मौजूदा दौर में समाजवादी विचारधारा के सबसे बड़े नेता मुलायम सिंह यादव नहीं रहे. 10 अक्टूबर की सुबह उनके निधन की खबर आई. पक्ष-विपक्ष के तमाम नेताओं ने मुलायम परिवार के प्रति अपनी शोक संवेदना प्रकट की है. समाजवादी पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हवाले से लिखा गया, 'मेरे आदरणीय पिता जी और सबके नेता जी नहीं रहे.'
एबीपी न्यूज से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार अभय दुबे ने कहा, 'वो भारत में सामाजिक न्याय की राजनीति के सबसे बड़े चैंपियन थे. उन्होंने पहली बार सीएम बनते ही आदेश जारी किया कि सरकारी कामकाज हिंदी में होगा. इस पर अधिकारी सन्न रह गए और अंग्रेजी मीडिया चीख पड़ा'.
अभय दुबे ने कहा कि हिंदी को लेकर उनके इस फैसले पर उस समय प्रोफेसर धीरू भाई शेख ने भारतीय भाषाओं पर एक बड़ा लेख लिखा था उसमें मुलायम सिंह यादव की तारीफ की गई थी. अभय दुबे ने कहा कि इससे बड़ा देशभक्ति पूर्ण कदम कोई मुख्यमंत्री नहीं उठा पाया था.
अभय दुबे ने बताया कि मुलायम सिंह यादव जमीन से जुड़े बड़े फैसले लेने के लिए जाने जाते थे. इसी तरह उनका फैसला चुंगी को लेकर था. सीएम बनते ही उन्होंने यूपी में चुंगी व्यवस्था खत्म करने के लिए फैसला लिया था.
दुबे ने बताया कि उनके इस फैसले से वैश्य समाज में भी उनकी पैठ बढ़ गई थी. उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह को हमेशा यादवों का नेता कहा जाता रहा है कि लेकिन ब्राह्मण समाज के प्रगतिशील समाज के लोग और राजपूत भी उनके साथ खड़े थे.
मुलायम सिंह यादव ने यूपी और पूरे देश की राजनीति को प्रभावित किया था. 1993 में जब ऐसा लग रहा था कि बाबरी मस्जिद गिरने के बाद यूपी में बीजेपी को रोकना मुश्किल लग रहा था लेकिन मुलायम सिंह ने बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के साथ मिलकर बीजेपी को हरा दिया था.
मुलायम सिंह यादव का यह फैसला यूपी में जातिगत समीकरणों की राजनीति का पहला आधार था जिसमें ओबीसी, मुसलमान, दलित और पिछड़े साथ थे. हालांकि यह सरकार बहुत दिन तक नहीं चल पाई लेकिन जातियों की राजनीति आज भी इसी प्रयोग के इर्दगिर्द घूमती है.
साल 2022 में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़कर सुभासपा के अध्यक्ष ओपी राजभर ने भी मुलायम सिंह यादव को याद करते हुए कहा कि जब उन्होंने नई पार्टी बनाई तो सपा संरक्षक ने सलाह दी थी कि जनता के बीच रहना, सुख दुख में साथ रहना यही राजनीति का धर्म है.
राजभर ने कहा कि मुलायम सिंह यादव ने हमेशा धरती में रहकर गरीब-दलितों, पिछड़े, किसान के लिए काम किया और कभी पीछे नहीं रहे, इसीलिए उनको 'धरतीपुत्र' कहा जाता है.
बात करें रक्षा मंत्री के तौर पर उनके कामकाज की तो भले ही उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा हो लेकिन आज भारतीय सेना के पास जो सुखोई फाइटर प्लेन है ये डील उन्होंने ही साइन की थी. इसके साथ ही शहीद हुए जवानों के शव उनके घर तक पहुंचाने का काम भी मुलायम सिंह यादव ने ही की कोशिशों से शुरू हो पाया था.
नेताजी ने हमेशा चौंकाया
- साल 1999 में कांग्रेस के सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनाए जाने के प्रस्ताव का मुलायम ने विरोध किया था. मुलायम ने उनके इटली मूल के होने का मुद्दा उठाकर मामले को नया रंग दे दिया था।
- उन्होंने 2002 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए के उम्मीदवार एपीजे अब्दुल कलाम का समर्थन किया था.
- साल 2008 में यूपीए के इंडो-यूएस सिविल न्यूक्लियर डील को समर्थन देकर उन्होंने लेफ्ट का साथ छोड़ा.
- साल 2012 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी से समझौता तोड़ा. दोनों का मानना था कि कलाम दोबारा से राष्ट्रपति पद के दावेदार हो सकते हैं लेकिन आखिरी समय में मुलायम के कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की पसंद प्रणब मुखर्जी पर मुहर लगाई.
- साल 2017 में विधानसभा चुनाव से पहले बेटे अखिलेश यादव और भाई शिवपाल यादव में विवाद के चलते मुलायम परिवार में भी खींचतान आ गई थी. उन्होंने भाई शिवपाल यादव का समर्थन कर दिया था, उन्होंने एसपी से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनाई.