समलैंगिकता पर मचे बवाल के बीच शादी को लेकर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने बड़ा बयान दिया है. संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के बाद सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि हिंदू परंपरा में शादी एक संस्कार है ना कि समझौता.
होसबाले ने कहा कि हिंदू धर्म में शादी कोई उपभोग या समझौते की चीज नहीं है. हम इस मामले में सरकार के स्टैंड के साथ हैं. हाल ही में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा पेश कर समलैंगिक शादी का विरोध किया है.
केंद्र ने कहा है कि सेम सेक्स मैरिज भारतीय परंपरा के खिलाफ है. शादी यहां अपोजिट सेक्स में ही मान्य है. हमने अब तक जितने भी कानून बनाएं हैं, वो सब पति-पत्नी को देखते ही बनाया है. इसके मान्य होने से सभी कानूनों में बदलाव करना पड़ेगा.
केंद्र ने कहा है कि समलैंगिक वयस्कों के बीच सहमति से बने शारीरिक संबंध को अपराध न मानना और उनकी शादी को कानूनी दर्जा देना दो अलग-अलग चीजें हैं. समलैंगिक शादी में लड़ाई के वक्त पति और पत्नी के बारे में पता लगाना मुश्किल हो जाएगा.
शादी को संस्कार बताने वाले संघ के इस बयान पर चर्चा शुरू हो गई है. ऐसे में इस स्टोरी में आइए जानते हैं, हिंदू-मुस्लिम समेत अन्य धर्मों में शादी को लेकर क्या कहा गया है?
मोहन भागवत ने शादी को बताया था 'सौदा'
2013 में इंदौर के एक कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शादी को समझौता बताया था. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक एक विवाह संस्था पर सवाल उठाते हुए भागवत ने कहा था- 'शादी तो एक तरह का कॉन्ट्रैक्ट या सौदा होता है.'
रिपोर्ट के मुताबिक अपने भाषण में भागवत ने आगे कहा कि पति और पत्नी समझौते के तहत एक दूसरे की जरूरतों को पूरा करते हैं. अगर ये जरूरते पूरी नहीं होती है तो दोनों को एक दूसरे को छोड़ देने का अधिकार भी होता है. भागवत के इस बयान पर उस वक्त खूब हंगामा हुआ था.
भागवत ने अपने भाषण में कहा था कि शादी को भले आप लोग संस्कार कहिए, लेकिन यह समझौता ही है. पति अपनी पत्नी से कहता है कि तुम घर संभालो और बदले में हम तुम्हें सुरक्षा देंगे और तुम्हारे पेट पालने की व्यवस्था करेंगे.
बाद में संघ ने इस पर सफाई दी. उस वक्त संघ के प्रवक्ता राम माधव ने कहा था कि मोहन भागवत का यह बयान पश्चिमी विवाह के संदर्भ में था, जबकि मीडिया ने इसे भारतीय विवाह पद्धति से जोड़ दिया.
अब विस्तार से जानिए किस धर्म में शादी के बारे में क्या कहा गया है?
हिंदू धर्म- हिंदू धर्म के शास्त्रों में सोलह संस्कार का जिक्र किया गया है. इसी के 13वें स्कार में विवाह का भी जिक्र है. विवाह का अर्थ है- विशेष रूप से उत्तरदायित्व का वहन करना. ऋगवेद में सूर्य और सूर्या के विवाह का जिक्र है.
अर्थव और शतपथ ब्राह्मण में विवाह के बारे में विस्तार से बताया गया है. हिंदू धर्म में विवाह को जन्म-जन्मांतरण का संबंध माना गया है. इसलिए विवाह के वक्त पति और पत्नी अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं.
मनुस्मृति के अनुसार विवाह ब्रह्म, देव, आर्ष, प्रजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पैशाच 8 प्रकार के होते हैं. इनमें ब्रह्म, देव, आर्ष और प्रजापत्य को उतकृष्ट यानी सर्वोत्तम जबकि असुर, गंधर्व, राक्षस और पैशाच को निकृष्ट माना गया है.
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के सहायक प्रोफेसर धनंजय वासुदेव द्विवेदी के मुताबिक विवाह संस्कार हिंदू संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि अन्य सभी संस्कार इसी पर आश्रित है.
विवाह को संस्कार इसलिए कहा जाता है कि मनुष्य इसके बाद व्यक्ति धरातल से उठकर पारिवारिक और समाजिक धरातल पर पहुंच जाता है. प्राचीन काल में विवाह को यज्ञ माना जाता था.
द्विवेदी आगे कहते हैं- शतपथ ब्राह्मण में पत्नी को जाया यानी आधा भाग कहा गया है. तैत्तिरीय आरण्यक में पत्नी रहित व्यक्ति को यज्ञ का उत्तराधिकारी नहीं माना जाता था.
1955 में भारत में हिंदू विवाह अधिनियम लागू किया गया, जिसमें पति और पत्नी को तलाक लेने की स्वतंत्रता दी गई. इसके बाद शादी के संस्कार माने जाने को लेकर कई बार सवाल भी उठे. कई संगठनों ने उस वक्त इस अधिनियम का विरोध भी किया था.
इस्लाम- इस्लाम में शादी को निकाह कहा गया है. निकाह अरबी भाषा के माद्दे न क ह से बना है, जिसका अर्थ होता है- मिलना या जमा करना. इस्लाम में शादी करना एक कर्तव्य माना गया है और पीढ़ी बढ़ाने का सबसे बेहतरीन तरीका भी.
हदीस में पैगंबर साहब ने बताया है कि निकाह आधा ईमान होता है. कोई भी इंसान तब तक पूर्ण नहीं होता, जब तक वह निकाह नहीं करता है. इस्लाम में 4 शादी के बारे में भी जिक्र है. हालांकि, हाल के दिनों में भारत में इसको लेकर कई सवाल उठे थे.
इस्लाम में शादी एक समझौता माना गया है. निकाह के वक्त पति, पत्नी के साथ एक काजी और दो गवाह को जरूरी माना गया है. गवाह अगर पुरुष नहीं हैं, तो 4 महिलाओं को गवाही देना होगा.
निकाह से पहले एक मेहर की राशि तय की जाती है. मेहर की राशि से पति यानी शौहर अपनी पत्नी को तोहफे या गिफ्ट के रूप में देते हैं. मेहर की राशि तय होने के बाद शादी की परंपरा शुरू होती है.
भारत में इस्लाम में विवाह का 2 बड़ा विवाद सुप्रीम कोर्ट में गया. अब्दुल कादिर बनाम सलीमा केस में सुप्रीम कोर्ट की 2 जजों की बेंच ने इस्लाम का विस्तार से तर्क सुनने के बाद शादी को एक करार यानी समझौता बताया.
बाद में अनीशा बेगम बनाम मोहम्मद मुस्तफा केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शाह सुलेमान ने इस्लाम में शादी को समझौता के साथ ही एक संस्कार भी बताया.
सिख- 15वीं शताब्दी में हिंदू धर्म से अलग होकर सिख धर्म बना. सिखों के पहले गुरू नानक देव अपने विचार गुरु ग्रंथ साहिब में दिए. गुरु ग्रंथ साहिब में चार अनुष्ठानों का जिक्र किया गया है. सिख धर्म में शादी को संस्कार माना गया है.
- जन्म और गुरुद्वारे में आयोजित नामकरण समारोह है.
- आनंद करज या विवाह समारोह है.
- अमृत संस्कार है जो खालसा में दीक्षा के लिये होने वाला समारोह है.
- मृत्योपरांत होने वाला अंतिम संस्कार समारोह है.
आनंद कारज को भारत में 1909 में मान्यता मिली थी. 1955 में फिर सिखों की शादी को हिंदू विवाह अधिनियम में शामिल कर दिया गया था, हालांकि, 2012 में फिर इसे अलग कर दिया गया.
गुरु रामदास ने आनंद कारज के बारे में विस्तार से लिखा है. आनंद कारज के लिए सभी दिन को शुभ माना गया है. यानी शादी के लिए लग्न, मुहूर्त आदि देखने की कोई जरूरत नहीं है. हिंदू धर्म में शादी में 7 फेरे लिए जाते हैं, जबकि सिख में 4 फेरे लेने की रिवाज है.
सिख धर्म में विवाह के वक्त दूल्हे को गुरु ग्रंथ साहिब के सामने बैठाया जाता है और फिर दुल्हन उसके बायीं ओर आकर बैठती हैं. शादी किसी भी अमृतधारी सिख द्वारा कराई जाती है. अंत में पति और पत्नी गुरु ग्रंथ साहिब के सामने सिर झुकाते हैं.
ईसाई- बाइबिल के उत्पति भाग में विवाह का जिक्र किया गया है. ईसाई में विवाह को एक समझौता के साथ संस्कार माना गया है. बाइबिल के मुताबिक परमेश्वर ने कहा कि आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं है. मैं उसके लिए एक सहायक बनाऊंगा.
बाइबिल में पुरुष से पुरुष के बीच और महिला से महिला के बीच शादी को प्रतिबंधित माना गया है. विवाह को ईसाई में समाजिक मिलन भी बताया गया है. बाइबिल में लड़के और लड़की के आपसी सहमति के बाद ही शादी को मान्य माना गया है.
शादी के दौरान दूल्हे और दुल्हन चर्च जाते हैं, जहां कई रस्में पूरी की जाती है. इस दौरान अंतिम सांस तक एक-दूसरे वफादार रहने की दोनों शपथ लेते हैं.
बौद्ध- बौद्ध धर्म में विवाह को एक धर्मनिरपेक्ष मामला माना गया है, इसलिए यह संस्कार और समझौते से बाहर की श्रेणी से बाहर है. गौतम बुद्ध अपने उपदेश में न तो शादी के पक्ष में कुछ बोले और न ही खिलाफ.
बौद्ध धर्म ग्रंथ दीघ निकाय के सिगालोवाद सुत्त में अनुयायियों को जीवनसाथी चुनने का अधिकार दिया गया है. हालांकि, इसमें जीवनसाथी चुनने के लिए अपोजीट सेक्स को सही ठहराया गया है.
भारत के महाराष्ट्र के कई इलाकों में बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की वजह से लाखों परिवार ने बौद्ध धर्म अपनाया. इसलिए इन इलाकों में बिना कोई बड़ा आयोजन किए धर्म के लोग शादी करते हैं. इसके लिए कुछ नियम भी बनाए गए हैं.
पारसी- अरबों के आक्रमण के डर से ईरान से भागर पारसी भारत में आकर बस गए. पारसी में शादी को समझौते के साथ ही एक परंपरा और संस्कार भी माना गया है. वेस्टा धर्म ग्रंथ के आधार पर ही पारसी शादी करते हैं. इसके मुताबिक लड़का-लड़की में कोई एक अलग धर्म की है, तो शादी नहीं हो सकती है.
वेस्टा में कहा गया है कि एक पारसी सिर्फ जन्म से ही पारसी हो सकता है. पारसी धर्म में शादी दो फेज में होता है. पहले फेज में दूल्हा और दुल्हन अपने परिवार और रिश्तेदारों के सामने एक शादी समझौते पर हस्ताक्षर करते हैं. दूसरे फेज में दावतों का दौर यानी रिसेप्शन होता है.
पारसी धर्म में शादी सूर्यास्त के बाद ही की जाती है. जब तक पादरी यानी दस्तूर शादी को प्रमाणित नहीं करता है, तब तक विवाह को मान्यता नहीं मिलती है. इतना ही नहीं, अलग धर्म में शादी करने वाले पारसी को अपने माता पिता के अंतिम संस्कार से भी वंचित कर दिया जाता है.