Nepal Elections: नेपाल में 2015 में संविधान लागू होने के बाद दूसरा आम चुनाव संपन्न हो गया, चुनाव परिणाम भी आ गए. 275 सीटों वाली संसद में किसी को भी बहुमत नहीं मिला है. लेकिन नेपाल में लोकतंत्र के दृष्टिकोण से चुनाव संपन्न होना और चुनाव परिणाम में किसी दल को बहुमत न मिलना कई संकेत देते है. 2015 में नेपाल में संविधान लागू होने के बाद पहली बार नेपाली संसद ने अपना कार्यकाल पूरा किया और उसके बाद चुनाव हुए. हालांकि संसद के कार्यकाल पूरा होने के पहले बीच में ही संसद भंग करने कोशिश की गई, लेकिन नेपाली सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से यह संभव नहीं हो पाया.
क्या बताते हैं चुनाव परिणाम
चुनाव परिणाम बताते है कि जनता का पूर्ण विश्वास नेपाल के किसी भी राजनीतिक दल पर नही है. चाहे वे नेपाल कांग्रेस हो या नेपाल के वामपंथी दल हो. वामपंथियों की सीटें इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले घट गई है. चुनाव परिणाम बताते है कि नेपाल का युवा वर्ग वहां के राजनीतिक दलों और नेताओं के व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं से परेशान हो चुके है. बेरोजगार, गरीबी, शिक्षा और स्वास्थ्य पर सत्ता में रहे वामपंथी दलों ने भी कुछ काम नहीं किया. नेपाल में सत्ता पर काबिज हुए वामपंथी भारत और चीन के बीच झूलते रहे. जनता ने उन्हें चेताया है कि वे जनता के काम करें. नेपाल के चुनाव परिणाम ने भारत और चीन को भी संदेश दिए है.
दो अलग-अलग बैलेट पेपर
नेपाल के संसद में कुल 275 सीटे है. इसमे से 165 सीधे जनता दवारा वोट से चुने जाते है. बाकि 110 सीटों पर चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर होता है, जिसमें राजनीतिक दल उम्मीदवारों की सूची चुनाव से पहले जमा करवाती है. वोटिंग के दौरान दो अलग-अलग बैलेट पेपर का इस्तेमाल होता है जिसमें एक बैलेट पेपर पर उम्मीवार के लिए जनता वोट करती है और एक बैलेट पर पार्टी के लिए वोट करती है. इस चुनाव में 61 प्रतिशत योग्य मतदाताओं ने भाग लिया.
नेपाल की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण संकेत
चुनाव परिणामों ने नेपाल के कम्युनिस्टों को झटका दिया है. सबसे बड़े राजनीतिक दल के तौर पर नेपाली कांग्रेस का उदय हुआ और उसे पिछले चुनाव के 63 सीट के मुकाबले इस बार 86 सीटें मिली है. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) इस बार 78 सीटों पर सिमट गई जिसे पिछले चुनाव में 121 सीटे मिली थी. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल माओईस्ट सेंटर इस बार 31 सीटों पर सिमट गई जबकि पिछली बार इन्हें 53 सीटे मिली थी. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-यूनाइफाइड सोशलिस्ट को मात्र 10 सीटें मिली है. नेपाल में इस बार दक्षिणपंथी राजनीति करने वाली पार्टी आरपीपी का उभार हुआ है इसे 14 सीटें मिली है. पिछले चुनाव में इसे मात्र 1 सीट मिली थी. नेपाल की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण संकेत यह है कि पांच महीनें पहले एक टीवी एंकर रबी लामीछाने दवारा बनायी गई पार्टी राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी ने 21 सीटें जीत ली है. नेपाल की राजनीति में एक नई पार्टी राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी का उदय पुराने राजनीतिक दलों के लिए झटका है.
किसी को नहीं मिला पूर्ण बहुमत
नेपाल में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलना कई संकेत देते है. नेपाल की जनता कई नेताओं के चेहरे से उब चुकी है. उनके भ्रष्टाचार, उनकी व्यक्तिगत महत्वकांक्षा नेपाल की जनता पर भारी पड़ा है. यही कारण है कि राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी जैसे नए राजनीतिक दल जो एक व्यक्ति केंद्रित है उसे भी 21 सीटें मिली है. लोगों ने उन्हें भी वोट दिया, जिन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान आम लोगों की भाषा में बेहतर प्रशासन देने का वादा किया. नेपाल को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का वाद किया. नेपाल से बाहर रहने वाले नेपालियों ने अपने परिवारों को नए राजनीतिक दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को भी वोट देने के लिए प्रेरित किया.
राजनीति में बदलाव के संकेत
दरअसल नेपाल की राजनीति में बदलाव के संकेत है. वैसे में भारत को नए सिरे से अपनी कुटनीति तय करनी होगी. नेपाल में युवा मतदाता जागृत हो चुके है. उन्हें यह पता है कि नेपाल के अंदर भारत और चीन का हस्तक्षेप खासा है. पूरी दुनिया से जुड़ चुके नेपाली युवा अब अपने देश का भविष्य खुद तय करना चाहते है. इस समय नेपाली युवा ग्लोबल हो चुके है. वे पश्चिम एशिया से दक्षिण पूर्व एशिया तक में नौकरियां कर रहे है. यूरोप मे भी नेपाली युवा काम कर रहे है. इस कारण उन्हें वैश्विक राजनीति का ज्ञान हो चुका है. वे नही चाहते है कि नेपाल के आंतरिक मामले में चीन और भारत का हस्तक्षेप बढ़े. नेपाल की 70 प्रतिशत आबादी 40 साल से कम उम्र की है.
लेखक: अभिषेक गुप्ता (स्तम्भकार तथा राजनैतिक विश्लेषक)
वामपंथियों की राजनीति से उब चुका
50 प्रतिशत आबादी 25 साल से कम उम्र की है. युवा आबादी दूरसंचार क्रांति के कारण दुनिया से जुडी हुई है. विदेशों में रहने वाले नेपाली युवा नेपाल के अंदर खासी दिलचस्पी ले रहे है. वैसे में नेपाल की पुराने राजनीतिक दलों की परेशानियां बढी है. क्योंकि पुराने राजनीतिक दलों ने नेपाल में लोकतंत्र को मजबूत करने के नाम पर नेपाल में लूट खसोट की. ये राजनीतिक दल भारत और चीन के बीच झूलते रहे. वामपंथी दलों को इस चुनाव में पहले से कम सीट मिलनी यही संकेत है कि नेपाली युवा वर्ग अब वामपंथियों की राजनीति से उब चुका है.
चीन नेपाल के आंतरिक मामले
इसमें कोई संदेह नहीं कि नेपाल की राजनीति में भारत का प्रभाव 1950 के दशक से ही रहा है. लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि चीन नेपाल के आंतरिक मामलों में खुल कर दखल दे रहा है. पिछले दो सालों में नेपाल के राजनीतिक संकट के दौरान चीनी राजदूत काफी सक्रिय नजर आयी थी. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के बीच समझौते के लिए चीन लगातार हस्तक्षेप करता रहा. निश्चित तौर पर यह भारत के लिए चिंता का विषय था. वैश्विक भूगौलिक-राजनीति में किसी भी देश की अंदरूनी राजनीति में पड़ोसी मुल्क की दखलंदाजी सामान्य तौर पर होती रहती है.
आंतरिक राजनीतिक ढांचा
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की नई व्यवस्था में एशिया से लेकर यूरोप, लैटिन अमेरिका तक के देशों की अंदरूनी राजनीति में बाहरी हस्तक्षेप होते रहे हैं. खाड़ी के देशों में कई ताकतवर देश पड़ोसी मुल्क की अंदरूनी राजनीति को प्रभावित करते रहे हैं. एक वक्त में सोवियत रूस दक्षिण एशिया के कई देशों, कई यूरोपीए देशों और लैटिन अमेरिकी देशों में दखल देता था. इसलिए नेपाल को इसका अपवाद नहीं कहा जा सकता. हालांकि देश का आंतरिक राजनीतिक ढांचा मजबूत है तो बाहरी हस्तक्षेप का प्रभाव काफी कम रहता है. लेकिन सच्चाई यह है कि नेपाली लोकतंत्र अभी काफी कमजोर है. नेपाल में नया संविधान बन तो गया, दो चुनाव हो गए. पर नेपाली लोकतंत्र शैशवास्था में ही कई बुराइयों से ग्रस्त हो गया.
कम्युनिस्ट पार्टी की लड़ाई
नेपाली लोकतंत्र को नष्ट करने की कोशिश वहां के राजनीतिक दलों ने ही की. कम्युनिस्ट पार्टी के नेता आपस में लड़ते रहे. कई कम्युनिस्ट नेताओं का गंभीर आरोप नेपाल के बड़े कम्युनिस्ट नेता के.पी. शर्मा ओली पर लगे थे. प्रचंड जैसे नेता ने तो यहां तक कह डाला था कि ओली नेपाल में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसा शासन मॉडल लाना चाहते हैं.
लोकतंत्र में अंदरूनी संकट
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि नेपाली लोकतंत्र किस तरह के अंदरूनी संकट से जूझ रहा है.नेपाल में पिछले पांच साल में चार प्रधानमंत्री बनाए गए. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी और नेपाली कांग्रेस के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. खुद प्रचंड और ओली भी इस तरह के आरोपों में घिर गए थे. लोकतांत्रिक नेपाल में विकास की गति धीमी रही है, क्योंकि नेपाल के राजनीतिक दलों के नेता अपनी पूरी ऊर्जा सरकार बनाने और गिराने में लगाते रहे हैं. नेपाल में स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली की स्थिति खराब है. उर्जा के लिए जरूरी संसाधनों के मामले में अमीर नेपाल बाहर से बिजली आयात करता है.
नेपाल की अंदरूनी राजनीति
नेपाल की अंदरूनी राजनीति की उठापटक में भारत और चीन का नाम न आए, ऐसा हो नहीं सकता. नेपाली कांग्रेस के नेता भारत के नजदीक रहे. चीन इससे परेशान होता रहा. चीन ने वामपंथी नेताओं को संरक्षण दिया. लेकिन वामपंथी नेता भी आपस में लड़ते रहे. के.पी. शर्मा ओली के खिलाफ प्रचंड और दूसरे कम्युनिस्ट नेताओं ने बगावत की है.लेकिन ओली ने इसमें भारत की साजिश देखी. जबकि ओली किसी जमाने में खुद भारत के नजदीक रहे. उस वक्त प्रचंड भारत के घोर विरोधी थे. ओली तो चीन के साथ इतना खुलकर हो गए कि भारतीय हिस्सों को नेपाल के मानचित्र में दिखा कर उन्होंने नए विवाद को जन्म दिया.
आर्थिक शक्ति में अमेरिका की रूचि
नेपाल में आम चुनाव हो गया. किसी दल को बहुमत नहीं है. नेपाल में बाहरी हस्तक्षेप इस वक्त लाजिमी है. नेपाल सिर्फ भारत और चीन के बीच टकराव का केंद्र नहीं है, बल्कि एक और बड़ी आर्थिक शक्ति अमेरिका की भी रूचि यहां है. नेपाल में निवेश और विकास के लिए मिलने वाली अमेरिकी सहायता राशि, अनुदान और कर्ज को लेकर चीन परेशान है. नेपाल में निवेश के नाम पर एक तरफ चीन की बेल्ट एवं रोड परियोजना है, तो दूसरी तरफ अमेरिकी सरकार की विदेशी अनुदान एजेंसी मिलेनियम चैलेंज कारपोरेशन है.
50 करोड़ डालर की योजनाएं
चीन ने बेल्ट एवं रोड पहल की तहत नेपाल में ढांचागत क्षेत्र में विकास का काम शुरू कर दिया है.दूसरी तरफ अमेरिका के मिलेनियम चैलेंज कारपोरेशन ने भी नेपाल में विकास योजनाओं के लिए 50 करोड़ डालर की योजनाओं पर सहमति दी है. नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में मौजूद चीन समर्थक नेता चीन के इशारे पर अमेरिकी विकास योजनाओं का विरोध कर रहे हैं.दरअसल विदेशों से मिलने वाली आर्थिक सहायता, वित्तीय कर्ज आदि ने नेपाल की अंदरूनी राजनीति पर खासा असर डाला है.
नेपाल में बढ़ता भ्रष्टाचार
इससे नेपाल की राजनीति में भ्रष्टाचार भी बढ़ा है.नेपाल के राजनीतिक दलों के नेता काठमांडू स्थित अमेरिकी और चीनी दूतावास के बीच फंसे हुए हैं. यह सच्चाई है कि ताकतवर मुल्कों और वैश्विक संस्थाओं से मिलने वाले कर्ज, आर्थिक सहायता और अनुदानों से गरीब और विकासशील देशों के राजनीतिक दलों और नेताओं के अपने हित सधते हैं. यही हाल नेपाल का है. ऐसे में नेपाल में नई सरकार के गठन के बाद ही पता चल पाएगा कि नेपाल में लोकतंत्र मजबूत होगा या बाहरी ताकतों का खेल चलता रहेगा.
लेखक: अभिषेक गुप्ता (स्तम्भकार तथा राजनैतिक विश्लेषक)