मेरी सौतेली मां मेरी बली देने को लेकर प्लानिंग कर रही थी और मैंने वो सब सुन लिया, इसलिए मैं घर से भाग आयी हूं. मैंने खुद की जान बचाने के लिए ना सिर्फ अपना घर छोड़ा बल्कि मुझे अपना राज्य भी छोड़ना पड़. मेरा भाई जब 10 साल का था तब मेरी सौतेली मां ने उसकी भी बली दे दी थी. ये कहना है कि 23 साल की संजना का. संजना एक बदला हुआ नाम है. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक लड़की ने अपना नाम ना छापने की शर्त रखी है. 


सौतेली मां के काले जादू से बचने के लिए मध्यप्रदेश से तमिलनाडु आई संजना को अब तमिलनाडु पुलिस जरूरी सुरक्षा प्रदान करेगी. आइये जानते हैं संजना की कहानी. 


23 साल की संजना अपने घर से भागने को उस वक्त मजबूर हो गयी जब संजना ने सौतेली मां के काले जादू को लेकर प्लानिंग सुन ली. तब संजना ने मध्यप्रदेश छोड़ कर तमिलनाडु भागने की योजना बनाई. संजना की सौतेली मां ने 10 साल के छोटे भाई की बली पहले ही दे दी है. 


संजना ने पुलिस को जो बताया 


संजना ने पुलिस को बताया कि उसके माता-पिता राजनीति से जुड़े हुए हैं और माता-पिता के दबाव की वजह से उसने भी अखिल भारतीय विधार्थी परिषद (एबीवीपी) में शामिल होने का दावा किया. ज्वॉइनिंग के कुछ समय बाद संजना ने एबीवीपी से इस्तीफा दे दिया. संजना के पिता कृषि विभाग में नौकरी करते थे और वो 2017 में रिटायर हुए. संजना योग में डिप्लोमा कर रही थी. ये सब जानकारी हलफनामे में दी गई है. लड़की ने ये भी बताया कि वो यूपी में पैदा हुई थी बाद में उनका परिवार मध्यप्रदेश आ गया. 


काले जादू से बचने के लिए छोड़ना पड़ा घर


संजना का पूरा परिवार काले जादू में विश्वास रखता है और सौतेली मां बेटे के बाद बेटी की बली देने की प्लानिंग कर रही थी. संजना ने उसकी बातें सुन ली और उसी वक्त घर से भाग आयी. ऐसा कहते हुए संजना ने अतिरिक्त सुरक्षा की मांग की थी. 


एसपी हसन मोहम्मद जिन्ना ने जज चन्द्रशेखरन के समक्ष पेश होकर संजना की मांग को जायज ठहराया. जज ने संजना को अतिरिक्त सुरक्षा देने के हक में फैसला सुनाया है. जज ने अपने फैसले में ये भी कहा कि 21वीं सदी में इस तरह के केस सुनना बहुत तकलीफ देता है. 


ऐसे में ये सवाल उठता है कि काला जादू होता क्या है और ये देश किन जगहों पर सबसे ज्यादा किया जाता है. क्या देश में इसे लेकर कोई कानून है भी या नहीं.


अंधविश्वास का मतलब है उन आलौकिक शक्तियों पर यकीन करना जिसके पीछे कोई वैज्ञानिक तर्क नहीं है. इसके बावजूद ये भारत में आज भी प्रचलित है. वैसे तो भारतभर में काला-जादू और टोने-टोटके जैसी चीजें पर पूरी तरह से पाबंदी है.  लेकिन इसके बाबजूद भी देश के कई हिस्सों में आज भी जादू-टोने जैसी एक्टिविटीज की जाती हैं.  


कुशाभद्रा नदी उड़ीसा में होता है टोटका


कुशाभद्रा नदी एक ऐसी जगह है जहां पर हड्डियां और खोपड़ियां देखने को मिल जाएंगी. पूरे देश में ये उन जगहों कि लिस्ट में आता है जहां पर सबसे ज्यादा काला जादू किया जाता है.  घाटों के किनारे के अलावा गलियों में भी यहां पर लोग तांत्रिक और काले जादू की क्रियाएं करते हुए पाए जाते हैं.


मणिकर्णिका घाट, वाराणसी में तंत्र-मंत्र


वाराणसी में तंत्र -मंत्र और काला जादू खूब किया जाता है. यहां के कई श्मशान घाटों पर जलने वाले मृत शरीर के अवशेषों को बाबा खाते हैं. इन बाबाओं का मानना है कि, ऐसा करने से शक्तियां बढ़ती हैं. मणिकर्णिका घाट पर छुपते-छुपाते काला जादू होता है. 


निमतला घाट, कोलकाता- में काला जादू


काला जादू के लिए कोलकाता भी मशहूर है. कोलकाता का निमतला घाट काला जादू के लिए काफी फेमस है.  यहां आधी रात को अघोरी निमतला घाट पर आते हैं और घाट पर जलाए गए अवशेषों को खाते हैं.  


मायोंग विलेज, असम का काला जादू है फेमस


असम का मायोंग गांव सदियों से काला जादू के लिए जाना जाता है. कहानी है कि इस गांव में आने पर मुगलों और अंग्रेजों को भी काफी डर लगता था. इस गांव के सभी लोग काला जादू जानते हैं. गांव के लोगों का मानना है कि उन्हें काले जादू की शक्ति वरदान के रूप में मिली है. 


काला जादू को लेकर कानून क्या कहता है


जनवरी 2020 में कर्नाटक अंधविश्वास विरोधी कानून को वर्तमान सरकार ने औपचारिक रूप से अधिसूचित किया था. इस कानून को कर्नाटक रोकथाम या आमनविय बुराई प्रथाओं और काला जादू अधिनियम 2017 का उन्मुलन कहा गया है. ये कानून जबरन वसूली की आड़ में लोगों पर हमला करने और दवाओं का इस्तेमाल ना करके ये दावा करने के खिलाफ है कि कोई भी तांत्रिक विद्या से किसी मरीज को ठीक कर सकता है. 


महाराष्ट्र में भी पास हो चुका है काला जादू के खिलाफ कानून


महाराष्ट्र में भी अंधविश्वास विरोधी और काला जादू (रोकथाम) अधिनियम लागू किया गया है. बता दें कि इस कानून के लिये ‘नरेन्द्र दाभोलकर’ और ‘अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति’ ने 18 सालों तक संघर्ष किया था. अंधविश्वास का इस्तेमाल कर लोगों को गुमराह करने वाले और जादू-टोना करने वाले बाबाओं और तांत्रिकों के खिलाफ क़दम उठाने वाला पहला राज्य महाराष्ट्र ही था जहां जादू-टोना विरोधी कानून भी पारित हुआ है.


महाराष्ट्र में इस अधिनियम का जमकर विरोध हुआ था, कई लोगों का मानना था कि  इसे हिंदू मान्यताओं के खिलाफ लाया गया है. इन सब के खिलाफ दाभोलकर ने लंबी लड़ाई लड़ी थी. और आखिरकार उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी. 


यहां पर गौर करने वाली बात ये भी है कि जादू टोने को लेकर जितने भी मामले सामने आते हैं उनमें सभी धर्मों के लोगों का नाम आता है फिर भी इसे हिंदू विरोधी बताया गया था. 


बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री जादू टोना को लेकर आ चुके हैं चर्चा में


महाराष्ट्र के इस कानून और अंधविश्वास के खिलाफ चला अभियान फिर से चर्चा में बना था. इसकी वजह मध्यप्रदेश के बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री थे. धीरेंद्र शास्त्री लोगों का दिमाग पढ़ लेने का दावा करते हैं. महाराष्ट्र में अंधविश्वास उन्मूलन समिति के राष्ट्रीय समन्वयक श्याम मानव ने धीरेंद्र शास्त्री को चुनौती दी थी.


अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने धीरेंद्र शास्त्री को चुनौती देते हुए कहा था कि अगर वो लोगों का दिमाग पढ़ लेने के अपने दावे को साबित करते हैं तो उन्हें 30 लाख रुपये का ईनाम दिया जाएगा.


अंधविश्वास विरोधी और काला जादू अधिनियम की जरूरत क्यों पड़ी


अंधविश्वास एक तर्कहीन विश्वास है जिसका कोई आधार नहीं है. कई बार इसका शिकार मासूम लोग होते हैं. ये भी एक सच्चाई है कि अंधविश्वास का अंत कानून के दम पर नहीं किया सकता है, इसके लिये लोगों की मानसिकता में बदलाव लाना होगा.


नरबली को लेकर क्या है कानून 


भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में नरबलि (Human sacrifice) को अंजाम देने वालों को दंड देने का प्रावधान तो है, लेकिन यह काला जादू और दूसरे अंधविश्वासी प्रथाओं की वजह से होने वाले अपराधों की रोकथाम में कारगर नहीं है. इसलिए आईपीसी में नरबली को रोकने के लिए एक अलग से कानून लाने की जरूरत है. 


हाल के दशकों में, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में लगभग 800 महिलाओं को जादू टोना करने के शक में मौत के घाट उतार दिया गया. जिससे ये साबित होता है कि मौजूदा कानून अप्राभावी है.