प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार लाल किले की प्रचीर से भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की घोषणा कर चुके हैं. उन्होंने इसे अपनी संवैधानिक और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी बताते हुए कई बार कहा है कि भ्रष्टाचार को लेकर उनकी सरकार की पॉलिसी 'जीरो टॉलरेंस' की है. पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार ने काले धन के लेनदेन को समाप्त करने के लिए कई कदम भी उठाए हैं. इसी कड़ी में 'बेनामी संपत्ति' पर लगाम लगाने की पहल भी शामिल है. बेनामी संपत्ति के मामलों को कम करने के लिए कई तरह की स्कीम भी बनाई गईं हैं, जिसके तहत कार्रवाई की जा रही हैं.

  


हालांकि बेनामी सम्पत्ति कानून में एक बार संशोधन होने और उसके सुप्रीम कोर्ट में रद्द होने के बाद केंद्र सरकार एक बार फिर से नया कानून बनाने पर विचार कर रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि बेनामी सम्पत्ति किसे कहते हैं और इस पर कानून बनने से भ्रष्टाचार को रोकने में कितनी मदद मिलेगी?


क्या है बेनामी संपत्ति ?
बेनामी सम्पत्ति वह प्रॉपर्टी है, जिसकी कीमत किसी और ने चुकाई हो लेकिन, नाम किसी दूसरे व्यक्ति का हो. यह संपत्त‍ि पत्नी, बच्चों या किसी रिश्तेदार के नाम पर भी खरीदी गई होती है. जिसके नाम पर ऐसी संपत्त‍ि खरीदी गई होती है, उसे 'बेनामदार' कहा जाता है. 


हालांकि, जिसके नाम पर इस संपत्ति को लिया गया होता है वो केवल इसका नाममात्र का मालिक होता है जबकि असल हक उसी व्यक्ति का होता है, जिसने उस संपत्ति के लिए पैसे चुकाए होते हैं. ज्यादातर लोग ऐसा इसलिए करते हैं ताकि वह अपना काला धान छुपा सकें. 


क्या कहता है मौजूदा कानून
कर्तमान में जो बेनामी सम्पत्ति (निषेध) कानून 2016 है, उसके मुताबिक उस बोनामी सम्पत्ति को बेनामी समझा जाएगा जो किसी गलत धांधली करके खरीदी गई हो. इसके साथ ही जमीन के मालिक को ही अपनी सम्पत्ति के असली मालिक की जानकारी नहीं होने पर उसे बेनामी सम्पत्ति माना जाएगा. ऐसे में ये समझा जाएगा कि वो सम्पत्ति गलत तरीके से खरीदी गई है. वहीं नए कानून में अपराध साबित होने पर 3 से लेकर 7 साल की जेल हो सकती है. इसके अलावा उस सम्पत्ति की उस समय जो बाजार वैल्यू है उसका 25 फीसदी जुर्माना वसूला जा सकता है.    


सीमा तय कर सकती है सरकार
केंद्र सरकार "बेनामी सम्पत्ति" को लेकर कड़ा कानून लाने जा रही है, जिसके तहत सरकार सम्पत्ति को लेकर सीमा तय कर सकती है. यह कानून आने के बाद बेनामी सम्पत्ति के लेनदेन को अमान्य कर दिया जाएगा और संपत्ति को जब्त कर लिया जाएगा. वहीं फिलहाल जो मौजूदा कानून है उसमें ऐसे किसी सीमा का प्रावधान नहीं है. एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, "बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम 2016 के कुछ प्रावधानों की जांच की जा रही है और बेनामी संपत्तियों पर नकेल कसने के लिए उन पर फिर से काम किया जा रहा है."
 
सुप्रीम कोर्ट ने गलत माना था कानून
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2022 को बेनामी संपत्ति कानून में से तीन से सात साल तक की सजा के कानून को ने रद्द कर दिया था. बेनामी ट्रांजेक्शन एक्ट, 2016 की धारा 3(2)में यह प्रावधान किया गया था. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि यह धारा स्पष्ट रूप से मनमानी है. साथ ही कोर्ट ने कहा था कि बेनामी संपत्ति कानून-2016 में किया गया संशोधन उचित नहीं है. 


सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानून को निरस्त किए जाने के बाद केंद्र सरकार नए सिरे से कानून बनाने जा रही है. बता दें कि सबसे पहले 1988 में बेनामी सम्पत्ति को लेकर कानून बनाया गया था. मगर, 2016 में मोदी सरकार ने इस कानून में कुछ संशोधन किए थे. बेनामी संपत्ति कानून में बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर दी गई थी. कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कानून के प्रभावशाली धाराओं को निरस्त कर दिया था. 


सीबीडीटी देगी सरकार को सुझाव
बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी खबर के मुताबिक केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने सरकार को कानून में कई विसंगतियों को दूर करने के लिए कानून में बदलाव का सुझाव दिया है, जबकि इसमें यह भी कहा गया है कि यह सुनिश्चित जाएगा कि कानून के लागू होने से किसी का भी बेवजह उत्पीड़न नहीं हो.


साथ ही इसमें यह भी कहा गया है कि इस तरह के बेनामी सौदों के तहत सम्पत्ति खरीदने के मूल्य को सीमित करने के सुझाव थे, लेकिन अब इसे नए सिरे से संसद के बजट सत्र में पेश किया जा सकता है. वहीं 50 लाख रुपये और उससे अधिक में बेची गई कोई भी अचल संपत्ति ज्यादा मूल्य का लेनदेन माना जाता है.


हालांकि, ऐसे में बेनामी सम्पत्ति द्वारा खरीदे गए किसी भी मामले में पैसे की सीमा अधिक हो सकती है. इसके अलावा, सीबीडीटी ऐसी किसी भी बेनामी संपत्तियों को जब्त करने के लिए एक नई प्रक्रिया के साथ आ सकता है. सीबीडीटी नई प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करेगा कि उन मालिकों को पकड़ा जा सके जो गुमनाम रहते हैं और अवैध पैसा रखते और उसको छिपाते हैं.


सरकार का यह कदम सुप्रीम कोर्ट के हालिया को लेकर किया गया है. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के 2016  बेनामी सम्पत्ति कानून में संशोधन को पूर्ण रूप से लागू करने पर रोक लगा दी थी. 2016 का कानून कहता था कि दोषी पाए जाने पर तीन साल की जेल या कठोर दंड दिया सकता था. बेनामी सम्पत्ति वो होती है जिसमें खरीदने वाला अपने कैसे से किसी और के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदता है. 


सुप्रीम कोर्ट ने कानून रद्द क्यों किया?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने जो 22 अगस्त 2022 को फैसला सुनाया था. मामला कोलकाता हाईकोर्ट से भी जुड़ा था. कलकत्ता हाई कोर्ट ने इससे पहले गणपति डीलकॉम मामले में यही फैसला सुनाया था. हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई. सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को ही सही माना और तीन साल तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों के लिए कारावास देने वाले प्रावधानों को रद्द कर दिया. 


बता दें कि इस कानून से जुड़ा संशोधन 1 नवंबक 2016 को लागू हुआ था, मगर, बेनामी सम्पत्ति मामलों में 2016 से पहले के फंसे लोगों पर भी इसी तरह की कार्रवाई की जा रही थी. हाईकोर्ट ने माना था कि 2016 से पहले के केस में इस कानून को लागू नहीं किया जा सकता.   


2,100 लोगों को कारण बताओ नोटिस
वहीं आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 31 मई, 2019 तक, 9,600 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की बेनामी संपत्तियों से जुड़े 2,100 से ज्यादा मामलों में कारण बताओ नोटिस जारी किए गए थे. हालांकि नया कानून कैश ट्रांसफर, संपत्ति सौदों जैसे लेनदेन को अपने दायरे में लाया था.