पीएफआई एक बार फिर से चर्चा में है. 18 सितंबर को राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के आरोप में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के 40 ठिकानों पर छापेमारी की. एजेंसी ने यह कार्रवाई तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में की है. पीएफआई पर कानपुर हिंसा, आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने और धर्म के आधार पर नफरत फैलाने के कई आरोप लग चुके हैं. दिल्ली में सीएए आंदोलन से लेकर मुजफ्फरनगर, शामली और मध्य प्रदेश के खरगोन में हुई सांप्रदायिक हिंसा में भी पीएफआई से तार जुड़े थे. 


पीएफआई कैसा संगठन है, यह कैसे और कब अस्तित्व में आया? पीएफआई पर अक्सर कट्टरता फैलाने के क्यों आरोप लगते रहे हैं. इन्हीं सब  सवालों के जवाब ने इस रिपोर्ट में जानने की कोशिश की है.


पीएफआई का इतिहास
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की शुरुआत साल 2006 में दक्षिण भारतीय राज्य केरल में हुई. वर्ष 2006 में तीन मुस्लिम संगठनों का विलय हुआ जिसके बाद पीएफआई अस्तित्व में आया. तीनों संगठनों में राष्ट्रीय विकास मोर्चा, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु की मनिथा नीति पासारी थे. दरअसल, 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद दक्षिण में इस तरह के कई संगठन सामने आए थे. उनमें से कुछ संगठनों को मिलाकर पीएफआई का गठन किया गया. तब से ही यह संगठन देशभर में कार्यक्रम आयोजित करवाता है.  


अपने 16 साल के इतिहास में पीएफआई दावा करता है कि उसकी देश के 23 राज्यों में इकाइयां है. संगठन देश में मुसलमानों और दलितों के लिए काम करता है. और मध्य पूर्व के देशों से आर्थिक मदद भी मांगता है जिससे उसे अच्छी-खासी फंडिंग मिलती है.पीएफआई का मुख्यालय कोझीकोड में था, लेकिन लगातार विस्तार के कारण इसका सेंट्रल ऑफिस राजधानी दिल्ली में खोल दिया गया. 


पीएफआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष ई अबुबकर हैं जो केरल से ताल्लुक रखते हैं. यह संगठन खुद को अल्पसंख्यक समुदायों, दलितों और समाज के अन्य कमजोर तबकों के लोगों को सशक्त बनाने का काम करने का दावा करता है.  


क्या है ताजा मामला
आतंकी गतिविधियां चलाने के आरोप में एनआईए ने तेलंगाना में 38 स्थानों और आंध्र प्रदेश में दो स्थानों पर की गई तलाशी ली. जिसमें चार लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया. अधिकारियों ने इस अभियान के दौरान डिजिटल उपकरण, दस्तावेज, दो खंजर और 8.31 लाख रुपये से अधिक नकदी सहित अन्य आपत्तिजनक सामग्री जब्त की है.


इस मामले में पीएफआई के खिलाफ 4 जुलाई को तेलंगाना के निजामाबाद में मामला दर्ज कराया गया था. राज्य पुलिस ने जांच के दौरान चार आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था.


बाद में एनआईए ने जांच को आगे बढ़ाने के लिए 26 अगस्त को फिर केस दर्ज किया. एनआईए के मुताबिक संगठन से जुड़े ये लोग आतंकी कृत्यों को अंजाम देने और धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर रहे थे. 


दक्षिण भारत तक सीमित रहने वाले पीएफआई ने पिछले कुछ वर्षों में उत्तर भारत में तेजी से विस्तार किया है. दिल्ली में मुख्यालय बनाने के बाद से संगठन ने राजधानी सहित इसके आसपास के राज्यों में अपने पैर पसारे हैं.  


पीएफआई  पर मनी लॉन्ड्रिंग का केस
पीएफआई के सदस्य केए रऊफ शरीफ पर दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग केस में के मुताबिक उसे ने चीन से आतंकी गतिविधियों के लिए फंडिंग मिलती है. ईडी का दावा है कि इसी फंडिंग से पीएफआई की तरफ से सीएए प्रदर्शन, सोशल मीडिया पर दिल्ली दंगों और बाबरी मस्जिद पर पोस्ट तौयार करके लोगों को भड़काने का काम किया गया. ईडी के मुताबिक केए रऊफ शरीफ ने हाथरस गैंगरेप मामले लोगों को भड़काने का काम किया था. 


प्रवर्तन निदेशालय के अनुसार केए रऊफ शरीफ को चीन से मास्क का बिजनेस करने के लिए एक करोड़ की मदद मिली थी. एक और मामले में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया यानी एसडीपीआई नाम के संगठन के कलीम पाशा के नाम पर एक चीनी कंपनी से पांच करोड़ रुपये लोन लेने का आरोप है.  


वहीं, कुछ महीने पहले ही प्रवर्तन निदेशालय ने पीएफआई से जुड़े 22 बैंक खाते फ्रीज कर दिए थे. इन बैंक खातों में 68 लाख रुपये जमा थे. दरअसल, ईडी के मुताबिक इन खातों में  30 करोड़ रुपये कैश के तौर पर जमा किए गए थे. पीएफआई का बैंक बैलेंस किसी एक बड़ी कंपनी के जैसा है.  


पीएफआई-तब्लीगी जमात लिंक
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पीएफआई और तब्लीगी जमात के बीच संबंधों का भी खुलासा किया था. तब्लीगी जमात पर धार्मिक कार्यक्रम करने के दौरान कोरोना फैलाने का आरोप लगा था. पुलिस ने दावा किया था कि तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में जो भीड़ इकट्ठी हुई थी उसे आयोजित करने के लिए पैसे की व्यवस्था पीएफआईने ही की थी. ईडी ने इस मामले में तब्लीगी जमात के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला भी दर्ज किया था, ताकि उसके आयोजनों के लिए पैसे के स्रोत का पता लगाया जा सके. 


लव जिहाद
वहीं 2017 में विवादास्पद हादिया 'लव जिहाद' केस की जांच करते हुए, एनआईए ने दावा किया था कि महिलाओं के इस्लाम में धर्मांतरण के दो मामलों के बीच एक पुख्ता सबूत पाया गया है. उस समय एनआईए ने कहा था कि पीएफआई से जुड़े चार लोगों ने केरल निवासी अखिला अशोकन को धर्म परिवर्तन और हादिया नाम रखने के लिए मजबूर किया था. एजेंसी ने संदेह जताते हुए यह भी कहा था कि इन्होंने ही अथिरा नांबियार को धर्मांतरण करने को प्रोत्साहित किया था.


केरल पुलिस ने एनआईए को जबरन धर्म परिवर्तन के संदिग्ध 94 मामलों की एक सूची भी सौंपी थी, जिसमें केंद्रीय एजेंसी से इन केसों की जांच करने और यह देखने के लिए कहा गया कि इसमें कोई संबंध तो नहीं है. एनआईए ने दावा किया था कि इनमें से कम से कम 23 शादियां पीएफआई ने करवाई थीं.


अक्टूबर 2018 में, एनआईए ने जांच पूरी की, क्योंकि उसे "दबाव का कोई सबूत" नहीं मिला, जिसके परिणामस्वरूप मुकदमा चलाया जा सकता था.


27 राजनीतिक हत्याओं में शामिल 
पीएफआई पर आरोप है कि जब देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो इसके ज्यादातर नेताओं ने पीएफआई का दामन थाम लिया. पीएफआई शुरुआत से ही विवादों में रहा, उस दौरान भी उसपर सांप्रदायिक दंगे भड़काने और नफरत फैलाने के आरोप लगते रहे. 


बता दें कि 2014 में केरल हाईकोर्ट में राज्य सरकार ने एक हलफनामा दायर किया, जिसके मुताबिक पीएफआई के कार्यकर्ता केरल में 27 राजनीतिक हत्याओं के जिम्मेदार थे. वहीं हलफनामें में यह भी कहा गया है कि यह संगठन केरल में हुई 106 सांप्रदायिक घटनाओं में किसी न किसी रूप में शामिल था.         


पीएफआई के बढ़ने का कारण
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया एक कट्टर विचारधारा वाला संगठन माना जाता है. इसके काम करने का तरीका भी अन्य संगठनों से अलग है. वर्तमान समय में पीएफआई का असर देश के 16 राज्यों में है, 15 से भी अधिक मुस्लिम संगठन इससे जुड़े हुए हैं, जिनके साथ मिलकर ये काम करता है. पीएफआई के देशभर में लाखों की संख्या में सदस्य हैं. यही सदस्य संगठन की ताकत हैं. हालांकि पीएफआई दावा करता है कि उसका 23 राज्यों में प्रभाव है. पीएफआई के कार्यकर्ता लगातार असम, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, केरल, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में सक्रिय हैं. पीएफआई की संदिग्ध गतिविधियों के कारण इसे कई राज्यों में प्रतिबंधित करने की मांग की जाती है.