हाथियों पर प्यार, लेकिन अपने बने बेसहारा; केरल का यह सच जानिए
बेसहारा बुजुर्गों की कोई जानकारी अब तक कहीं रिकॉर्ड नहीं है. राज्य के शहरों के मंदिरों में बुजुर्ग खाना मांगने के लिए लंबी लाइन में खड़े रहते हैं. ऐसे में मदिंर इन बुजुर्गों का सहारा बनता जा रहा है.
देश का सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा राज्य केरल हाथियों से खूब प्यार करता है, लेकिन केरल में बुजुर्गों के प्रति लापरवाही की बहुत सारी खबरें सामने आ रही हैं. घर से निकाले गए बुजुर्गों के आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं. केरल में कम ही ऐसे लोग हैं जो अपने बुजुर्गों को अपने साथ एक घर में रख रहे हैं.
कहानी घर से निकाले गए बुजुर्गों की
जानकार ये बताते हैं कि राज्य के कई शहरों के मंदिरों में बड़ी संख्या में बुजुर्ग खाना मांगने के लिए लंबी लाइन में खड़े रहते हैं. त्रिस्सूर जिले के गुरुवायूर मंदिर में वरिष्ठ नागरिकों की बढ़ती संख्या उनकी हालत बयान करती है. जहां जरूरतमंदों को मुफ्त भोजन परोसने की परंपरा है. दान में दिया गया खाना ही गरीब बुजुर्गों के जीवन यापन का एक मात्र जरिया है.
बुजुर्गों के लिए सरकार क्या कर रही?
सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक हाफिज मुहम्मद का कहना है कि आने वाले सालों में बुजुर्गों की देखभाल केरल की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होगी. उन्होंने कहा, 'सड़क पर रहने वाले या बेसहारा बुजुर्गों की कोई सटीक जानकारी अब तक कहीं रिकॉर्ड में नहीं है. लेकिन कई स्थानीय विभाग सड़कों से बुजुर्गों के पुनर्वास के लिए लगभग 50 केंद्र चलाता है. कई पंचायतें अपने क्षेत्रों में बुजुर्ग आबादी की देखभाल के लिए डे सेंटर भी चला रही हैं.
गैर सरकारी संगठनों या सरकारों की तरफ से चलाए जाने वाली कई सस्थांए हैं लेकिन यहां पर बुजुर्गों की देखभाल के लिए कोई भी इंतजाम नहीं है. शायद यही वजह है कि केरल की 3.34 करोड़ की आबादी के करीब 21 फीसदी लोग बेसहारा हैं. इनकी उम्र 60 साल के करीब है. 2021 में हुई केरल के इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार राज्य में वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात 26.1 प्रतिशत था. 2011 में हुए सर्वे में ये अनुपात 19.6 फीसद ही था.
क्या है वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात
वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात एक पैमाना है जिस उम्र में लोग आर्थिक रूप से निष्क्रिय हो जाते हैं. यानी वो पैसों के लिए काम काज नहीं कर सकते हैं .
बेदखली की वजह क्या है?
जानकारों का कहना है कि लगातार बढ़ते खर्च और छोटा परिवार के कॉन्सेप्ट ने बुजुर्गों के लिए एक तरह की चुनौती पैदा कर दी है. एडिशनल डीजीपी एम. आर. अजितकुमार का कहना है कि बुजुर्गों को घरों से निकालने का रिवाज मीडिल और हाई क्लास फैमिली में बढ़ा है. ऐसी ही फैमिली से निकाले गए लोगों का ठिकाना गुरुवायूर मदिंर बनाता जा रहा है.
पेंशन योजना किस हद तक कारगर
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की पिछले महीने एक रिपोर्ट में लगभग 30 लाख लोगों को 1,600 रुपये की मासिक वृद्धावस्था पेंशन दी गई. केरल में लगभग 75 प्रतिशत बुजुर्ग आबादी किसी न किसी पेंशन योजना का फायदा उठा रहे हैं.
कृषि श्रम पेंशन के तहत 388,000 लोग राशि का फायदा उठा रहे हैं. कल्याण निधि बोर्ड पेंशन के तहत अन्य 1.2 मिलियन लोगों को कवर करने के लिए केरल की पूरे देश में सराहना की गई थी.
केरल के वित्त मंत्री केएन बालगोपाल का कहना है कि हमारा राजकोषीय घाटा बढ़ रहा है. ऐसे में राज्य में वित्तिय प्रबंधन एक बड़ी चुनौती बन गई है. इसके बावजूद राज्य सराकार ने पेंशन योजनाओं को बंद नहीं किया है.
ऐसे में सवाल ये भी है कि केरल के लोगों को अपने ही बुजुर्गों की परवाह क्यों नहीं है और ये लोग हाथियों पर इतना प्यार क्यों लुटाते हैं?
कहानी केरल के ऐसे हाथी की, जो 15 लोगों की जान ले चुका है
केरल में सोशल मीडिया पर हाथियों के लिए कई फैन पेज आपको देखने को मिल जाएंगे. त्रिशूर के थेचिकोट्टूकावु रामचंद्रन नाम के हाथी की उम्र 58 साल है . ये हाथी 15 लोगों और तीन हाथियों को जान से मारने का दोषी है . इसके बावजूद इस हाथी को केरल में बहुत प्यार किया जाता है.
हाथी रामचंद्रन एक आंख से अंधा है और हर साल होने वाले त्रिशूर पूरम उत्सव का स्टार है. वैसे केरल के लोगों में हाथियों का काफी क्रेज है. केरल के मंदिरों में होने वाले त्योहारों के दौरान हाथियों की परेड कराई जाती है. परेड देखने के लिए भारी तादाद में लोग इकट्ठा होते हैं. लेकिन इन्हीं परेडों में आने वाले लोगों की नजरें अपने बुजुर्गों पर नहीं पड़ती.
पुराने जमाने से चली आ रही प्यार की परंपरा
केरल के रिजर्व जंगलों में 6,000 से ज्यादा हाथी और दूसरे जगंलों में 700 बंदी हाथी होने का अनुमान है. केरल में हाथियों के लिए ये प्यार कोई नया नहीं है. राजा रजवाड़ों के दौर से ये प्यार चला आ रहा है. राजा रजवाड़ों के दौर से ही मंदिरों में हाथियों का परेड करवाया जाता रहा है.
हाथी पर लोगों का यह प्यार गरीबों पर भारी
मुख्य वन पशु चिकित्सा अधिकारी अरुण जकरियाह का कहना है कि केरल के लोगों में हाथियों के लिए ये प्यार राज्य के गरीब लोगों के लिए कई बार मुसीबत साबित हो चुका है. आवारा हाथी बस्तियों या गरीब किसानों के खेतों पर हमला करते हैं जिससे उन्हें भारी नुकसान होता है.
जकरियाह की टीम ने पिछले महीने पीटी-7 कोडनेम वाले एक खतरनाक जंगली हाथ पकड़ा. यह हाथी पलक्कड़ जिले के धोनी में गरीब की बस्तियों पर हमला कर रहा था. जकरियाह बताते हैं कि हाथियों से प्यार करना अलग बात है लेकिन जब तक इन्हें रहने के लिए जगह नहीं दी जाएगी. तब तक ये हाथी आम लोगों के लिए खतरा पैदा करते ही रहेंगे.
हाथियों को माना जाता था अमीरों का स्टेटस सिंबल
राज्य वन विभाग के पूर्व मुख्य पशु चिकित्सा सर्जन डॉ. ई. के. ईश्वरन कहते हैं कि "राज्य के लोग हाथियों के लिए दान करते हैं, हाथियों के लिए फैन कल्ब बनाते हैं. 1990 के दशक की शुरुआत में हाथी केरल में अमीरों का स्टेटस सिंबल हुआ करते थे, लेकिन राज्य में अब इन जानवरों के खिलाफ हिंसा बढ़ती ही जा रही है.