Muslim in India: जैसे ही चुनाव नजदीक आते हैं, मुस्लिम वोटरों की अहमियत एकदम से बढ़ जाती है. खासकर विपक्षी दलों में इन वोटरों को अपनी तरफ खींचने के लिए खास रणनीति बनने लगती है. सत्ताधारी बीजेपी पर तो मुस्लिम विरोधी होने का ठप्पा लगा है. इसलिए उनकी प्रतिक्रिया इऩ वोटरों को लेकर सामान्य ही रहती है. कई वर्षों तक कांग्रेस से लेकर अन्य कई बीजेपी विरोधी पार्टियों की राज्यों से लेकर केंद्र तक सरकारें रहीं, लेकिन इसके बाद भी संसद में मुस्लिमों की भागीदारी पर अपेक्षित सुधार नहीं हुआ.


मुस्लिम वोट बैंक का इतना महत्व होने के बावजूद लोकसभा से लेकर विधानसभा तक में उनकी भागीदारी उतनी नहीं रहती जितनी की उनकी आबादी है. मुस्लिमों के हिमायती विभिन्न दलों के कई बार सत्तासीन होने के बावजूद विधानसभा से लेकर संसद तक उनकी उपस्थिति के आंकड़े खुद ब खुद सारी कहानी बयां कर देंगे. आइए डालते इस पर एक सरसरी नजर.


17वीं लोकभा में बढ़े सदस्य


16वीं लोकसभा यानी  2014 में सिर्फ 22 मुस्लिम कंडीडेट ही जीतकर संसद में पहुंचे थे. यह अब तक की सबसे खऱाब स्थिति थी. हालांकि 17वीं लोकसभा में यह ग्राफ बढ़ गया था. 2019 में बीजेपी और उसके गठबंधन एऩडीए से भी दो मुस्लिम सांसद भी विजयी हुए थे. इनमें से एक सौमित्र खान थे. जिन्होंने बीजेपी के टिकट पर लड़ते हुए पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को ही मात दे दी थी. वहीं दूसरे बिहार में लोजपा के टिकट से महबूब अली कैसर जीतकर लोकसभा में पहुंचे थे. बीजेपी पर हमेशा से मुस्लिमों को टिकट न देने के आरोप लगते रहे हैं. 2019 में बीजेपी ने 6 मुस्लिम कंडीडेट खड़े किए थे. जिनमें से महज एक को ही जीत मिली.


सर्वाधिक मुस्लिम सदस्य 1980 में जीते


भारतीय संसद में सर्वाधिक मुस्लिम सदस्य 1980 में पहुंचे थे. इस बार 49 कंडीडेट विजयी हुए थे. फिर भी यह आंकड़े उनके वोटबैंक और आबादी से मेल नहीं खाते हैं. लोकनीति और सीएसडीएस के डाटा के अनुसार अभी तक जितने आम चुनाव हुए हैं, उनमें 1980 के बाद लगातार मुस्लिम सदस्यों का ग्राफ गिरता ही रहा है. 1952 में हुए पहले चुनाव से देखा जाए तो पहली बार 21 सदस्य विजयी हुए थे. इसके 1957 में 24, 1962 में 23, 1967 में 29, 1971 में 30, 1977 में 34, 1980 में 49 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी विजयी हुए थे. इसके बाद निरंतर इसमें गिरावट आती गई. 1984 में 46, 1989 में 33, 1991 में 28, 1996 में 28, 1998 में 29, 1999 में 32, 2004 में 36, 2009 में 30 सदस्य जीते थे.


भारतीय राजनीति में मुस्लिमों की भागीदारी


टेक्निकल ग्रुप ऑफ पॉपुलेशन प्रोजेक्शन की रिपोर्ट के अनुसार जिस रेशियों में भारतीय आबादी 2023 तक 138.82 करोड़ होने का अनुमान जताया गया था. उसी का हवाला देते हुए स्मृति ईरानी ने सदन में एक प्रश्न के उत्तर में बताया था कि 2023 तक देश में मुस्लिम आबादी 19.75 करोड़ हो जाएगी.


इसके पहले 2011 की गणना में मुस्लिम आबादी 17.2 करोड़ बताई गई थी. यह कुल भारतीय आबादी का करीब 20 फीसद है. इस लिहाज से देखा जाए तो इस समय तक संसद में मुस्लिम सदस्यों की संख्या 80 के करीब होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है. कई टर्म कांग्रेस सहित यूपीए, जनता दल जैसी पार्टियों की केंद्र में सत्ता रही लेकिन मुस्लिम सदस्यों की संख्या में उनकी आबादी और वोट परसेंट के हिसाब से बढोत्तरी नहीं हुई.


तीन राज्यों में सर्वाधिक मुस्लिम फिर भी सीटें कम


उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल ऐसे तीन राज्य हैं जहां मुस्लिमों की आबादी भारत में सर्वाधिक है. यहां भारत के कुल मुसलमानों की 47 प्रतिशत आबादी रहती है. इसके बावजूद लोकसभा और विधानसभा दोनों जगह इनकी सीटें कम ही हैं. अगर 2011 की जनगणना की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश में 4.07 करोड़ मुसलमान रहता है. यह प्रदेश की आबादी 19.3 फीसद है.


पश्चिम बंगाल में 3.02 करोड़, जो प्रदेश की जनसंख्या का 27 परसेंट है. बिहार में 1.75 करोड़ मुस्लिम है, जो कुल आबादी का 16 परसेंट हैं. इसके बावजूद बीजेपी ने 2014 में उत्तर प्रदेश में 80 में 71 और 2019 के आम चुनाव में 80 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लोकसभा में 80 में 36 ऐसी सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, जहां पर 20 परसेंट मुस्लिम मतदाता था.


इतना ही नहीं 2017 विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने 403 में से 325 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था. कमोवेश यही स्थिति बिहार और पश्चिम बंगाल में है. यहां भी मजबूत वोट बैंक होने के बावजूद उनकी हिमायती पार्टियों ने उन्हें उस रेशियों में टिकट नहीं दिए जितने के उन्हें मिलने चाहिए थे.


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