फसल, मवेशी और घर... सब बाढ़ में बर्बाद, पाकिस्तान को याद आया पड़ोसी मुल्क भारत
पाकिस्तान में आई बाढ़ की वजह से अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा है. वित्त मंत्री के मुताबिक 10 अरब डॉलर तक का नुकसान हुआ है.
पाकिस्तान में भीषण बाढ़ मौजूदा शहबाज शरीफ सरकार के लिए बड़ी मुश्किल लेकर आई है. पाकिस्तान में फसलें पूरी तरह से तबाह हो गई हैं. पहले से ही आर्थिक बदहाली झेल रहे पाकिस्तान के लिए ये बड़ा झटका है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सोमवार को पाकिस्तान में बाढ़ से हुई तबाही पर दुख जताया है. पीएम मोदी ने ट्वीट किया, ''पाकिस्तान में बाढ़ से हुई तबाही को देखकर दुख हुआ. हम पीड़ितों, घायलों और इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित सभी लोगों के परिवारों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं और जल्द ही सामान्य स्थिति बहाल होने की उम्मीद करते हैं.''
पीटीआई के मुताबिक पाकिस्तान में बाढ़ के कारण मरने वालों की संख्या सोमवार को 1136 हो गई और 1,634 लोग घायल हुए हैं.
पाकिस्तान के प्राकृतिक आपदाओं से निपटने वाले मुख्य राष्ट्रीय संगठन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से जारी आंकड़ों की मानें तो 9,92,871 घर पूरी तरह या आंशिक रूप से बर्बाद हो गए हैं. लाखों लोगों को खाना नसीब नहीं हो पा रहा है. इसके साथ ही करीब 7.19 लाख मवेशी मारे गए हैं. और लाखों एकड़ उपजाऊ जमीन में डूब गई है.
देश में आर्थिक संकट के बीच प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार की अपील के बाद अंतरराष्ट्रीय सहायता पहुंचने लगी है. वित्त मंत्री मिफ्ता इस्माइल ने बताया है कि बाढ़ के कारण पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को 10 अरब डॉलर तक का नुकसान हुआ है.
बाढ़ के कारण विभिन्न सब्जियों और फलों की कीमतों में भारी उछाल आ गया है. आपदा की वजह से बलूचिस्तान, सिंध और दक्षिण पंजाब से सब्जियों की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई है.
आपदा में फंसे पाकिस्तान को भारत की याद आई है. रेडियो पाकिस्तान में बातचीत के दौरान पाकिस्तान के वित्त मंत्री मिफ्ताह इस्माइल ने सोमवार को कहा कि सरकार बाढ़ के बाद देश भर में फसल बर्बाद होने के बाद लोगों की सुविधा के लिए भारत से सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ आयात करने पर विचार कर सकती है.
बता दें कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द करने के भारत के फैसले के बाद पाकिस्तान ने अगस्त, 2019 में भारत के साथ अपने व्यापार संबंधों को कम कर दिया था.
वहीं एक सूत्र का हवाला देते हुए पाकिस्तान के ‘डॉन’ अखबार ने बताया कि पूर्व सुरक्षा सलाहकार एम यूसुफ भारत के साथ व्यापार के संबंध में कुछ प्रस्तावों पर काम कर रहे थे. डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व वाणिज्य सलाहकार रजाक दाऊद ने भी भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू करने के लिए कई मौकों पर बात की.
मार्च 2021 में, आर्थिक समन्वय समिति (ईसीसी) ने घोषणा की थी कि वह निजी क्षेत्र को भारत से 0.5 मिलियन टन चीनी और वाघा सीमा के माध्यम से कपास आयात करने की अनुमति देगी। हालांकि, मुख्य विपक्षी दलों- पीएमएल-एन और पीपीपी- जो अब गठबंधन सरकार में हैं, की कड़ी आलोचना के बाद कुछ ही दिनों में निर्णय को उलट दिया गया.
डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल सरकार में बदलाव के साथ, वाणिज्य मंत्रालय ने मई में रुके हुए द्विपक्षीय व्यापार को फिर से शुरू करने की संभावना से इनकार कर दिया गया था.
वाणिज्य मंत्रालय की ओर से सोशल मीडिया पर व्यापक अटकलों पर प्रतिक्रिया आई कि भारत के साथ व्यापार पर पाकिस्तान की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
इससे पहले जून में विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने अन्य देशों, विशेषकर भारत के साथ व्यापार और जुड़ाव के मामले की वकालत की थी. मंत्री ने भारत को शामिल करने पर अधिक जोर देते हुए कहा था कि यह आर्थिक कूटनीति की ओर बढ़ने और जुड़ाव पर ध्यान केंद्रित करने का समय है.
डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, विदेश कार्यालय ने बाद में बिलावल की टिप्पणियों पर एक स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा कि अपने पूर्वी पड़ोसी के प्रति पाकिस्तान की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है और इस पर राष्ट्रीय सहमति है. इन बातों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत के साथ रिश्तों को लेकर पाकिस्तान सरकार के मंत्रालयों में भी एक राय नहीं है.
पाकिस्तान में अर्थव्यवस्था पर हमेशा राजनीति हावी
आर्थिक बदहाली से जूझ रहे पाकिस्तान को भारत से टेक्स्टाइल और चीनी खरीदना बाकी देशों की तुलना में सस्ता पड़ता है. हाल के कुछ सालों में पाकिस्तान कॉटन और चीनी के उत्पादन में 6.9 फीसदी तक गिरावट दर्ज की गई है. शुगर के निर्यात में 50 फीसदी तक गिरावट आई है. कॉटन के उत्पादन में गिरावट की वजह से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले कपड़ा उद्योग में निर्यात में भी भारी गिरावट आई है.
लेकिन पाकिस्तान में हमेशा व्यापार और अर्थव्यवस्था को राजनीति से नीचे ही रखा जाता रहा है.इस देश की आर्थिक बदहाली की ये भी एक वजह रही है. हालांकि सार्क समूह से जुड़े हर देश में इस तरह की नीतियां देखने को मिलती हैं. लेकिन पाकिस्तान जो लगातार आर्थिक बदहाली को झेल रहा और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज की गुहार लगा रहा है वहां पर राजनीति देशहित से कहीं ज्यादा अब अभी मायने रखती है.
कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान बीते 70 सालों से अड़ियल रुख अपना रखा है. तीन-तीन युद्धों में हारने के बाद भी कश्मीर की रट वो बंद नहीं करता है. एक ओर तो वह पूरी दुनिया में से कहता है कि भारत को बातचीत शुरू करनी चाहिए तो दूसरी ओर उसके नेता कश्मीर को लेकर पुराना राग अलापते रहते हैं. पाकिस्तान में नई सरकार ने भी फैसला किया है कि भारत जब तक जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 दोबारा बहाल नहीं करता है कोई संवाद नहीं होगा. यानी वो अपनी शहबाज सरकार अपनी पूर्ववर्ती इमरान खान की सरकार के ही रुख को अपना रहे हैं.