नीतीश और खरगे के बीच मुलाकात के बाद सियासी गलियारों में तीन सवाल पूछे जा रहे हैं. 1. गठबंधन का आधिकारिक ऐलान कब होगा? 2. गठबंधन का स्ट्रक्चर क्या होगा 3. सीटों का बंटवारा किस फॉर्मूले के तहत तय होगा?

40 दिन के भीतर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मिले. मुद्दा था 2024 में मोदी सरकार के खिलाफ बनने वाले मोर्चे का स्ट्रक्चर यानी स्वरूप. खरगे और राहुल के साथ नीतीश कुमार ने करीब 1 घंटे से अधिक समय तक इस पर बात की.
तीनों नेताओं की मीटिंग के बाद जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि मोर्चे में कौन-कौन शामिल होंगे और इसकी बैठक कब होगाी, यह एक-दो दिन में सबको बता दिया जाएगा. मोदी विरोधी मोर्चा बनाने के लिए नीतीश कुमार पिछले 10 महीने से पूरे देश में सक्रिय हैं और कई बड़े नेताओं से मिल चुके हैं.
नीतीश और खरगे के बीच मुलाकात के बाद सियासी गलियारों में तीन सवाल सबसे अधिक पूछे जा रहे हैं. 1. गठबंधन का आधिकारिक ऐलान कब होगा? 2. गठबंधन का स्ट्रक्चर क्या होगा 3. गठबंधन में सीटों का बंटवारा किस फॉर्मूले के तहत तय होगा
इस स्टोरी में इन्हीं तीनों सवाल और उसके जवाब के बारे में विस्तार से जानते हैं...
गठबंधन की आधिकारिक घोषणा कब होगी?
तारीख अभी तय नहीं है, लेकिन सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि जून के दूसरे हफ्ते में पटना में बड़ी बैठक हो सकती है. दरअसल, पहले मीटिंग मई के आखिरी हफ्ते में होने की बात कही जा रही थी, लेकिन राहुल गांधी के अमेरिकी दौरे पर जाने की वजह से इसे आगे बढ़ा दिया गया है.
राहुल गांधी 31 मई से एक हफ्ते के लिए अमेरिका जा रहे हैं. यहां पर राहुल 4 जून को न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करेंगे. इसके अलावा राहुल कैलिफोर्निया की एक यूनिवर्सिटी के इवेंट में भी शामिल होंगे.
बिहार ही मोर्चे का धुरी क्यों बन रहा है?
इसकी 2 मुख्य वजहें मानी जा रही है. पहला, पिछले 9 सालों में दिल्ली में गठबंधन की जितनी भी कवायद हुई है, सब फ्लॉप साबित हुईं. सोनिया गांधी के आवास पर कई बार विपक्षी नेता मोदी सरकार के खिलाफ जुटे, लेकिन सभी बैठकें सिर्फ फोटोशूट बन कर रह गईं.
इसके उलट बिहार में विपक्षी गठबंधन बनाने के अब तक 2 कोशिशें हुईं जो सफल रहीं. साल 2015 में नीतीश कुमार ने बिहार में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस को मिलाकर महागठबंधन तैयार किया था. साल 2022 में भी बीजेपी के खिलाफ नीतीश कुमार 7 पार्टियों के साथ गठबंधन बनाने में कामयाब हुए.
दूसरा, तृणमूल और सपा जैसी पार्टियां कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन में नहीं रहना चाहती हैं. इन दोनों पार्टियों ने नीतीश कुमार से पटना में मीटिंग रखने के लिए कहा था. तृणमूल का कहना था कि कांग्रेस हाईकमान क्षेत्रीय पार्टियों को गंभीरता से नहीं लेती है, इसलिए मीटिंग की अध्यक्षता नीतीश कुमार करें.
अतीत में भी विपक्षी एका का सेंटर बिहाररहा है. इंदिरा गांधी के समय जयप्रकाश नारायण ने बिहार में 1977 में एक सफल गठबंधन बनाया था.
विपक्षी गठबंधन में नीतीश का रोल क्या होगा?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि संभावित मोर्च में नीतीश कुमार का रोल क्या होगा? इसका जवाब भी हालिया गतिविधि और बयानों में छिपा है. नीतीश कुमार अब तक कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना (यूटी), जेएमम, तृणमूल, सपा, एआईयूडीएफ, आप, इनेलो और सीपीएम के प्रमुखों से मिल चुके है.
नीतीश सभी नेताओं को गठबंधन की रूपरेखा के बारे में बताकर उनसे इस पर सहमति लेते दिखे. नेताओं से मुलाकात के बाद उनके साथ नीतीश कुमार प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करते नजर आए. यानी संभावित गठबंधन में ये नेता शामिल होते हैं, तो नीतीश की बड़ी भूमिका मानी जाएगी.
ऐसे में नीतीश कुमार को आगे की रणनीति तैयार करने के लिए संयोजक का पद मिल सकता है. 1998 में एनडीए बनने के वक्त जेडीयू के जॉर्ज फर्नांडिज को संयोजक बनाया गया था. अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार संभावित गठबंधन में एक चेयरपर्सन, एक संयोजक और कुछ पदाधिकारी बनाए जाएंगे.
अखबार के मुताबिक संयोजक का पद सबसे प्रभावशाली और फैसला लेने वाला होगा. पदाधिकारियों की सूची में सभी पार्टियों के प्रतिनिधि को शामिल किया जाएगा. चेयरपर्सन का पद सोनिया गांधी, शरद पवार या मल्लिकार्जुन खरगे को दिया जा सकता है.
विपक्षी गठबंधन में कौन-कौन दल शामिल होगा?
इसको लेकर दो तरह के फॉर्मूले पर काम किया जा रहा है. पहला, चुनाव ले पहले गठबंधन,और दूसरा, चुनाव के बाद गठबंधन यानी कुछ दलों को चुनाव से पहले जोड़ा जाएगा और कुछ दलों को चुनाव के बाद.
चुनाव पूर्व गठबंधन- इसमें कांग्रेस, जेडीयू, आरजेडी, डीएमके, शिवसेना (यूटी), एनसीपी, लेफ्ट मोर्चा, जेएमम, इनेलो, तृणमूल, एआईयूडीएफ, सपा, आरएलडी और आप को शामिल करने की कवायद चल रही है. कुछ पार्टियों को लेकर सहमति बन गई है, जबकि कुछ पार्टियों पर अब भी पेंच फंसा है. पेंच सुलझने के बाद गठबंधन में शामिल होने वाले इन दलों को न्योता भेजा जाएगा.
चुनाव बाद गठबंधन- इस लिस्ट में बीएसपी, बीआरएस, बीजेडी, वाईआरएस कांग्रेस और जेडीएस का नाम है. इन दलों से चुनाव बाद बाहर से समर्थन लेने की रणनीति बन रही है. नीतीश कुमार बीजेडी, जेडीएस और बीआरएस के नेताओं से मिल भी चुके हैं.
गठबंधन में टिकट बंटवारे का फॉर्मूला क्या होगा?
गठबंधन में शामिल होने वाली पार्टियों और उनके समर्थकों के मन में भी यही सवाल है कि टिकट बंटवारे का फॉर्मूला क्या होगा? तृणमूल-सपा और आरजेडी जैसी पार्टियां कांग्रेस से राज्यों में ड्राइविंग सीट देने की मांग कर चुकी है.
यानी जिस राज्य में क्षेत्रीय दल मजबूत है, वहां कांग्रेस को समझौता करना पड़ेगा. इनमें बिहार, यूपी, बंगाल, झारखंड और महाराष्ट्र प्रमुख हैं. इन राज्यों में कांग्रेस छोटे भाई की भूमिका में रह सकती है. यहां सीट बंटवारे में क्षेत्रीय दलों का दबदबा रहेगा. वहीं असम, हरियाणा में कांग्रेस की चल सकती है.
कांग्रेस कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात जैसे राज्यों में अकेले दम पर लड़ने की तैयारी में है. तमिलनाडु में डीएमके के साथ पुराना फॉर्मूला ही लागू हो सकता है. आप के गठबंधन में आने पर पंजाब-दिल्ली में 50-50 फॉर्मूले के तहत सीट बंटवारा हो सकता है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक गठबंधन में टॉप बॉडी ही टिकट बंटवारे का फॉर्मूला फाइनल करेगा. जिताऊ उम्मीदवार वाली पार्टियों को ज्यादा तरजीह दी जा सकती है.
प्रधानमंत्री का उम्मीदवार भी घोषित होगा?
इसकी संभावनाएं कम ही है. खुद मल्लिकार्जुन खरगे और नीतीश कुमार गठबंधन में चेहरा को लेकर बयान दे चुके हैं. दोनों नेता चुनाव बाद फेस तय करने के पक्ष में हैं. नीतीश कुमार खुद को पीएम की रेस से बाहर कर चुके हैं. हाल में शरद पवार भी अपनी दावेदारी को खारिज कर चुके हैं.
विपक्ष सामूहिक नेतृत्व को आधार बनाकर 2024 का चुनाव लड़ने की तैयारी में है.
बीजेपी को 100 सीटों पर समेटने की 'नीतीश' नीति
फरवरी 2023 में माले के एक कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने दावा किया था कि अगर सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट हो जाती है, तो बीजेपी लोकसभा में 100 सीटों पर सिमट जाएगी. नीतीश के इस दावे पर खूब बवाल भी मचा, लेकिन नीतीश का यह दावा समीकरण के हिसाब से काफी मजबूत भी है. आइए समीकरण समझते हैं...
1. लोकसभा की 450 सीटों पर बीजेपी VS एकजुट विपक्ष
लोकसभा की 450 सीटों पर बीजेपी को सीधे टक्कर देने की तैयारी है. इनमें महाराष्ट्र की 48, पश्चिम बंगाल 42, बिहार की 40, तमिलनाडु की 39, कर्नाटक की 28, राजस्थान की 25, गुजरात की 26 सीट भी शामिल हैं.
नीतीश कुमार जिन पार्टियों को गठबंधन में शामिल करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, 2019 में उन सभी पार्टियों का वोट परसेंट करीब 45 फीसदी था. 2019 के चुनाव में 303 सीटें जीतने वाली बीजेपी का वोट परसेंट सिर्फ 37 फीसदी था.
अगर बीजेपी वर्सेज एकजुट विपक्ष में सीधा मुकाबला हुआ और विपक्ष के पक्ष में वोट ट्रांसफर आसानी से हो गया तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ जाएगी.
इसे उदाहरण से समझिए- 2019 में बिहार की 40 सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी को 17 सीट, जेडीयू को 16 सीट, लोजपा को 6 सीट और कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली. वोट परसेंट देखा जाए तो बीजेपी को 23.58 फीसदी, जेडीयू को 21.81 फीसदी, राजद को 15 फीसदी, कांग्रेस को 7 फीसदी और लोजपा को 7 फीसदी वोट मिला.
अभी जेडीयू, राजद, कांग्रेस और वाम पार्टियां बीजेपी के विरोध में है. इन 7 पार्टियों का वोट फीसदी 50 से भी ऊपर है. अगर सभी 7 पार्टियां अपना वोट ट्रांसफर कराने में सफल होती है, तो बीजेपी को नुकसान हो सकता है.
2. मुद्दा ईडी-सीबीआई की कार्रवाई और जातीय जनगणना का
बीजेपी के खिलाफ अब तक गठबंधन के जितने भी प्रयास हुए हैं, उसमें राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा नहीं था. नीतीश कुमार इस बार 2 मुद्दे को भुनाने की कोशिश में हैं. इनमें पहला मुद्दा- देशभर में जातीय जनगणना कराने की है. दूसरा मुद्दा- विपक्षी नेताओं पर हो रहे सेंट्रल एजेंसी की कार्रवाई है. सेंट्रल एजेंसी की कार्रवाई से कांग्रेस, तृणमूल, आरजेडी, बीआरएस, आप और सीपीएम परेशान हैं.
विपक्षी पार्टियों का कहना है कि मोदी सरकार के शासन में आने के बाद प्रवर्तन निदेशालय की 95 फीसदी कार्रवाई हमारे खिलाफ हुई है. सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर याचिका भी दाखिल की गई थी.
जातीय जनगणना का मुद्दा देश के ओबीसी समुदाय को सीधे प्रभावित कर सकता है. लोकसभा की सभी सीटों पर ओबीसी समुदाय 30-40 फीसदी के करीब हैं, जो गेम चेंजर माने जाते हैं. जातीय जनगणना को अगर 2024 में विपक्ष मुद्दा बनाने में सफल रहती है तो बीजेपी को काफी नुकसान हो सकता है.
बीजेपी के खिलाफ बनने वाले गठबंधन का कॉमन मिनिमम प्रोग्राम भी तैयार करने की रणनीति है. संभवत: कांग्रेस के नेतृत्व में बनी पूर्व के संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का नाम भी बदला जा सकता है. बिहार में 2015 में नीतीश कुमार और लालू यादव ने यूपीए के बदले महागठबंधन नाम दिया था.
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