नासा का दावा, धरती के बेहद करीब से गुजरेगा यात्री विमान से बड़ा ऐस्टरॉइड
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने जानकारी दी है कि, धरती के पास से 7 अक्टूबर को एक उल्कापिंड गुजरेगा. नासा के मुताबिक इस उल्कापिंड का आकार किसी यात्री विमान से भी बड़ा है. नासा ने यह भी दावा किया है कि, इस उल्कापिंड से धरती को कोई खतरा नहीं है.
अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा द्वारा एक ऐसे ऐस्टरॉइड की खोज की गई है जो धरती की तरफ काफी तेजी से बढ़ रहा है. नासा के मुताबिक इस ऐस्टरॉइड का नाम 2020 RK2 है. नासा ने जानकारी दी है कि ये ऐस्टरॉइड सात अक्टूबर, बुधवार को धरती की कक्षा में दाखिल होगा।
ऐस्टरॉइड से नहीं है धरती को कोई खतरा
इस ऐस्टरॉइड को सितंबर महीने में वैज्ञानिकों द्वारा पहली बार देखा गया था। नासा ने बताया कि इस ऐस्टरॉइड से डरने की कोई जरूरत नही है क्योंकि इससे धरती को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा. लेकिन फिर भी वैज्ञानिक इसकी हर चाल पर पूरी नजर बनाए हुए हैं. नासा ने यह भी जानकारी दी कि ऐस्टरॉइड 2020 RK2 धरती की तरफ तकरीबन 24046 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से बढ़ रहा है। अनुमान जताया जा रहा है कि इस ऐस्टरॉइड की व्यास 36 से 81 मीटर के बीच मे हो सकता है, जबकि इसकी चौड़ाई 118 से 265 फीट तक हो सकती है. इ
धरती से नहीं दिखाई देगा ऐस्टरॉइड
नासा ने यह भी बताया कि इस ऐस्टरॉइड को धरती से नहीं देखा जा सकता है. इसके साथ ही नासा द्वारा जानकारी दी गई है कि पूर्वी मानक समय के अनुसार ऐस्टरॉइड 2020 RK2 बुधवार की दोपहर 1 बजकर 12 मिनट पर और ब्रिटेन के समय के अनुसार शाम के 6 बजकर 12 मिनट पर धरती के काफी पास से गुजरेगा. नासा ने यह भी अनुमान जताया है कि यह ऐस्टरॉइड धरती से 2,378,482 मील की दूरी से निकल जाएगा।बता दें कि नासा का Sentry सिस्टम ऐसे खतरों पर अपनी पैनी निगाह बनाए रखता है. इसमे आने वाले 100 सालों के लिए फिलहाल 22 ऐसे ऐस्टरॉइड्स हैं जिनके धरती से टकराने की थोड़ी सी भी संभावना है.
आखिर क्या होते हैं ऐस्टरॉइड्स ?
ऐस्टारॉइड्स के बारे में कहा जाता है कि वे एक चट्टान की तरह दिखते हैं जो किसी ग्रह की भांति ही सूरज की परिक्रमा करते हैं लेकिन इनका आकार ग्रहों की तुलना में काफी छोटा होता है. हमारे सोलर सिस्टम में अधिकतर ऐस्टरॉइड्स मंगल ग्रह और बृहस्पति व जूपिटर की कक्षा में ऐस्टरॉइड बेल्ट में पाए जाते हैं. हालांकि इनके अलावा भी ये दूसरे ग्रहों की कक्षा में चक्कर लगाते रहते हैं और ग्रह के साथ ही सूरज का चक्कर काटते हैं. बता दें कि तकरीबन 4.5 अरब साल पहले जब हमारा सोलर सिस्टम अस्तित्व में आया था उस दौरान गैस व धूल के बादल जो किसी ग्रह का आकार नहीं ले पाए और पीछे रह गए वही बाद में इन चट्टानों यानी ऐस्टरॉइड्स के रूप में बदल गए. इस कारण ही इनका आकार भी ग्रहों की भांति गोल नहीं होता है.
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