बिहार के बक्सर वाले पांडे जी की बड़ी चर्चा है. वो भी एक नहीं दो-दो. पहले वाले पांडे जी को लोग पीके के नाम से जानते पहचानते हैं. वैसे तो वे प्रशांत किशोर कहलाते हैं. लेकिन बिहार के कुछ लोग उन्हें प्रशांत किशोर पांडे कहकर बुलाते हैं. बक्सर में उनका घर है. यहां पीके का आना जाना लगभग न के बराबर है. देश भर के बड़े बड़े लोग उनका लोहा मानते हैं. कई राज्यों के मुख्यमंत्री उनके अपने हैं. लेकिन बक्सर के लोग प्रशांत किशोर पांडे को नहीं गुप्तेश्वर पांडे को जानते हैं. इलाक़े का बच्चा बच्चा उन्हें डीजीपी या फिर बाबा कह कर बुलाता है. एक पांडे जी इस बार बिहार के राजनैतिक सीन से ग़ायब है. तो दूसरे पांडे जी की तो पॉलिटिक्स में एंट्री से पहले ही गेम हो गया.


बिहार के बक्सर के रहने वाले गुप्तेश्वर पांडे फ़रवरी में डीजीपी से रिटायर होते. लेकिन उससे पॉंच महीने पहले ही उन्होंने वीआरएस ले लिया. ये बात बताने के लिए उन्होंने अपने कुछ करीबी आईपीएस अफ़सरों को ऑफिस बुलाया. तो कुछ ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी. कहा अभी तो पांच महीने बचे हैं. रिटायर होने के बाद आप किसी आयोग में चले जाइएगा. आराम से पांच साल कट जाएंगे. लेकिन पांडे ने कहा कि उन्हें तो चुनाव लड़ना है.


फिर एक ने कहा कि दारोग़ा भी विधायक की नहीं सुनते हैं. कहां आप इस झमेले में फंस रहे हैं, लेकिन पांडे जी ने तो कमिटमेंट कर ली थी. फिर वे कहां किसी की सुनते. एक बार जो ऑफिस छोड़ा तो फिर नए डीजीपी को चार्ज तक नहीं देने गए. यही नहीं पांडे जी ने तो फ़ेयरवेल पार्टी में जाने से भी मना कर दिया. उनका निशाना तो अर्जुन की तरह बक्सर वाली सीट पर था.


नीतीश कुमार का आशीर्वाद लेकर गुप्तेश्वर पांडे जेडीयू में शामिल हो गए. एक बार बक्सर जाकर लोगों से मिल भी आए. नामांकन पत्र भी ख़रीद लिया. लेकिन गठबंधन में बक्सर की सीट बीजेपी के खाते में चली गई. पांडे जी अब अच्छे समय का इंतज़ार कर रहे हैं. वे भले ही चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. लेकिन बक्सर में सबसे अधिक चर्चा पांडे जी की होती है. हर चौक-चौराहे पर लोग उनकी बातें करते हैं.


बीजेपी ने बक्सर से परशुराम चतुर्वेदी को टिकट दिया है. वे जहां भी जाते हैं गुप्तेश्वर पांडे को अपना बड़ा सहोदर भाई बताते हैं. चतुर्वेदी भी बिहार पुलिस के हवलदार रह चुके हैं. गुप्तेश्वर पांडे ने अपने शुभचिंतकों को धैर्य रखने को कहा है और खुद भी किसी ख़ुशख़बरी का इंतज़ार कर रहे हैं.


प्रशांत किशोर पिछले चुनाव में नीतीश कुमार के साथ साए की तरह रहते थे. वे एक तरह से जेडीयू में नंबर दो बन गए थे. टिकट देने से लेकर चुनावी रणनीति बनाने तक. नीतीश कुमार हर काम में उनकी सलाह लिया करते थे. वे लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच की कड़ी थी. आरजेडी से लेकर जेडीयू तक सभी बड़े नेता उनकी ताक़त से जलते थे. मन ही मन कुढ़ते थे. बीजेपी को पछाड़ कर जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी तो क्रेडिट उनको भी मिला. लेकिन फिर धीरे धीरे दोनों के रिश्ते बिगड़ते गए. बात इतनी बिगड़ गई कि प्रशांत किशोर जेडीयू से बाहर कर दिए गए.


इसी साल फ़रवरी महीने में पीके ने पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर नीतीश पर कई तरह के आरोप लगाए. उन्हें कमजोर सीएम बताया. प्रशांत किशोर को नीतीश का बीजेपी से गठबंधन पसंद नहीं था. उन्होंने बात बिहार की नाम से एक कैंपेन भी लॉन्च किया. लेकिन इस बार बिहार के चुनावी सीन से वे ग़ायब हैं. उन्होंने चुनाव तक पटना न आने की क़सम खाई है. लेकिन चिराग़ पासवान की नई राजनीति के बहाने उनके नाम आते रहते हैं राजनैतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि नीतीश के ख़िलाफ़ चिराग़ के स्टैंड के पीछे प्रशांत किशोर हैं. लेकिन दोनों ही इस बात से इनकार करते रहते हैं.